लोनी में एक मुस्लिम बुजुर्ग की मुस्लिम समाज के ही युवकों द्वारा पिटाई की गई, इसके अतिरिक्त हाल ही में असम में एक मरीज की मौत के बाद उसके परिजनों द्वारा डॉक्टर की पिटाई की गई। इन सब घटनाओं में एक बात समान है वो यह कि अपराधी मुस्लिम समाज से आते हैं और उत्तर प्रदेश तथा असम सरकार ने बेझिझक यह बात सार्वजनिक भी की। भारत में परंपरागत रूप से यह होता रहा है कि जब अपराधी हिन्दू हो तो उसका नाम उजागर कर दिया जाता था किंतु अगर अपराधी मुस्लिम होता था तो मीडिया और सरकार उसके नाम को उजागर नहीं करते थे। यहाँ तक की आए दिन मुस्लिम आतंकियों द्वारा किए जा रहे धमाकों के बाद भी यह कहा जाता रहा कि आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता।
कल तक जो लोग अपराध करने के बाद, अपने मजहब की आड़ में खुद को बचाने की कोशिश करते थे उन्हें अब सार्वजनिक रूप से उनके अपराधों के लिए दोषी ठहराया जा रहा है, उनका नाम उजागर हो रहा है।
हाल ही में योगी आदित्यनाथ और हिमंता बिस्वा सरमा ने अपने राज्य में हुईं आपराधिक घटनाओं में शामिल हुए मुसलमानों के नाम खुले तौर पर उजागर किये हैं। असम के कोकराझार जिले में दो नाबालिग आदिवासी लड़कियों का बलात्कार और हत्या हुई थी। असम पुलिस ने एक सप्ताह में अपराधियों को पकड़ा और उनके नाम भी उजागर किया। सभी आरोपी 19 से 27 वर्ष की आयु के बीच के थे, पुलिस ने आरोपियों की पहचान मुजम्मिल शेख, नजीबुल शेख, फारूक रहमान, हनीफ शेख, जहांनूर इस्लाम, मोहम्मद अताब अली और शंकरदे बर्मन के रूप में की।
इसी तरह असम के होजाइ जिले में स्थित एक कोविड केयर सेंटर में एक मरीज की मौत होने के बाद उसके परिजनों ने डॉक्टर के साथ मारपीट की। इस घटना में शामिल सभी 24 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया और उनके नाम मोहम्मद कमरुद्दीन, मोहम्मद जैनलुद्दीन, रेहनुद्दीन, सईदुल आलम, रहीमुद्दीन, राजुल इस्लाम, तैयबर रहमान, साहिल इस्लाम आदि, भी उजागर किए गए। यह काम स्वयं CM हिमंता बिस्वा सरमा ने ही अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से किया।
अभी फिलहाल चर्चा में बना हुआ उत्तर प्रदेश का गाजियाबाद वाला कांड प्रसिद्ध है ही, इसके अलावा नोएडा में चोरी के आरोपी मुस्लिम युवकों का नाम पेपर में छापा गया। इससे पहले CAA विरोधी दंगों में भी उपद्रवियों के नाम पोस्टर छापकर सार्वजनिक किये गए थे। यह एक अच्छी पहल है, क्योंकि इससे समाज में यह जागरूकता फैलेगी की समाज का एक तबका आपराधिक गतिविधियों में बड़े पैमाने पर संलिप्त हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) का आकंड़ा बताता है कि जनसंख्या के अनुपात में मुस्लिम समाज के ज्यादा लोग जेलों में बंद हैं। 2020 में आए आकंड़ों के अनुसार, आधिकारिक रूप से 15% आबादी वाले मुस्लिम समाज से 16.6% अपराधी आते हैं जो सजायाफ्ता हैं। इसके अतिरिक्त ट्रायल का सामना करने वालों में 18.7% अपराधी मुस्लिम हैं, जबकि जेलों में बंद 35.8% अपराधी मुस्लिम हैं। साफ है कि अपनी आबादी के अनुपात में मुस्लिम समाज ज्यादा क्राइम करता है, जिन राज्यों में मुस्लिम आबादी ज्यादा है वहाँ अपराध भी अधिक हैं। प० बंगाल विदेशियों द्वारा किए गए अपराध के मामले में सबसे ऊपर है। जाहिर तौर पर इसके पीछे बांग्लादेशी घुसपैठियों का बड़ा हाथ है। केरल में जहाँ अच्छी खासी मुस्लिम आबादी है, वहां मुस्लिमों की कुल जनसंख्या राष्ट्रीय जनसंख्या के मात्र 2.76 प्रतिशत है, लेकिन क्राइम के मामले में देश का कुल 8.7 प्रतिशत केरल में होता है।
वैसे तो यह सुनने और देखने में अच्छा नहीं लगता कि किसी विशेष समुदाय के अपराधियों का नाम उजागर किया जाए, लेकिन कभी कभी सार्वजनिक अपमान से समाज में अपराध न करने की जागरूकता बढ़ती है। मुस्लिम समुदाय अपने भीतर स्वयं सुधार नहीं लाता तो यह तरीका अत्यंत कारगर हो सकता है, क्योंकि इससे कम से कम लोगों में जागरूकता तो बढ़ेगी ही।