कल यानी 18 जून 2021 को भारत की न्याय व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण दिन माना जाएगा। कल भारत के सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एक फैसले को भविष्य में मिसाल के तौर पर मान्यता देने से मना कर दिया है। जी हां, अमूमन ऐसा नहीं होता है। एक जैसे मामलों में पूर्व में दिये गए अदालत के एक फैसले को मिसाल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है । पर इस बार दिल्ली उच्च न्यायालय के UAPA कानून को लेकर किए गए उल्लेख पर सुप्रीम कोर्ट ने बोला है कि, इसको नजीर नहीं माना जाएगा। इसके व्यापक परिणाम हो सकते हैं।
दरअसल, हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली दंगों के तीन अरोपी देवांगना, नताशा और आसिफ को जमानत दे दी थी। इसके साथ ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने UAPA कानून की व्याख्या करते हुए, कानून को उलट पलट कर दिया था। अर्थात, दिल्ली उच्च न्यायालय ने UAPA कानून पर अपनी टिप्पणी करते हुए, कानून का मूल भाव ही खत्म कर दिया था। दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाई कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि, हाई कोर्ट ने अभियुक्तों को जमानत देते हुए अपने आदेश में यूएपीए कानून को ही पलट दिया।
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इस मामले के सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की अवकाश पीठ ने कहा कि, “जवाबी हलफनामा 4 सप्ताह के भीतर दायर किया जाए। 19 जुलाई से शुरू होने वाले सप्ताह में गैर-विविध दिन पर सूचित करें। इस बीच इस निर्णय को किसी भी न्यायालय के समक्ष किसी भी पक्ष द्वारा एक मिसाल के रूप में नहीं माना जाएगा। यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रतिवादियों को दी गई राहत इस स्तर पर प्रभावित नहीं होगी।”
दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलील देते हुए कहा कि, “कथित घटना इसलिए हुई क्योंकि जब अमेरिका के राष्ट्रपति भारत दौरे पर आए थे, तब तीनों आरोपियों ने साजिश रची थी। इस प्रक्रिया में 53 लोगों की मौत हुई, जिनमें से कई पुलिस अधिकारी थे। इसके अलावा, 700 लोग घायल हुए। लेकिन समय रहते स्थिति को नियंत्रित किया गया था। हाईकोर्ट ने व्यापक टिप्पणियां कीं और फिर कहा कि अपराध नहीं बनता है।”
मेहता ने आगे कहा, “इसका मतलब यह है कि अगर मैं कहीं बम रखता हूं और स्कॉड आ कर बम को डिफ्यूज कर देते हैं, तो इससे अपराध कम हो जाता है।”
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपील पर फैसला होने तक हाईकोर्ट के फैसले को मिसाल के तौर पर न लिया जाए।
सालिसिटर जनरल तुषार मेहता इस पर अपना रूख साफ हुए कहा कि “विरोध करने का अधिकार में लोगों को मारने का अधिकार कैसे शामिल हो गया है? मैं हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के लिए वापस अनुरोध कर रहा हूं।”
तो ऐसा क्या था, दिल्ली उच्च न्यायालय के इस फ़ैसले में जो इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा कर दिया। अगर हम संक्षेप में बताए तो दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था कि, “चूंकि हमारा विचार है कि UAPA की धारा 15, 17 या 18 के तहत कोई अपराध अपीलकर्ता के खिलाफ चार्जशीट और अभियोजन द्वारा एकत्र और उद्धृत सामग्री की प्रथम दृष्टया प्रशंसा पर नहीं बनता है, अतिरिक्त सीमाएं और धारा 43डी(5) यूएपीए के तहत जमानत देने के लिए प्रतिबंध लागू नहीं होते हैं और इसलिए अदालत सीआरपीसी के तहत जमानत के लिए सामान्य और सामान्य विचारों पर वापस आ सकती है।”
आखिर UAPA कानून की धारा 15 में ऐसा क्या है, जिसने कल भारत की न्याय व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है। UAPA एक्ट के सेक्शन 15 के अनुसार भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा, संप्रभुता को संकट में डालने के इरादे से भारत में आतंक फैलाने या आतंक फैलाने की संभावना के इरादे से किया कार्य आतंकवादी कृत्य है। इसमें बम धमाकों से लेकर जाली नोटों तक का कारोबार शामिल है। इसमें व्यक्ति को पांच साल से लेकर उम्र कैद की सजा तक का प्रावधान है।
ऐसे में हम उम्मीद करते है कि भविष्य में भी सुप्रीम कोर्ट UAPA कानून में किसी प्रकार का संशोधन करने की अनुमति नहीं देगा। यह कानून देश की सुरक्षा, अखंडता और संप्रभुता को बनाए रखने में सरकार की मदद करता है।