कोरोना के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में भारत का बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। कारण है भारत के पास Serum Institute of India और Bharat Biotech जैसे संस्थान, जो आए महीनों करोड़ों वैक्सीन का उत्पादन कर यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि दुनिया के प्रति व्यक्ति तक कोरोना और अन्य गंभीर बीमारियों के लिए उपयुक्त Vaccines पहुँच सके।
हालांकि, आज हम आपके सामने एक अन्य स्थिति का चित्रण करने जा रहे हैं, वह स्थिति जहां भारत के पास वैक्सीन उत्पादन का इतना विशाल इनफ्रास्ट्रक्चर होता ही नहीं! क्या होता अगर भारत में उसकी खुद की बनाई Covieshield और Covaxine जैसी Vaccines नहीं होती? आज भारत की तस्वीर एकदम अलग होती!
लेकिन आगे बढ़ने से पहले हमें बीते सोमवार को दिये गए पीएम मोदी के भाषण पर नज़र डालने की आवश्यकता है। अपने भाषण में भी पीएम मोदी ने इस स्थिति का ज़िक्र किया था। उनके बयान के अनुसार “हमारे पास अपनी वैक्सीन नहीं होती तो भारत जैसे बड़े देश में क्या होता?”
आप पिछले 50-60 साल का इतिहास देखेंगे तो पता चलेगा कि भारत को विदेशों से वैक्सीन प्राप्त करने में दशकों लग जाते थे। विदेशों में वैक्सीन का काम पूरा हो जाता था तब भी हमारे देश में वैक्सीनेशन का काम शुरू नहीं हो पाता था। लेकिन हमने इस समस्या के समाधान के लिए ‘मिशन इंद्रधनुष’ को शुरू किया है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर आज भारत के पास स्वदेशी वैक्सीन नहीं होती तो शायद भारत को अब तक वैक्सीन मिल भी नहीं पाती। वैक्सीन ना होने के कारण कोरोना महामारी देश में और अधिक विकराल रूप धारण कर लेती और न जाने कितने और मासूम लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता। पोलियो Vaccine के उदाहरण से इस स्थिति को समझा जा सकता है।
अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों ने वर्ष 1955 में ही Polio vaccine का उत्पादन कर उसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। दूसरी ओर भारत जैसे देश इस बीमारी से जूझते रहे। वर्ष 1979 आते-आते अमेरिका ने अपने आप को पोलियो-मुक्त देश घोषित भी कर दिया और भारत में उस दौरान दुनिया में सबसे अधिक केस दर्ज किए जाते थे।
इस सब के बाद वर्ष 1994 में 2 अक्टूबर के दिन, यानि अमेरिका के करीब 40 वर्षों बाद भारत में पोलियो वैक्सीनेशन का काम शुरू हो पाया था। उस वक्त की तुलना कीजिये, और आज की तुलना कीजिये और देखिये कि भारत कहाँ से कहाँ पहुँच चुका है।
अगर आज भारत के पास अपनी खुद की वैक्सीन ना होती, तो उसे, ज़ाहिर सी बात है, बाहर से ही Vaccine इम्पोर्ट करनी पड़ती! लेकिन बड़ा सवाल यह है कि भारत को इस समय वैक्सीन देता कौन? अमेरिका से लेकर यूरोप, सब पश्चिमी देश सबसे पहले अपने नागरिकों को वैक्सीन प्रदान करने की कोशिश में जुटे हैं।
आज अमेरिका में करीब 42 फीसदी आबादी को कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज़ प्रदान की जा चुकी है। इसके अलावा यूरोप के अधिकतर देश भी करीब-करीब 50 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन प्रदान कर चुके हैं।
यहाँ दिये हुए Map से आप दुनियाभर में जारी वैक्सीनेशन कैम्पेन का एक तुलनात्मक अध्यन्न कर सकते हैं।
इन सब देशों के भारत के बारे में क्या विचार हैं, वो भी आप समझ लीजिये! अप्रैल में अमेरिका ने भारत को झटका देते हुए कहा था कि वह भारत को वैक्सीन उत्पादन में इस्तेमाल किए जाने वाले कच्चे माल के निर्यात पर से प्रतिबंध नहीं हटा सकता।
यह तब हुआ था जब Serum Institute of India के CEO अदार पूनावाला ने ट्वीट कर अमेरिका से सहायता मांगी थी। सोचिए जो अमेरिका, भारत को कच्चा माल देने से मना कर रहा हो, वो क्या भारत को समय रहते वैक्सीन प्रदान कर पाता? कभी नहीं!
अब यूरोप की नियत भी देख लीजिये! जर्मन चांसलर एंगला मर्कल ने अप्रैल महीने में ही भारत को अकड़ दिखाते हुए कहा था कि भारत को इतना बड़ा फार्मा हब बनने की छूट हमने दी है, यानि जर्मनी ने भारत को फार्मा सेक्टर का सुपरपावर बनाया है। वह जर्मनी जो खुद आज बर्बादी के मुहाने पर खड़ा है, जिसकी विश्व में स्थिति कुछ खास बची नहीं है, वह यह दावे कर रहा था कि उसने भारत को खड़ा किया है।
मर्कल के बयान के अनुसार “बेशक, हमने भारत को इतने बड़े फार्मास्यूटिकल निर्माता बनने की अनुमति दी है। इस उम्मीद से कि भारत इसका सम्मान करेगा। यदि अब ऐसा नहीं होता है, तो हमें पुनर्विचार करना होगा।”
यह सुनकर जर्मनी पर केवल दया ही की जा सकती है! जर्मनी अपने आप को उस शीशे में देखकर खुश हो रहा है जहां हर बिल्ली को उसके प्रतिबिंब में एक शेर दिखाई देता है।
इसी यूरोप ने भारत और दक्षिण अफ्रीका की उस अर्जी को अस्वीकार करने का ऐलान किया था, जिसके तहत दुनियाभर की Vaccines के निर्माण हेतु IPRs यानि Intellectual Property Rights के बंधन आंशिक रूप से हट जाते! इसके जरिये दुनिया का कोई भी देश दुनिया की किसी भी वैक्सीन का उत्पादन बिना किसी Property Rights के झंझट के कर पाता और सभी को जल्दी और सस्ती vaccine प्राप्त होती।
यूरोप ने इससे भी मना कर दिया था, क्योंकि उनके अनुसार इससे उनकी कंपनियों को घाटा सहना पड़ता! हालांकि, अब वैश्विक दबाव के बाद यूरोप और अमेरिका ने IPR के waiver को समर्थन दे दिया है। जो यूरोप भारत को अकड़ दिखाता हो और IPR के मामले तक में टांग अड़ाने की कोशिश करता हो, उससे सहायता की उम्मीद नहीं की जा सकती।
तो भारत को वैक्सीन किससे मिलती? चीन से? वो चीन, जिसकी वैक्सीन पर उसके खुद के लोगों को विश्वास नहीं है! चीनी वैक्सीन ना सिर्फ घटिया हैं बल्कि खतरनाक भी हैं! चीनी वैक्सीन इस्तेमाल करने वाले देश जैसे UAE, बहरीन और सेशेल्स आज पछता रहे हैं। UK और सऊदी अरब जैसे देश तो चीनी वैक्सीन को मान्यता प्रदान करने से इंकार कर चुके हैं।
क्या भारत ऐसी घटिया वैक्सीन के लायक है? शायद नहीं! इतना ही नहीं, चीन भारत का सबसे बड़ा दुश्मन है। उन घटिया वैक्सीन के बदले में भी चीन भारत के सामने क्या-क्या मांग रखता, उसकी कल्पना ही की जा सकती है। दूसरी ओर भारत को रूस जैसा देश भी अपनी वैक्सीन प्रदान कर पाने में असफ़ल साबित होता क्योंकि उसके पास 135 करोड़ लोगों के लिए वैक्सीन उत्पादन करने का विशाल infrastructure मौजूद नहीं है। उसकी Sputnik V वैक्सीन की बड़ी मात्रा को भी भारत में ही बनाया जा रहा है।
अगर आज भारत के पास स्वदेशी Vaccines नहीं होती तो भारत को शायद दान में कुछ लाख वैक्सीन ज़रूर मिल पाती लेकिन 135 करोड़ लोगों के लिए वैक्सीन शायद आज से 10 सालों के बाद भी नसीब ना होती और भारत में ऐसे ही लाखों लोग हर साल अपनी जान से हाथ धोते रहते। भारत का शुक्र है कि आज भारत के पास Serum Institute of India और Bharat Biotech जैसे संस्थान हैं।