कश्मीर में इस्लामिस्टों के हाथों जबरन धर्मांतरण का शिकार होने वाली सिख लड़की को सिख समुदाय के ही कुछ लोगों द्वारा नकारा जा रहा है। ऐसा लगता है मानो इस्लामिस्टों के अवैध धर्मांतरण के मामले को दबाने का सारा जिम्मा सिख समुदाय के कट्टरपंथियों अथवा खालिस्तानियों ने अपने कंधे पर ले लिया है। इसके बावजूद धर्मांतरण का शिकार बनी लड़की के परिवार वालों ने हिम्मत नहीं हारी और उस लड़की को लव जिहाद के चंगुल से निकालकर ही दम लिया, लेकिन इस पूरे प्रकरण से यह ज़रूर साफ़ हो गया कि सिख विरोधी खालिस्तानियों ने अब खुले-आम देश-विरोधी इस्लामिस्टों से हाथ मिला लिया है, जो ना सिर्फ सिख समुदाय के लिए बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी बहुत बड़ा ख़तरा है।
कश्मीर में घटित घटना बेशक सिख समुदाय को चिंतित करने वाली है। हालांकि, इसके बावजूद अब तक सिख समुदाय के उच्चाधिकारियों ने इस्लामिस्टों की कड़ी निंदा करने से अपने आप को दूर ही रखा है। उदाहरण के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी यानि SGPC की अध्यक्ष बीबी जागीर कौर ने अपने बयानों में इस बात का बेहद खास ख्याल रखा कि उनके बयानों से सिखों और मुस्लिमों के बीच का तथाकथित मोह भंग ना हो पाये। इसके लिए उन्होंने सिख लड़की की पीड़ा को नकारने तक की कोशिश की।
उनके बयान के अनुसार “सिख होने के तौर पर यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपने बच्चों को जीवनभर सिख धर्म के अनुपालन के लिए प्रेरित करें। चूंकि लोकतंत्र में सबको अपने हिसाब से धर्म का पालन करने का अधिकार है, ऐसे में कोई किसी पर जबरन धर्मांतरण करने का दबाव नहीं बना सकता। SGPC के तहत हम अपने धर्म का प्रचार कर सकते हैं, लेकिन कोई किसी को धर्म की सीमाओं में बंधे रहने पर मजबूर नहीं कर सकता।”
Most families whose adult daughters elope, covert and have nikah, try to get her back before the court legally allows her to go with the man. They begin by trying to show her as a minor and mentally-unstable, and file FIR with kidnapping charges. When the police track her and +
— Swati Goel Sharma (@swati_gs) June 28, 2021
जागीर कौर के बयान से स्पष्ट है कि उन्हें सिख लड़की की कोई चिंता नहीं है, बल्कि उन्हें इस बात की चिंता ज़्यादा है कि इस प्रकरण से मुस्लिमों और सिखों के रिश्तों में कोई खटास ना आने पाये, जबकि खुलेआम इस्लामिस्ट सिखों को निशाना बना रहे हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इस्लामिस्टों का शिकार बनी लड़की अपने परिवार के साथ रहकर सिख धर्म का अनुपालन ही करना चाहती है। शब्दों से ज़्यादा ताक़त तस्वीरों में होती है और लड़की की घर-वापसी के बाद सामने आई उसकी तस्वीरों से यह साफ़ है कि वह अपने परिवार के साथ ज़्यादा खुश है न कि अधेड़ उम्र के मुस्लिम व्यक्ति के साथ शादी करने के बाद!
#Srinagar #lovejihaad की शिकार बच्ची का गुरुद्वारे में विवाह हो गया है। विदाई की कुछ EXCLUSIVE तस्वीरें: https://t.co/DhYSmjaYZf pic.twitter.com/duIBYNImLl
— Ajeet Bharti YouTube (@NijiSachiv) June 29, 2021
पीड़ित सिख लड़की के साथ अन्याय करने में शिरोमणि अकाली दल के नेता मंजिदर सिंह सिरसा ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। वे भी अपने बयानों से इस्लामिस्टों की निंदा करने की बजाय उनसे विनती करते हुए ही दिखाई दिये। उनके बयान के अनुसार “मैं श्रीनगर के सभी मुफ़्ती-मौलानाओं से पीड़ित सिख लड़की के समर्थन में आने की गुजारिश करता हूँ। CAA के प्रदर्शनों के दौरान सभी सिखों ने यह सुनिश्चित किया था कि मुस्लिम लड़कियां सकुशल अपने घरों में पहुँच सके, अबतक सिख लड़की के बचाव में किसी भी मुस्लिम ने आवाज़ नहीं उठाई है।”
सिरसा वही नेता हैं जो कभी लव जिहाद के खिलाफ बने कानून के लिए UP सरकार पर तंज़ कसते दिखाई दिये थे। उन्होंने कहा था कि क्या हिन्दू धर्म इतना कमजोर है कि उसे अपनी रक्षा के लिए एक कानून की ज़रूरत पड़ रही है।
I hope DSGMC President, Manjinder Singh Sirsa will withdraw his shameful statements targeting the Hindu faith when commenting on Uttar Pradesh’s interfaith marriage law because today, he wants the same law to be implemented in Kashmir to prevent Islamic conversions of Sikh women. pic.twitter.com/dE1ohZqf88
— Sonam Mahajan (@AsYouNotWish) June 27, 2021
CAA के दंगों के दौरान भी देश के खालिस्तानियों ने इस्लामिस्टों का भरपूर समर्थन किया था। यहाँ तक कि इन इस्लामिस्टों को गुरुद्वारों में नमाज़ अदा करने की छूट दी गयी थी और उन्हें बिरयानी तक परोसी गयी थी। उसके बाद से खालिस्तानियों ने लगातार खबरों में अपनी जगह बनाई है। यह किसी से छुपा नहीं है कि खालिस्तानियों की अधिकतर फंडिंग पाकिस्तान और ISI से ही आती है। कश्मीर के मामले में अगर पीड़ित सिख लड़की का परिवार न्याय के लिए सामने नहीं आता और अगर मीडिया की इस पर नज़र नहीं पड़ती, तो इस मामले को भी इस्लामिस्टों और खालिस्तानियों द्वारा “अंतर-धार्मिक विवाह” की आड़ में टरका दिया गया होता।