5 राज्यों में हुए चुनाव कांग्रेस में कई आंतरिक परिवर्तन लेकर आया है। यदि कांग्रेस उन राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करती जहाँ राहुल गांधी प्रचार करने गए थे तो कांग्रेस में गांधी परिवार के समर्थक तुरंत राहुल गांधी का जयगान करते हुए, पार्टी में उठ रही विरोध की आवाज को कुचल देते। यदि राहुल गांधी के प्रचार के बाद भी कांग्रेस हारती तो विरोध के स्वर और तेज होते तथा कांग्रेस में आंतरिक टकराव और बढ़ता। राहुल गांधी इस बात से पूरी तरह वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने केवल उन्हीं राज्यों में प्रचार किया जहाँ जीत की संभावना थी। उनका सारा ध्यान केरल और तमिलनाडु पर था, असम, प० बंगाल और पुडुचेरी से वह दूर रहे, लेकिन परिणाम आशा के अनुरूप नहीं आए।
असम और पुडुचेरी में तो कांग्रेस की करारी हार हुई, प० बंगाल में तो खाता तक नहीं खुला। केरल में कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ विरोध के बाद भी कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी और तमिलनाडु में उसका होना न होना बराबर था, क्योंकि चुनाव स्टालिन के नाम पर लड़ा गया। ऐसी दुर्गति के बाद राहुल गांधी ने अपनी नीति बदली है और पार्टी के पुराने नेताओं का सम्मान करना शुरू कर दिया है, जिससे विरोध और न बढ़े।
पार्टी ने तय किया है कि राज्यसभा के दो सीट पर पार्टी के पुराने नेताओं को तरजीह दी जाएगी। मीडिया रिपोर्ट की माने तो गुलाम नबी आजाद को तमिलनाडु से राज्यसभा भेजा जा सकता है। वहीं महाराष्ट्र के जरिये कांग्रेस को एक सीट मिली है, उसे लेकर कई नेताओं में कड़ी टक्कर है। सुरजेवाला पिछली बार राज्यसभा सांसद बनते बनते रह गए थे, उसके बाद से उन्होंने राहुल गांधी की लाइन का अक्षरसः पालन किया है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जी भर के कोसा है। ऐसे में उन्हें अपनी मजदूरी समय पर मिलने की उम्मीद है। वहीं उनके अलावा अजय माकन, राजीव शुक्ला आदि कई अन्य नेता भी उम्मीद में हैं। हालांकि, उम्मीद है कि यह सीट भी किसी वरिष्ठ नेता को दी जाएगी।
वास्तव में जितिन प्रसाद के जाने के बाद से गांधी परिवार भयभीत है। कांग्रेस के अन्य प्रभावी नेता, जो पीढ़ियों से कांग्रेस के वफादार रहे हैं, उनके टूटने की संभावना है। गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से विदाई के वक्त उनका प्रधानमंत्री मोदी के साथ जो संवाद हुआ था, उससे भी कांग्रेस आलाकमान डरा हुआ है, क्योंकि आजाद एक बड़े नेता हैं और इंदिरा गांधी के समय से कांग्रेस और गांधी परिवार के साथ रहे हैं। यदि उन्हें भी राहुल गांधी से त्रस्त होकर पार्टी छोड़नी पड़ जाती तो इसका कई वरिष्ठ नेताओं पर भी मनोवैज्ञानिक असर पड़ता। यही कारण है कि राहुल गांधी ने इस लड़ाई में पीछे हटने का फैसला किया है।
वहीं लोकसभा में भी नेता प्रतिपक्ष की सीट अधीर रंजन चौधरी से छिन सकती है। प० बंगाल में पार्टी ने जैसा प्रदर्शन किया है, उसे देखते हुए मनीष तिवारी या अन्य किसी नेता को यह जगह दी जा सकती है, लेकिन यह आवश्यक नहीं, हो सकता है कि राहुल गांधी स्वयं को आगे करने के लिए नेता प्रतिपक्ष बने और मनीष तिवारी जैसे लोगों को पार्टी में महत्वपूर्ण पद मिले। जो भी हो दो बातें लगभग तय हैं। एक तो अधीर रंजन को हटाया जाना, दूसरा राहुल गांधी की स्थिति कमजोर होना, क्योंकि राहुल गांधी को मजबूरी में नेता प्रतिपक्ष बनना पड़ा तो यह तो उनका अपमान ही हुआ, आखिर गांधी परिवार में पैदा हुआ बच्चा या तो कांग्रेस अध्यक्ष बनता है, या प्रधानमंत्री बनता है।
अब इतना अवश्य कहा जा सकता है कि गांधी परिवार की शक्ति कमजोर हो रही है। इसी कारण उन्हें गुलाम नबी आजाद के सामने झुकना पड़ा। हो सकता है की उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद संगठनात्मक चुनाव भी हों। कपिल सिब्बल ने जल्द से जल्द संगठनात्मक चुनाव करवाने की मांग रखी है और जिस प्रकार कांग्रेस से उसके नेता दूर हो रहे हैं, संगठनात्मक बदलाव गांधी परिवार की मजबूरी बन चुका है।