जम्मू बम विस्फोट : घाटी में फिर से अस्थिरता की साजिश
देश में आतंकवादी हमले में रविवार तड़के जम्मू में भारतीय वायु सेना स्टेशन पर एक संदिग्ध ड्रोन से दो विस्फोटक गिराए गए। रिपोर्ट के अनुसार, दोपहर 1.37 बजे और 1.42 बजे हुए दो बैक-टू-बैक विस्फोट में वायु सेना के दो जवान घायल हो गए। यह आतंकी कोशिश ऐसे समय में आई है जब प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ दिनों पहले ही जम्मू-कश्मीर के मामलों के लिए वहां के नेताओं से बैठक की थी। ऐसा लगता है कि ये कश्मीरी नेता फिर से अलगाववादियों को भड़काने में जुट गए हैं, जिससे घाटी में एक बार फिर से अस्थिरता आ जाये। इसका कारण है कश्मीर मुद्दे और 370 पर केंद्र का स्पष्ट रुख।
दरअसल, कुछ दिनों पहले जब कश्मीर के राजनीतिक दलों के साथ बैठक हुई थी तब यह साफ तौर पर स्पष्ट कर दिया गया था कि अनुच्छेद 370 वापस से बहाल नहीं किया जाएगा। अब रही बात जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की, तो उस पर भी केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि यह पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर के नेताओं के आचरण पर निर्भर करता है। कुल मिलाकर अगर हम इस बैठक के निष्कर्ष की बात करें तो- सबसे पहले परिसीमन (Delimitation) से जुड़ी प्रक्रिया होगी, उसके बाद चुनाव प्रक्रिया होगी, फिर अगर संभव हो, तो जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा।
इन कदमों से उन कश्मीरी नेताओं की एक नहीं चलने वाली, जिनका मकसद ही अलगाववाद पर रोटी सेकना था। इसी कारण यह प्रतीत होता है कि ये नेता एक बार फिर से अलगाववादियों को भड़काने में जुट गए। यही कारण है कि आतंकियों ने एक बार फिर से आतंकी हमलों की कोशिश शुरू कर दी है जिसका एक नमूना भारतीय वायु सेना स्टेशन पर एक संदिग्ध ड्रोन से दो विस्फोटक गिराए जाने से मिला।
PDP ने फिर अलापा पाकिस्तान राग
भारतीय वायुसेना ने बताया कि जम्मू वायु सेना स्टेशन के तकनीकी क्षेत्र में रविवार तड़के ‘कम तीव्रता वाले दो विस्फोट” हुए। इनमें से एक विस्फोट के कारण एक बिल्डिंग की छत को नुकसान हुआ, जबकि दूसरा विस्फोट खुले क्षेत्र में हुआ।’ वायु सेना ने कहा, ‘किसी भी उपकरण को कोई नुकसान नहीं हुआ।
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इस बैठक से नाराज गुपकार अलायंस के नेताओं में से PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने “पाकिस्तान राग” अलापा था। महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि, सरकार अगर तालिबान से बात कर सकती है तो पाकिस्तान से क्यों नहीं? मुफ्ती ने कहा है कि, “प्रधानमंत्री को पाकिस्तान के साथ बातचीत करनी चाहिए जिससे कि कश्मीर को लेकर कोई हल निकल सके और इस क्षेत्र में शांति स्थापित हो सके।“
वहीँ मीडिया से बातचीत में नेशलन कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि, “हमें पहले डिलिमिटेशन (परिसीमन) उसके बाद चुनाव और फिर राज्य का दर्जा मंजूर नहीं है। हम पहले परिसीमन फिर राज्य का दर्जा और तब जाकर चुनाव चाहते हैं।”
सबसे ऊंची डिमांड स्टेटहुड (राज्य का दर्जा)
कांग्रेस नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते वक्त कहा कि, “ सबसे ऊंची डिमांड स्टेटहुड (राज्य का दर्जा) की होगी। ये एजेंडे में सबसे ऊपर होगा। संसद के पटल पर भी इसका वादा किया गया था। पूर्ण राज्य, उपराज्यपाल वाला राज्य नहीं।”
आतंक फैला कर राज्य में अलगाववाद की बीज बोने वाले अलगाववादी नेता जम्मू-कश्मीर को चुनाव से पहले ही राज्य के दर्जें की मांग इसलिए कर रहे हैं, ताकि फिर वे अपनी मनमानी कर सके। राज्य में इनके लिए अलगाववाद ही एक सहारा है जिससे इनकी रोजी रोटी चलती है। पाकिस्तान की तर्ज पर इनके बयान से उन संगठनों को भी बल मिलेगा जो कई महीनों से राज्य में एक बार फिर से आतंक फ़ैलाने की ताक में है।
कांग्रेस और गुपकार अलायंस के नेताओं और नेत्री की बातों से नहीं लगता यह लोग जम्मू-कश्मीर के हित के बारे में सोचते हैं, या फिर राज्य में अमन और शांति चाहते हैं। वे वापस से राज्य को आतंकवाद और पाकिस्तान के चंगुल में धकेलना चाहते हैं। यही कारण है कि उन्होंने फिर से अलगाववाद हो बढ़ाना शुरू किया है। इसी का परिणाम बम विस्फोट के रूप में आमने आया है।