इंडियन ऑयल ने हरियाणा के पानीपत में कंपनी के रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स में भारत के प्रथम स्टाइरीन मोनोमर प्रोजेक्ट लगाने के लिए मंजूरी दे दी है। IOC इस प्रोजेक्ट पर 4500 करोड़ रुपये खर्च करेगा। यह 3,87,000 मीट्रिक टन की क्षमता वाला प्लांट होगा। आपको बता दें, स्टाइरीन का इस्तेमाल पॉलीस्टाइरीन, एक्रेलिक रेसिन, पेंट आदि बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।
अभी भारत में स्टाइरीन की वर्तमान मांग 9 लाख मीट्रिक टन की है एवं आने वाले वर्षों में इसके बढ़ने की संभावना है। भारत अपनी जरूरत का स्टाइरीन पश्चिम एशिया, दक्षिण-पूर्वी एशिया, सिंगापुर आदि जगहों से मंगवाता है। ऐसे में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का एक बड़ा हिस्सा इसके आयात पर खर्च हो जाता है।
एक अनुमान के मुताबिक भारत जो प्लांट पानीपत में लगा रहा है, वह अकेले ही भारत के लिए 500 मिलियन डॉलर की बचत करेगा। कंपनी की ओर से कहा गया है कि, “प्रोजेक्ट 2026-27 तक कमीशन हो जाएगा। स्टाइरीन की घरेलू उपलब्धता डाउनस्ट्रीम इंडस्ट्री के विकास में सहयोग देगी जिससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे।“
डाउनस्ट्रीम इंडस्ट्री के भीतर उन उद्योगों को रखा जाता है जो पेट्रोलियम के सह-उत्पाद हैं। इंडियन ऑयल बोर्ड पानीपत रिफाइनरी के विस्तार के लिए लगातार काम कर रहा है। फरवरी माह में रिफाइनरी की क्षमता को 15 मिलियन मीट्रिक टन सालाना से बढ़ाकर 25 मिलियन मीट्रिक टन सालाना करने के लिए 32,946 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। इंडियन ऑयल, रिफाइनरी का विस्तार करके LPG, स्टाइरीन जैसे पेट्रोलियम पर आधारित वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाना चाहता है।
स्टाइरीन का सबसे ज्यादा उपयोग पैकेजिंग मैटेरियल, इलेक्ट्रिकल इंसुलेशन, घरों में इंसुलेशन, फाइबर ग्लास, प्लास्टिक पाइप्स, ऑटोमोबाइल पार्ट्स, चाय के कप, कालीन आदि बनाने में उपयोग होता है। अतः भारत में विनिर्माण क्षेत्र का जैसे-जैसे विस्तार होगा वैसे-वैसे स्टाइरीन की मांग भी बढ़ेगी।
यह परियोजना मोदी सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए अत्यंत प्रभावशाली साबित होगी क्योंकि इससे महत्वपूर्ण सामग्री के लिए विदेशों पर भारत की निर्भरता कम हो जाएगी, जिनकी मांग आने वाले वर्षों में तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। इंडियन ऑयल कार्पोरेशन देश का सबसे बड़ा तेल शोधक है और पेट्रोकेमिकल क्षेत्र में आयात पर देश की निर्भरता को कम करने के लिए पिछले कुछ वर्षों में इसने कई बड़ी परियोजनाओं में निवेश किया है।
इससे पहले इसने महाराष्ट्र के रत्नागिरी रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स (RRPCL) परियोजना को पुनर्जीवित करने और उसमें तेजी लाने के लिए 44 बिलियन डॉलर्स का भारी निवेश किया था। RRPCL परियोजना को वेस्ट कोस्ट रिफाइनरी भी कहा जाता है, वो दुनिया की सबसे बड़ी ग्रीनफील्ड ऑयल रिफाइनरी परियोजना होगी। सऊदी की अरामको और अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (एडनोक) इस परियोजना में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी रखेगी। अन्य प्रमुख कंपनियों में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (BPCL), और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (HPCL) जैसे भारतीय तेल कंपनियां होंगी। इस परियोजना के लिए 14,675 एकड़ क्षेत्र में की आवश्यकता थी, भूमि अधिग्रहण की समस्याओं के कारण अटक गई थी।
भारत के पास संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, रूस के बाद दुनिया की चौथी सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी क्षमता है। अमेरिका की रिफाइनिंग क्षमता 841 MTPA है, जबकि चीन की क्षमता 589 MTPA है। एशिया की उत्पादन क्षमता में अकेले चीन की हिस्सेदारी 41 प्रतिशत है जबकि रूस की क्षमता 282 MTPA है। भारत के पास 266 MTPA उत्पादन क्षमता है और जल्द ही भारत रूस से आगे निकल सकता है। वेस्ट कोस्ट रिफाइनरी परियोजना क्षमता को 60 प्रतिशत तक बढ़ाएगी। भारत की इस क्षेत्र में आयात पर निर्भरता के कारण मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से पेट्रोकेमिकल क्षेत्र पर सरकार का प्रमुख फोकस रहा है।
प्रतिवर्ष, भारत को 100 अरब डॉलर से अधिक धन केवल तेल पेट्रोकेमिकल क्षेत्र के आयात के लिए खर्च करना पड़ता है। पेट्रोकेमिकल क्षेत्र में सुधार से बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होगा और आयात पर निर्भरता कम होगी, जिससे भारत का विदेशी मुद्रा भंडार से भी दबाव कम होगा।