अफगानिस्तान और तालिबान की लड़ाई में पाकिस्तान ने कबाब में हड्डी बनकर वही भूल की है, जो 1971 में उसने अपनी इच्छा बांग्लादेश के निवासियों पर जबरदस्ती थोपकर की थी। जबसे अफगानिस्तान के राजनयिक की बेटी का पाकिस्तान में अज्ञात हमलावरों द्वारा अपहरण और यातना की खबर सामने आई है, अफगानिस्तान भली-भांति समझ चुका है कि तालिबान को बचाने के लिए पाकिस्तान किसी भी हद तक जा सकता है। लेकिन अफगानिस्तान ने भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली है। अब वह चाहता है कि भारत इस खेल में उसका संकटमोचक बने। इसके लिए उन्होंने एक बेहद अनूठा मार्ग चुना है। अमरुल्लाह सालेह के इस ट्वीट को देखिए –
We don't have such a picture in our history and won't ever have. Yes, yesterday I flinched for a friction of a second as a rocket flew above & landed few meters away. Dear Pak twitter attackers, Talibn & terrorism won't heal the trauma of this picture. Find other ways. pic.twitter.com/lwm6UyVpoh
— Amrullah Saleh (@AmrullahSaleh2) July 21, 2021
1971 की इस विश्व प्रसिद्ध कुटाई को याद दिलाते हुए अफगानिस्तान के उप राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह के ट्वीट के अनुसार, “देखिए, हमारे इतिहास में ऐसी कोई तस्वीर नहीं है, और हम आशा करते हैं कि ऐसी कोई तस्वीर न हो। जब एक रॉकेट हम लोगों के ऊपर से गुज़रा, तो स्वभाव अनुसार मैं भी थोड़ा विचलित हुआ। इसलिए ज्यादा प्रसन्न न हो पाकिस्तानियों। तालिबान और आतंकवाद इस तस्वीर के घावों को नहीं भर पाएंगे। कोई और तरीका ढूँढे।”
यहाँ पर अमरुल्लाह सालेह के व्यंग्यबाण का आशय स्पष्ट है – भारत को पाकिस्तान और तालिबान के गठजोड़ से निपटने में अफगानिस्तान की सहायता के लिए सक्रिय रूप से आगे आना ही होगा, जैसे 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के बांग्ला भाषी निवासियों के लिए वह आगे आया था। तब 13 दिनों तक चले भीषण युद्ध के पश्चात 16 दिसंबर 1971 को भारत ने लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्लाह खान नियाज़ी को लगभग 93000 पूर्वी पाकिस्तान के सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण करने पर विवश किया था। इसी दिन को भारत और बांग्लादेश दोनों में ही विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
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अमरुल्लाह सालेह के इस ट्वीट की टाइमिंग भी बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि अभी कुछ ही दिन पहले यह घोषणा हुई थी कि अफगानिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल वली मोहम्मद अहमदजाई भारत के सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवाने से मिलेंगे। अफगानिस्तान सेनाध्यक्ष भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल से भी मिल सकते हैं। आधिकारिक तौर पर ये कूटनीतिक मुलाकात है, लेकिन अफ़गान तालिबान की बढ़ती सक्रियता को देखते हुए सैन्य सहायता पर भी चर्चा हो सकती है।
जब से जो बाइडन के प्रशासनिक अकर्मण्यता के कारण तालिबान ने फिर से अफगानिस्तान में सिर उठाना शुरू किया है, दक्षिण एशिया में भारत के लिए भी समस्याएँ बढ़ गई हैं। रही सही कसर पाकिस्तान ने पूरी कर दी, जो भारत पर दबाव बढ़ाने के उद्देश्य से आतंकी गुटों को पूरा बढ़ावा दे रहा है।
अब यदि भारत को दक्षिण एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करना है, तो उसे ये लड़ाइयाँ स्वयं लड़नी होगी। कुछ लोगों को भय है कि कहीं ये 1987 के श्रीलंका गृह युद्ध की तरह भारत के लिए विनाशकारी न सिद्ध हो। परंतु दोनों की परिस्थिति और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में बहुत अंतर है। तब वह युद्ध हमारे सैनिकों पर थोपा गया था, और यहाँ हमारे सैनिक बिना किसी ठोस तैयारी के नहीं जाएंगे। ऐसे में अब देखना यह होगा कि अफगानिस्तान के इस प्रस्ताव का भारत किस प्रकार से जवाब देता है और किस प्रकार से भारत इस समस्या का समाधान करता है, ये देखना दिलचस्प होगा।