बकरीद के कारण केरल में हालत बिगड़ी तो आ गए वामपंथी अपने आकाओं की रक्षा करने वामपंथियों को एक बात के लिए प्रशंसा का पात्र तो बनाना ही पड़ेगा। देश के प्रति वे निष्ठावान हो या नहीं, परंतु अपने विचारधारा, और अपने आकाओं के प्रति उनकी निष्ठा पर कोई सवाल तक नहीं उठा सकता। हाल ही में बकरीद के नाम पर दी गई ढील के कारण केरल में कोविड के बढ़ते मामलों में जबरदस्त उछाल आया। अब जैसे ही केरल की विजयन सरकार को उनकी अकर्मण्यता के लिए घेरा जाने लगा, किसी फुटबाल टीम के मजबूत डिफेंस की भांति आ गए वामपंथी अपने आकाओं के बचाव में।
लेकिन आखिर हुआ क्या? दरअसल, केरल में हाल ही में ईद उल अज़हा के नाम पर केरल की वर्तमान कम्युनिस्ट सरकार ने तुरंत पाबंदियों में कुछ दिनों की ढील दे दी थी। वुहान वायरस की दूसरी लहर जबसे भारत में आई थी, तबसे प्रशासनिक लापरवाहियों के कारण केरल में कभी हालत सुधरी ही नहीं। रही सही कसर वैक्सीन के प्रति कम्युनिस्ट सरकार की आनाकानी ने पूरी कर दी, जिसके कारण केरल में प्रतिदिन 16000 से अधिक सक्रिय मामले दर्ज होते थे। लेकिन बकरीद में मिली ढील के बाद केरल में मिलने वाले नए मामलों में जबरदस्त उछाल आया, और आजकल प्रतिदिन 20000 से भी अधिक नए मामले इस राज्य में देखने को मिल रहे हैं।
इसका अर्थ स्पष्ट है – केरल में कभी हालात सुधरे ही नहीं, और विजयन सरकार की घोर लापरवाही के कारण भारत को संभावित तौर पर तीसरी लहर के दुष्परिणाम भी झेलने पड़ सकते थे। लेकिन इन सब से वामपंथियों को कोई फरक नहीं पड़ता। उन्हें तो अपने आकाओं को किसी भी स्थिति में आलोचना के घेरे में आने से रोकना है।
उदाहरण के लिए इंडियन एक्सप्रेस के लेख को ही देख लीजिए।
उक्त लेख का शीर्षक है, “केरल में केवल 44 प्रतिशत लोग ही अब तक कोविड से ग्रसित हुए हैं, जबकि मध्य प्रदेश में 79 प्रतिशत तक लोग इससे संक्रमित हुए हैं।” इस शीर्षक के जरिए इंडियन एक्स्प्रेस ये जताना चाहता है कि केरल में व्यवस्था इतनी बढ़िया है कि अब तक केवल 44 प्रतिशत लोगों को ही कोरोना हुआ है, जबकि मध्य प्रदेश जैसे राज्य [जहां भाजपा का शासन है] में 79 प्रतिशत लोग कोविड से संक्रमित हुए हैं। हालांकि, सत्य तो कुछ और ही है। असल में ये लेख पूर्णतया भ्रामक है। जिस लेख के जरिए केरल का गुणगान करने के प्रयास हो रहे हैं, उस लेख में ही इंडियन एक्सप्रेस के दावों की पोल खोली गई है।
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असल में सीरो सर्वे देशभर में इस बात का सर्वेक्षण करता है कि कोरोना के कारण कितने राज्य ऐसे हैं, जहां के लोगों में कोरोना से लड़ने योग्य एंटी बॉडी विकसित हुई है। इसी लेख के अनुसार यह संख्या मध्य प्रदेश और राजस्थान में सर्वाधिक है। अब सोचिए, देश में सबसे कम एंटी बॉडी किस राज्य के लोगों में होगी? निस्संदेह केरल में! लेकिन इसी बात को इंडियन एक्सप्रेस ने बड़े सफाई से अपने प्रोपगैंडा के जरिए छुपाने का प्रयास किया है।
लेकिन ये तो कुछ भी नहीं है। वामपंथियों ने इस ‘केरल मॉडेल’ के बचाव में ऐसे ऐसे तर्क दिए हैं कि आपका गुस्से के मारे बाल नोचने का मन कर जाए। उदाहरण के लिए राजदीप सरदेसाई के इन ट्वीट्स को ही देख लीजिए –
For those (genuinely) trying to understand the Kerala story of Covid, here is an explanation. Better to read sero survey data than go to a WhatsApp university. https://t.co/VMx2SCqoOB
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) July 29, 2021
9 PM: Has Kerala failed the COVID test or is it a victim of its own success in observing COVID protocols? ‘Real’ Experts decode the Kerala paradox. Hope twitter ‘experts’ will watch!👇@IndiaToday News without the noise https://t.co/2GFjuqMRl3
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) July 29, 2021
एक ट्वीट में जनाब ये जताना चाहते हैं कि केरल के कोविड मॉडेल की सफलता के लिए ‘भक्त मंडली’ उसे निशाना बना रहे हैं। वहीं दूसरे ट्वीट में सीरो positivity पर ज्ञान देते हुए वे केरल की ही पोल खोल बैठते हैं। सच कहें तो अब वामपंथियों के अपने आकाओं को बचाने के लिए कोई ठोस तर्क नहीं बचे हैं। जिस प्रकार से संसद में तृणमूल काँग्रेस को हिंसा का और वामपंथियों को केरल के कोविड पर लचर प्रदर्शन का बचाव करने के लिए कुतर्कों का सहारा लेना पड़ रहा है, उससे ये बात शत प्रतिशत स्पष्ट होती है। लेकिन इसके बीच अगर कोई पिस रहा है तो, वो है केरल की जनता।