बद्रीनाथ धाम का वास्तविक इतिहास
हिंदुस्तान में वैसे तो सनातन धर्म के कई पवित्र स्थान हैं। कई धार्मिक स्थान हैं जोकि बहुत महत्वपूर्ण हैं लेकिन चार धाम सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। चार धाम हैं- बद्रीनाथ धाम, द्वारका धाम, जगन्नाथ पुरी धाम, रामेश्वरम धाम। बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड में स्थित है। बद्रीनाथ धाम, सनातन धर्म में आस्था रखने वाले हर भक्त के लिए बहुत पवित्र स्थल है। अब कुछ मौलवी इस पर भी अपना दावा जता रहे हैं। मौलवियों का कहना है कि बद्रीनाथ धाम दरअसल मुसलमानों की पवित्र जगह है।
मौलवी इसे बदरुद्दीन शाह बता रहे हैं। इतिहास पलट कर देखा जाए तो सनातन धर्म के महाकाव्यों जैसे महाभारत और दूसरे धर्म ग्रंथों में बद्रीनाथ धाम का उल्लेख मिलता है। बेर के घने वन होने के कारण इस क्षेत्र का नाम बदरी वन पड़ा। बद्रीनाथ धाम अथवा बद्रीनारायण मन्दिर उत्तराखण्ड के चमोली जिले में अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि जब गंगा मां, पृथ्वी पर अवतरित हुईं तो पृथ्वी उनका प्रबल वेग सहन न कर सकी।
गंगा मां की धारा बारह जल मार्गों में विभक्त हुई। उसमें से एक है अलकनंदा का उद्गम। भगवान विष्णु जब अपने ध्यान-योग हेतु उचित स्थान खोज रहे थे, तब उन्हें अलकनन्दा के समीप यह स्थान बहुत भा गया। इसके बाद उन्होंने माता पार्वती से यही स्थान अपने लिए मांग लिया तथा यही भगवान विष्णु का निवास स्थान बना और बद्रीनाथ धाम कहलाया। मान्यता यह भी है कि यहीं किसी गुफा में महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की और पांडवों के स्वर्ग जाने से पहले यही उनका अंतिम पड़ाव था। यही नहीं इस मंदिर को दोबारा अपने स्वरुप में लाने में आदि शंकराचार्य और रानी अहिल्याबाई का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
अब पढ़िए मौलवी द्वारा गढ़ा गया काल्पनिक इतिहास
सनातन धर्म के इस पवित्र स्थल पर कुछ मौलवियों ने बेवजह विवाद खड़ा कर दिया है। कुछ मौलवियों का कहना है कि यह बद्रीनाथ धाम मंदिर नहीं बदरुद्दीन शाह धार्मिक स्थल है और इसे मुसलमानों को सौंप देना चाहिए। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें यह दावा किया गया। हालाँकि यह वीडियो पुरानी है लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि पहले बद्रीनाथ मंदिर की आरती को एक मुसलमान द्वारा लिखे जाने के बाद अब इस मंदिर को ही उनका बताया जा रहा है। यह सबकुछ अचानक नहीं हुआ है बल्कि उत्तराखंड में एक खास वर्ग के बढती जनसंख्या के कारण हुआ है।
आज सोशल मीडिया के दौर में किसी भी व्यक्ति या वर्ग की सच्चाई अधिक दिनों तक छद्म नहीं रह सकती है। किसी न किसी स्वरुप में वह बाहर आ ही जाती है। यही हाल मौलवियों का हो रहा है। एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें एक स्कल कैप के साथ मौलवी यह दावा करता नजर आ रहा है कि “हिन्दुओं को इतिहास का ज्ञान नहीं है। वह बद्रीनाथ धाम नहीं बदरुद्दीन शाह के नाम पर है। नाम के अंत में ‘नाथ’ जोड़ने मात्र से यह स्थान हिंदुओं के धार्मिक स्थल के रूप में परिवर्तित नहीं होगा। मुसलमानों का पवित्र स्थान है। वह हमारा धार्मिक स्थल है, हम उस पर जाकर कब्ज़ा कर लेंगे।“
https://twitter.com/TejpalRawat14/status/1418951452412743685
यही नहीं कुछ दिनों पहले ही बद्रीनाथ धाम से कुछ दूरी पर नमाज़ भी पढने का दावा किया गया था जिसे पुलिस ने जांच में नकार दिया था। इसी विवाद के बाद यह वीडियो पुनः वायरल हुआ।
सदियों पुराने पवित्र बद्रीनाथ धाम पर कब्ज़ा करने की मंशा से झूठा इतिहास परोसा गया
हालाँकि यह वीडियो कुछ वर्ष पुरानी है और पुलिस संज्ञान ले रही है। परन्तु प्रयोजन स्पष्ट है कि सदियों पुराने इस पवित्र बद्रीनाथ धाम पर कब्ज़ा। यह सर्वविदित है कि जहां भी यह संप्रदाय बहुसंख्यक है, वहाँ यह अपनी इच्छा दूसरे धर्मों के अनुयायियों पर थोप देते हैं। उत्तराखंड के कुछ जिलों में भी यही हो रहा है और ये संप्रदाय धीरे-धीरे अपनी संख्या कई गुने की रफ़्तार से बढ़ा रहा है।
Old video, nevertheless this represents the threat that our hills in particular and entire north in general face – onus to counter this and deal with it lies with us citizens- govt will help but demand has to come from society https://t.co/3FpIaVA8Li
— Alok Bhatt (Modi Ka Parivar) (@alok_bhatt) July 25, 2021
वर्ष 2015 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में मुस्लिम समुदाय की दशकीय वृद्धि दर हिंदुओं की तुलना में करीब ढाई गुनी थी। तब उत्तराखंड में मुस्लिम समुदाय की दशकीय वृद्धि दर करीब 39 प्रतिशत थी। वहीं हिंदुओं की यह दर करीब 16 प्रतिशत ही थी। अब जिस तरह की हिमाकत मौलवी ने वीडियो में दिखाई है उससे तो यह प्रतीत होता है कि यह आंकडे और भी अधिक हो सकते हैं।
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इस वीडियो के सामने आने के बाद उत्तराखंड में कठोर भू-कानून की मांग तेज़
इसी पर आलोक भट्ट नामक एक ट्विटर यूजर ने लिखा, “यह पुराना वीडियो है, फिर भी यह उस खतरे को स्पष्ट करता है जो पूरे उत्तर और विशेष रूप से हमारी पहाड़ियों के सामने आने वाला है। इसका मुकाबला करने और इससे निपटने के लिए हम नागरिकों को सामने आना होगा और मांग करनी होगी।” यह सच भी है जब तह उत्तराखंड के युवा स्वयं इस आन्दोलन का हिस्सा नहीं बनेंगे, उनके इतिहास पर इसी तरह कोई और दावा कर चढ़ाई कर देगा। उसके बाद न तो उनकी संस्कृति बचेगी और न ही जीवन पद्धति। पहले मंदिर की आरती और फिर अब बद्रीनाथ धाम मंदिर पर ही दावा एक विशेष वर्ग के आक्रान्ता की मानसिकता को दर्शाता है
इस वीडियो के सामने आने के बाद उत्तराखंड में ‘भू कानून’ लाने की उनकी मांग और तेज़ हो गई है। बता दें कि उत्तराखंड की जनता एक लंबे समय से राज्य में भू कानूनों यानी डोमिसाइल कानून की माँग कर रही है। इस कानून के आने के बाद ही उत्तराखंड की भूमि एवं पहाड़ी सभ्यता की रक्षा की जा सकेगी। भू-अध्यादेश अधिनियम अभियान के तहत उत्तराखंड के लोगों ने प्रदेश सरकार से हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड में कठोर भू-कानून बनाने की मांग की है।
उनका कहना है कि यदि उत्तराखंड को भू-माफियाओं से बचाना है तो दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस ओर कार्य करना होगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण, पलायन व भू-कानून को लेकर जल्द ही सरकार व पार्टी आपस में विचार-विमर्श करेगी। यानी अब यह देखना है कि राज्य सरकार कब इस बेहद महत्वपूर्ण विषय पर संज्ञान लेते हुए एक ठोस कानून बनाती है।