आखिरकार चीन ने स्वीकार किया कि गलवान घाटी में उसकी जमकर धुलाई हुई। 15 जून 2020 को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों ने घात लगाकर भारतीय सेना के बिहार रेजीमेंट के सैनिकों पर घातक हमला किया था। बदले मे पास में ही स्थित भारतीय सेना के अन्य जवानों ने जो कुछ भी हाथ लगा, उससे चीन पर जबरदस्त हमला किया, और चीन के ‘नन्हे मुन्हे’ गुंडों को छठी का दूध याद दिला दिया।
अब एक वर्ष बाद चाहे मुंह फुलाके, या अपनी लाज बचाने के लिए, परंतु चीनी प्रशासन को स्वीकार करना ही पड़ा है कि भारतीय सेना ने गलवान घाटी में आक्रमणकारी चीनी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। दरअसल, चीनी प्रशासन के मुखपत्र कहे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स ने गलवान घाटी में मारे गए कुछ चीनी सैनिकों से जुड़ी जानकारियाँ और उनकी निजी बातें सार्वजनिक की है।
ग्लोबल टाइम्स के रिपोर्ट के एक अंश अनुसार, “इनमें से एक का नाम चेन होंगजुन है। उसके वरिष्ठ अधिकारी क्वी फाबाओ को भारतीय सेना ने घेर लिया था।चेन होंगजुन इसके बाद अपने दो सैनिकों के साथ उस तरफ बढ़े, लेकिन इस दौरान भारतीय सेना उन पर लगातार पत्थरबाजी कर रही थी और लाठी-डंडों से पीट रही थी।”
चीनी मीडिया का कहना है कि चेन होंगजुन ने अपने शरीर पर ये सब झेला।
चीनी मीडिया का दावा है कि, “उनके कई जवानों को भारतीय सेना द्वारा ‘घेर लिए जाने’ किए जाने के बाद चीनी सेना ने उन्हें छुड़ाने के लिए हमला बोला। उस वक़्त चीनी सेना के जवान सिर्फ साथ जीने-मरने की ही सोच रहे थे और इसीलिए कम लोगों के साथ ही उनकी गलवान में ‘जीत’ हुई।”
इसी रिपोर्ट में आगे लिखा था कि, “चीनी सेना के जवानों ने इस उद्धरण का पालन किया कि ‘आप निश्चित रहें मेरी मातृभूमि, मैं सीमा पर आपकी सुरक्षा के लिए हूँ’।‘ चेन होंगजुन और उनके 4 साथियों ने जिम्मेदारीपूर्वक बहादुरी दिखाते हुए अपनी जान दे दी। ये लोग काराकोरम की पहाड़ी पर तैनात थे। CPC ने 1 जुलाई, 2021 को वीं वर्षगाँठ से पहले उन्हें अपना सर्वोच्च सम्मान दिया। इस युद्ध में मारे गए अन्य सैनिकों के योगदानों को भी सम्मान दिया गया।”
इस रिपोर्ट का उद्देश्य एक ही है – किसी भी तरह चीनियों को यह भरोसा दिलाया जा सके कि गलवान घाटी में चीनियों को कोई नुकसान नहीं हुआ था। हालांकि, इस प्रयास में चीन ने एक बार फिर अपने आप को ही बेनकाब किया है। उन्हे अप्रत्यक्ष तौर पर ही सही, पर यह स्वीकारना पड़ा है कि 15 जून की रात भारतीय सेना ने चीनी PLA के गुंडों की अकड़ धूल में मिला दी थी।
बता दें कि, दौलत बेग ओलडी में चल रहे सड़क निर्माण को लेकर चीनी प्रशासन ने काफी आपत्ति जताई थी, जिसके चलते 2020 के प्रारंभ में उन्होंने भारत पर सैन्य दबाव बढ़ाने का प्रयास किया था। पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना ने घुसपैठ का प्रयास भी किया था। परंतु भारतीय सेना ने उन्हे मुंहतोड़ जवाब भी दिया था। जब चीनी सेना किसी भी प्रकार से भारतीयों को झुकाने में सफल नहीं हो पाई तो उन्होंने गलवान घाटी में भारतीय सेना पर हमला करने की भारी भूल की।
निस्संदेह इस हिंसक झड़प में भारतीय सेना ने 20 से अधिक सैनिक गँवाए, परंतु चीनी खेमे में भारतीयों ने बिना एक गोली चलाए ऐसा त्राहिमाम मचाया, कि आज भी चीन अपने वास्तविक मृतकों की संख्या बताने से हिचकिचा रहा है। इस रिपोर्ट में भी बड़ी सफाई से चीन ने वास्तविक मृतकों की संख्या छुपाई है। हालांकि, ये चीन के लिए कोई नई बात नहीं है। जब 1967 के भारत चीन युद्ध में नाथु ला और चो ला के मोर्चों पर चीन ने आक्रमण किया था, तो भारतीय सेना ने प्रत्युत्तर में इतना भयानक हमला किया कि चीन के सैनिकों को सर छुपाने तक की जगह नहीं मिली। ये तब था जब माओ जेडोंग की शक्ति अपने चरम पर थी।
1967 में अक्टूबर में सिक्किम में चो ला में तो भारत की सेना ने चीन को इतनी बुरी तरह कूटा कि जिस जगह पर चीन ने धावा बोला था, वहाँ से तीन किलोमीटर पीछे वह खुद ही हट गया। आज तक चीन ने उस सीमा का उल्लंघन नहीं किया है। दिलचस्प बात तो यह है कि चीन ने गलवान घाटी की भांति आज तक यह कभी नहीं बताया कि चो ला में उसके कितने सैनिक माओ जेडोंग के सत्ता की लालसा की भेंट चढ़ गए थे, जबकि भारतीयों का आधिकारिक दावा था कि चो ला के युद्ध में कम से कम 350 से अधिक चीनी मारे गए थे।
ऐसे में जिस प्रकार से ग्लोबल टाइम्स ने अप्रत्यक्ष रूप से ये स्वीकारा है कि भारतीय सेना ने गलवान घाटी में PLA के अकड़ की धज्जियां उड़ा दी थी, वो न सिर्फ हमारे सेना के पराक्रम का प्रमाण है, बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि वर्तमान सरकार झूठ नहीं बोल रही थी। इसके बाद भी कुछ लोग हैं, जो सिर्फ मोदी विरोध में देश के दुश्मनों की जयजयकार तक करने को तैयार हैं।