दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार किसी भी मुद्दे को हल करने से ज्यादा राजनीतिक एजेंडा चलाती है, और कुछ ऐसा ही दिल्ली मे पानी की समस्या को लेकर भी हो रहा है। दिल्ली में पानी की लगातार किल्लत बढ़ रही है, जिसको लेकर दिल्ली जल बोर्ड के प्रमुख राघव चड्ढा ने हरियाणा सरकार पर यमुना का पानी रोकने और आपूर्ति न करने का आरोप लगाया है। दिल्ली सरकार अब इस मामले में हरियाणा सरकार के अधिकारियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुकी है। आप सरकार का कहना है कि हरियाणा के अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश कीअवमानना की है। वहीं, हरियाणा सरकार ने दिल्ली के जल संकट को दिल्ली सरकार की विफलता बताते हुए है कहा कि दिल्ली में पानी का मिस मैनेजमेंट होता है।
दरअसल, दिल्ली में यमुना का स्तर पहले से बेहद कम हो गया है, जिससे राज्य में पानी की एक बड़ी किल्लत देखने को मिल रही है। इसको लेकर दिल्ली जल बोर्ड के प्रमुख और आप नेता राघव चड्ढा ने कहा है दिल्ली के अलग-अलग ट्रीटमेंट प्लांट्स में यमुना का जलस्तर कम हो गया है। उन्होंने कहा कि वजीराबाद पॉन्ड पर यमुना का जलस्तर 674.5 फीट होना चाहिए, जबकि ये घटकर 667 फीट पर आ गया है। उनके अनुसार दिल्ली में पूरी यमुना नदी सूख गई है। इसी कारण चंद्रवाल वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 90 एमजीडी से घटकर 55 एमजीडी, वजीराबाद प्लांट की 135 एमजीडी से घटकर 80 एमजीडी हो गई हैं। वहीं, ओखला प्लांट की क्षमता में भी बड़ी गिरावट आई है जो अब 20 एमजीडी से घटकर 12 एमजीडी रह गई है।
राघव चड्ढा ने इस मामले में सारा आरोप हरियाणा सरकार पर मढ़ते हुए कहा, “हरियाणा सरकार ने उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्देशित दिल्ली के लोगों के कानूनी हक को रोका है, क्योंकि उन्होंने यमुना में पानी की आपूर्ति कम कर दी है। इसके कारण तीन प्रमुख जल शोधन संयंत्रों से प्रतिदिन कम जल आपूर्ति हो रही है।” उन्होंने कहा, “उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर ऊपरी यमुना नदी बोर्ड (यूवाईआरबी) ने हरियाणा को दिल्ली की पानी की आवश्यकता से 150 क्यूसेक अधिक की आपूर्ति करने का निर्देश दिया था, लेकिन अतिरिक्त पानी की तो बात ही छोड़िए, हरियाणा जरूरत की पूर्ति भी नहीं कर रहा है।”
वहीं, इन आरोपों को हरियाणा सरकार ने खारिज करते हुए कहा है कि हरियाणा अपनी तरफ से दिल्ली को दिक्कतों के बावजूद जरूरत के अनुसार पानी भेज रहा है। हरियाणा सरकार के प्रवक्ता ने कहा, “मानसून में देरी के कारण यमुना नदी में पानी न उपलब्ध होने के कारण और दिल्ली में जल प्रबंधन की कुव्यवस्था के चलते दिल्लीवासियों को पानी के संकट का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली सरकार अपनी नाकामी छुपाने के लिए झूठी राजनीतिक बयानबाजी कर रही है।”
गौरतलब है कि 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा और दिल्ली के बीच पानी विवाद को लेकर आदेश दिया था कि दिल्ली की पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए हरियाणा द्वारा वजीराबाद बैराज में पानी के स्तर को क्षमता के अनुसार ही रखा जाए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा को दिल्ली को 330 क्यूसेक पानी अतिरिक्त देने लिए भी कहा था। हरियाणा सरकार का कहना है कि वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कर रही है।
और पढ़ें- SC के पैनल द्वारा Oxygen घोटाले के खुलासे के बाद केजरीवाल चाहते हैं कि अब सब इसे भूल जाएँ
इसके विपरीत पानी की किल्लत को लेकर दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता के नेतृत्व में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर प्रदर्शन किया। आदेश गुप्ता चुनौती दे चुके हैं कि अगर दिल्ली में जल संकट दूर नहीं हुआ तो बीजेपी उनके ही घर का पानी कनेक्शन काट देगी। दिल्ली सरकार जल संकट के लिए हरियाणा सरकार पर पानी रोकने का आरोप लगाकर खुद को पाक साफ बता रही है, जबकि हरियाणा सरकार ने एक बार फिर दिल्ली की पानी के मिसमैनेजमेंट की समस्या को उजागर कर दिया है, क्योंकि विशेषज्ञ भी इस समस्या को दिल्ली सरकार की ही देन बता रहे हैं।
दिल्ली सरकार के 2017 के इकॉनमिक सर्वे की बात करें तो उसमें साफ कहा गया था, कि दिल्ली में मिसमैनेजमेंट के चलते करीब 20 प्रतिशत पीने के पानी की बर्बादी होती है। वहीं, विशेषज्ञों के अनुसार ये आंकड़ा करीब 30 प्रतिशत तक का है। साफ है कि दिल्ली और हरियाणा के बीच पानी का मुद्दा प्रतिवर्ष गर्माया रहता है, लेकिन इस बार जब दिल्ली में जल संकट ज्यादा गहराने लगा तो अपनी गलतियों का ठीकरा फोड़ते हुए दिल्ली सरकार हरियाणा सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई है।
सच तो ये है कि जल संरक्षण से लेकर आपूर्ति तक के प्रबंधन में दिल्ली सरकार पीने के पानी की सबसे अधिक बर्बादी करती है। वहीं अब जब पानी की किल्लत है तो दिल्ली सरकार किल्लत को दूर करने की बजाए इस मुद्दे पर राजनीतिक लाभ हासिल करने की कोशिश कर रही है।