महाराष्ट्र में सबकुछ सही चल जाए ऐसा इन तीन भिन्न-भिन्न प्रकार के विचारों वाली सरकार में होता तो मुमकिन नहीं दिखता है। जी हां, यहाँ बात उसी महाविकास अघाड़ी सरकार की हो रही है, जिसमें तीन भागीदार पार्टियां कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी हैं। यूं तो अबतक ये लोग पार्टी और राजनीतिक लोभ-प्रलोभन की वजह से आंतरिक लड़ाई लड़ रहे थे पर अब तो सरकार नीतियों और छात्रों के भविष्य के साथ भी 20-20 खेलती नज़र आ रही है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को मुंबई विश्वविद्यालय (एमयू) को फटकारा और ‘प्रथम दृष्टया’ के तहत कहा कि विश्वविद्यालय के ‘पिछले सेमेस्टर के औसत अंकों’ के आधार पर LAW पाठ्यक्रमों के पहले के परिणामों को वापस लेने और इसे ‘असाइनमेंट-आधारित मूल्यांकन’ में बदलने का निर्णय इस महामारी में बिलकुल ‘अन्यायपूर्ण’ है।
युवा कांग्रेस प्रवक्ता लाटोया मिस्ट्रल फर्न्स ने महाराष्ट्र की शिक्षा मंत्री और कांग्रेस विधायक वर्षा गायकवाड़ के निर्णय के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में Writ याचिका दायर कर दी। जब तक इस याचिका को दायर किया गया तब तक 50 प्रतिशत से अधिक छात्रों द्वारा असाइनमेंट जमा किया जा चुका था, तो वहीं 50 प्रतिशत छात्र ऐसा नहीं कर पाये थे।
दरअसल, शिक्षा मंत्री और मुंबई विश्वविद्यालय द्वारा लिये गये निर्णय के पलटने से उन छात्रों पर असर पड़ा, जिन्हें वापस लौटन पड़ा और बेतरतीब ढंग से असाइनमेंट जमा करने के लिए मजबूर होना पड़ा। शिक्षकों को वापस बुलाया गया और कम समय में ही पेपर का मूल्यांकन करने के लिए मजबूर किया गया, जो अनुचित है।
बात इतनी सी है कि पहले मुंबई विश्वविद्यालय ने INTERNALS और पूर्व के परिणामों के आधार पर छात्रों को पास कर दिया, जिसके बाद छात्रों ने अपने आगे की गतिविधियों को बढ़ाते हुए, नए कोर्सों में आवेदन देकर दूसरे कॉलेजों में प्रवेश लिया था। अब हुआ यह है कि मुंबई विश्वविद्यालय ने अपने फैसले को पलटते हुए छात्रों को वापस आकर अपने ASSIGNMENT और PROJECTS जमा करने के लिए निर्देश दिये हैं, जो पूरी तरह से छात्रों का शोषण और उनके साथ हो रही प्रताड़ना है और कुछ नहीं। वहीं, दूसरी ओर जब दबाव बढ़ा था तो छात्रों को विवश होकर अपने ASSIGNMENT पूरे कर विश्वविद्यालय में जमा करने पड़े, और जिससे अन्य छात्रों पर स्वाभाविक रूप से दबाव डला।
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पिछले साल, बढ़ते कोविड -19 मामलों और अंततः लॉकडाउन के कारण, सभी विश्वविद्यालय के छात्रों (अंतिम सेमेस्टर के छात्रों को छोड़कर) को पिछले सेमेस्टर में उनके प्रदर्शन के आधार पर अगले सेमेस्टर में पदोन्नत किया गया था।
मुंबई विश्वविद्यालय ने तर्क दिया कि उसका CIRCULAR बीसीआई द्वारा जारी निर्देशों पर आधारित था। तदनुसार, कोर्ट ने बार काउंसिल को निर्देश दिया था कि “क्या विश्वविद्यालय को जारी किए गए निर्देशों को वापस लिया जा सकता है या संशोधित किया जा सकता है, इस तथ्य के मद्देनजर विभिन्न सेमेस्टर में बड़ी संख्या में छात्रों के परिणाम को घोषित कर दिया गया।”
अधिवक्ता आशुतोष कुलकर्णी ने कहा कि बीसीआई के प्रस्तुतीकरण के आधार पर, मुंबई विश्वविद्यालय कानून के छात्रों के असाइनमेंट-आधारित मूल्यांकन से संबंधित अपने परिपत्र को वापस ले लेगा।
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बेंच ने कुलकर्णी का बयान दर्ज किया कि सर्कुलर वापस ले लिया गया है और पिछले सेमेस्टर और आंतरिक अंकों में प्राप्त औसत अंकों के आधार पर परिणाम बहाल कर दिया गया है। कोर्ट ने छात्रों द्वारा उठाई गई समस्याओं को बीसीआई के बयान के आधार पर कहा, “बीसीआई द्वारा जारी किए गए निर्देशों के कारण छात्रों पर गहरा मानसिक दबाव पड़ा, उसके परिणामस्वरूप सही परिप्रेक्ष्य में बड़ी संख्या में कानून के छात्रों के भाग्य को देखते हुए उनके हित में इस मामले को हल किया गया था।”
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जो परिणाम पहले ही घोषित हो चुके हैं, उन्हें रद्द नहीं किया जा सकता है।
न्यायालय ने प्रथम दृष्टया में राय दी थी कि विभिन्न सेमेस्टर के संबंध में जो परिणाम पहले ही 22 मई, 2020 को घोषित किए गए थे, उन्हें वापस नहीं लिया जा सकता था और छात्रों को आगे के मूल्यांकन के उद्देश्य से असाइनमेंट जमा करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता था।
ज्ञात हो कf, मुंबई विश्वविद्यालय के एक छात्र से TFI को एक मेल प्राप्त हुआ था जिसमें सैकड़ों छात्रों के गुस्से और बेबसी बयां किया था।
मेल में कहा गया कि- “इस कहानी का हर पात्र कांग्रेस पार्टी का पदाधिकारी है। बीजेपी ने कोई इसे क्यों नहीं उठा रहा है? मुझे नहीं पता! लेकिन दुर्भाग्य से, मैं अब हैरान नहीं हूं। इस देश को बचाना आप जैसे सच्चा ईमानदार मीडिया पर निर्भर है, न कि चीन के कठपुतली वामपंथी मीडिया पर।”
इस पूरे प्रकरण में सबसे पहला हाथ अघाडी से कांग्रेस की मंत्री वर्षा गायकवाड का था जिसके द्वारा पहले प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी थी और फिर उन्हीं की पार्टी की प्रवक्ता छात्रों की हितेशी बनकर छात्रों के साथ खड़ी होकर छलावा करती दिखीं। इससे सरकार और पार्टी दोनों की फजीहत में निश्चित ही वृद्धि हुई है। इससे यह तो साफ है कि इस महाविकास अघाड़ी के बीच की सिर फुटव्वल अब इनके राजनीतिक फ़ायदों ही नहीं, राज्य के नीतिगत फैसलों में भी अड़ंगी डाल रहे हैं जिससे इनका तो कुछ नहीं पर राज्य की जनता का बहुत नुकसान हो रहा है।