मोदी कैबिनेट में हुए फेरबदल में बीजेपी ने बिहार की राजनीति में भी अपने समीकरण साधने की कोशिश की है। नीतीश ने कैबिनेट विस्तार को लोक जनशक्ति पार्टी पार्टी और चिराग पासवान को कमजोर करने का प्लेटफार्म बनाना चाहा था, लेकिन भाजपा ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया। दरअसल, नीतीश कुमार चाहते थे कि LJP में नीतीश के करीबी और चिराग पासवान के विरुद्ध बगावत का झंडा बुलंद करने वाले, चिराग के ही चाचा, पशुपति पारस को LJP के कोटे से मंत्री बनाया जाए। इसके साथ ही JDU को भी कम से कम 4 मंत्री पद मिलें। भाजपा ने नीतीश कुमार की ऐसी कोई भी मांग स्वीकार नहीं की। इस प्रकार चिराग की राजनीति को खत्म होने से एक तरह से बचा लिया।
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का ग्राफ लगातार गिर रहा है। हालांकि वो आज भी एक लोकप्रिय नेता हैं लेकिन इसके पीछे उनकी छवि का योगदान कम और विकल्पहीनता का योगदान अधिक है।
बिहार ने लंबे समय तक लालू का जंगलराज देखा, जिसके बाद नीतीश का राज आया और उन्हें काफी पसंद किया गया। धीरे-धीरे नीतीश कुमार की सुशासन की छवि खत्म होती चली गई।
भाजपा की कोशिश है कि नीतीश को धीरे-धीरे ऐसे ही कमजोर होने दिया जाए, जिससे JDU का वोट बैंक भाजपा में शिफ्ट हो जाए। इसके लिए भाजपा ने विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोलकर बैठे चिराग का साथ दिया था।
हालांकि बीजेपी ने ये साथ सीधे तौर पर नहीं बल्कि अप्रत्यक्ष तौर पर दिया था। भाजपा को उम्मीद थी कि चिराग नीतीश को चुनावी नुकसान पहुचाएंगे और चिराग ने यह काम बखूबी किया भी। JDU की सीटें घटने का बहुत बड़ा कारण चिराग भी थे।
इसके बाद ही चिराग को राजनीतिक रूप से अक्षम बनाने के लिए नीतीश ने LJP में विरोध की पटकथा रची। रामविलास पासवान की मौत के बाद उनके भाई पशुपति पारस और बेटे चिराग में विरासत की जंग छिड़ गई।
नीतीश चाहते थे कि बगावती नेता पशुपति पारस को भाजपा कैबिनेट में शामिल कर ले, इस प्रकार उन्हें वही स्थान दिया जाए जो कभी रामविलास पासवान को दिया गया था। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बीजेपी ऐसा करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हुई।
दरअसल, बीजेपी अगर ऐसा करती तो चिराग पासवान को बहुत बड़ा राजनीतिक नुकसान होता, जोकि बीजेपी चाहती नहीं थी। बीजेपी चिराग पासवान को वक्त पड़ने पर राजनीतिक इस्तेमाल करने के लिए बचाए रखना चाहती है। ऐसे में कहा जा रहा है कि बीजेपी ने पशुपति पारस को जेडीयू के कोटे से मंत्री बनाया है।
ऐसे में ‘एलजेपी के कोटे से मंत्रीपद किसे दिया जाए?’ यह निर्णय करने की शक्ति अभी किसी को नहीं दी गई है। समय पर यह शक्ति चिराग को देकर भाजपा LJP पर उनके दावे का समर्थन कर सकती है।
इस प्रकार अगर देखा जाए तो बीजेपी ने चिराग पासवान को आखिरी राजनीतिक झटका लगने से बचा लिया है, वहीं नीतीश को कोई विशेष लाभ भी नहीं हुआ। उल्टे JDU के कोटे से जितने मंत्री बन सकते थे वह भी नहीं बन पाए।
नीतीश चाहते थे कि JDU को चार मंत्री पद मिले लेकिन वह भी नहीं हुआ, उल्टे एक हिस्सा पशुपति पारस को देकर JDU ने अपनी ही शक्ति कम की है, जबकि चिराग को इससे विशेष नुकसान भी नहीं हुआ।