आधुनिकता के दौर में सबसे बड़ा शस्त्र संचार माध्यम ही हैं, जिसे बोलचाल की भाषा में मीडिया कहा जाता है। समय काल परिस्थिति बदलने की वजह से मीडिया को मनचाहे ढंग से दो हिस्सों में विभाजित कर दिया गया है। आज यही धड़ों में बंटा मीडिया एक दूसरे को लीलने को आतुर है, ताज़ा मामला दैनिक भास्कर समूह और भारत समाचार चैनल पर पड़े इनकम टैक्स और ईडी के रेड़ का है। देश में मीडिया के दो धड़ों में वर्गीकृत होने की ही वजह से आम जन को वास्तविक तथ्य नहीं मिल पा रहे हैं कि वाकई यह मामला है क्या? क्या ये पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की आजादी पर चोट है? ऐसा महिमामंडन करके सरकार को इसका जिम्मेदार बताने का प्रयत्न किया जा रहा है। जबकि बात इतनी सीधी और सरल है “नहीं”। जो शोर दैनिक भास्कर और भारत समाचार के दफ्तरों पर हुई रेड़ के चलते पूरे आभामंडल में गुंज रहा है, वही जी न्यूज जैसे संस्थान पर हुई रेड पर लेश मात्र न बोले और जनवरी 2021 पर क्यों मौन थे?
दरअसल, लिबरलों ने आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय दोनों की सामान्य जाँच के लिए की गईं रेड़ को सरकार का विद्वेश के तहत उठाया गया कदम बताना शुरु कर दिया। इन दोनों ही संस्थानों को “दैनिक भास्कर और भारत समाचार” पर ‘कर चोरी’ की शिकायतें प्राप्त हुईं थी, जिसके बाद आगे के कदम उठाते हुए I-T और ED ने इनके दफ्तरों सहित, इनके प्रमुख चेहरों के घरों पर रेड़ डाली। बस रेड़ डली नहीं के रोना शुरु, इन दोनों संस्थानों ने इसे सरकार की ओर से प्रयोजित साजिश करार कर दिया।
कारवां आगे बडा, और राजनीतिक गोताखोर भी इसमें आ गए। फिर तो क्या विपक्षी पार्टियों के अध्यक्ष, राज्यों के मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक, सभी ने इस पूरे घटनाक्रम को मोदी सरकार की खीज़ का परिणाम बताना शुरु कर दिया। एक वामप्रेमी समूह “The Wire” ने अपनी रिपोर्ट में कुछ ऐसा ही लिखा और इसी तरह मीडिया के अधिकरों की बातें करने वाले समूहों और विपक्षी सांसदों का कहना है कि- “यह कदम प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है।” गलत काम का गलत नतीजा होता है, यदि टैक्स की चोरी हुई ही नहीं है तो दैनिक भास्कर को क्या ही डर होना चाहिए और क्या ही भारत समाचार को।
यह तथाकथित मीडिया समूह अपने हर पक्ष को ऐसे परोसते हैं जैसे सत्यवादी हरिश्चंद्र के वंशज हों, जबकि इन्हीं के FACTS AUR FIGURES पर सबसे ज़्यादा PRESS INFORMATION BUREAU (PIB) का FAKE NEWS का ठप्पा लगता है। इनकी स्वीकार्यता उतनी ही है जितनी स्वरा भास्कर की बॉलीवुड में है। ये उन्हीं तथ्यों को चुनते हैं जिनसे भारत की छवि खराब हो सके।
गौरतलब है कि, दिल्ली और मुंबई की आयकर विभाग की टीमों द्वारा गुरुवार (22 जुलाई 2021) को तड़के 4:30 बजे दैनिक भास्कर के भोपाल, इंदौर, जयपुर, अहमदाबाद और महाराष्ट्र में स्थित 40 से ज्यादा ठिकानों पर रेड़ की कार्रवाई की गई। मीडिया समूह द्वारा टैक्स चोरी की सूचना मिलने पर आयकर विभाग ने यह कार्रवाई की थी।
हालाँकि, टैक्स से संबंधित अनियमितता के मामले में रेड़ होने पर एक बार फिर से वही ‘प्रेस की आजादी पर कायरतापूर्ण हमला’ और ‘आपातकाल’ का रोना शुरू हो गया। जिनमें वाम समर्थित चैनल और उनकी रोटी से पल रहे कुछ विशेष धड़ों ने विलाप शुरू कर दिया।
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ये सब लोग उनके लिए हमदर्द बनके आते हैं, जिनके एजेंडे में इनका सिर FIT बैठता है, तभी तो अर्णब गोस्वामी जैसे पत्रकार को घर से गिरफ्तार करके ले जाने पर कुछ न बोलने वाले, ज़ी मीडिया समूह के “ZEEL” पर हुई रेड पर मुंह में दही जमा लेने वाले आज अभिव्यक्ति की आज़ादी खतरे में है की दुहाई देते दिख रहे हैं। जो इनके दोगलेपन को दर्शाता है और कुछ नहीं। “कर चोरी” जैसे मामलों में मीडिया समूहों पर कई बार गाज गिरती है पर कागज़ सही होने और स्वयं गलत का सारथी न होने की वजह से जांच में वे समूह निर्दोष पाये जाते हैं। इस सामान्य प्रक्रिया को सरकार की बदले की भावना बताने वालों को अभी “ठंडा” पीने की ज़रूरत है क्योंकि जिस तीव्रता से यह चंद लिबरल उछलते हैं, उससे ज़्यादा ज़ोर से सच्चाई सामने आने पर ये मुंह के बल गिरते हैं।
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, अभिनेता जावेद अख्तर और ऐसे कई नामी-गिरामी लोगों ने इस घटना के बाद मोदी सरकार को हमेशा की ही तरह संविधान और लोकतन्त्र विरोधी बता दिया। हालाँकि, यह सभी जनवरी में “ज़ी समूह” पर हुई रेडों और अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी पर चुप थे।
रेड के बाद दैनिक भास्कर समूह के प्रमुख संपादक ओम गौर ने इनकम टैक्स विभाग पर यह आरोप मढ़ दिये कि इनकम टैक्स विभाग के अधिकारी कार्यालयों की तलाशी के दौरान अखबार में छापी जाने वाली खबरों में बदलाव और संपादकीय पर निर्णय लेने का सुझाव दे रहे थे। इन आरोपों को सरासर झूठा ठहराते हुए और आईटी विभाग द्वारा कहा गया कि विभाग के प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए जांच दल ने सिर्फ “कर चोरी” से जुड़े दैनिक भास्कर समूह के वित्तीय लेन-देन की जांच और रेड़ की है, अन्य सभी आरोप गलत हैं।
इस पूरे प्रकरण पर कई वरिष्ठ पत्रकारों के लेख आए जिनमें पूर्व में दैनिक भास्कर में कार्यरत रहे L N SHITAL की फेसबुक पोस्ट काफी चर्चा में रही है। उसमें उन्होंने भास्कर समूह पर कई सवाल उठाए हैं और सीधा कहा है कि मीडिया भी एक इंडस्ट्री ही है, जैसे किसी भी व्यवसायिक क्षेत्र में नियमित तौर पर रेड पड़ती हैं, उसी का एक भाग यह भी है। यहाँ रेड पड़ने से जिनके पेट में मरोड़े उठ रहे हैं वो पहले सच्चाई से रूबरू हों।
बात का सार इतना सा है कि वाम ब्रिगेड अपने एजेंडे के आगे किसी भी प्रमाणित खबर को झुठलाकर उसका विपरीत एंगल निकालकर परोस देते हैं जैसे इस घटनाक्रम में हुआ।