गमछे का इतिहास और महत्व
पिछले वर्ष कोरोना संकट शुरू होने के बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चौथी बार देश को संबोधित किया था तब उनका मुंह गमछे से ढका था। तब प्रधानमंत्री देश को यह संदेश देना चाहते थे कि कोरोना से बचाव के लिए गमछे का इस्तेमाल किया जा सकता है। हमारे देश में गमछे का उपयोग कई तरह से किया जाता है। देश के उत्तर पूर्वी क्षेत्रों से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश तथा दक्षिण भारत के परिधान संस्कृति का यह अभिन्न अंग रहा है। आज प्राचीन भारतीय कपड़ों के स्वर्णिम इतिहास के दूसरे अंक में हम बात करेंगे गमछे की।
गमछा या गमोसा भारतीय संस्कृति के स्वर्णिम परिधान इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कहा जाता है कि जो महत्व माँ के आंचल का है, वही महत्व पिता के गमछे का भी है। बेटी की विदाई के समय उसकी आंखो से आँसू पोछना हो या बच्चों को जलती धूप से बचाने के लिए छाँव करनी हो, पिता गमछे का ही उपयोग करते है।
भारत में गमछे का उपयोग
भारत के लगभग हर राज्य में गमछे का उपयोग होता है। कोरोना के बाद जब से प्रधानमंत्री ने स्वयं सार्वजनिक स्थानों पर गमछे का उपयोग आरंभ किया है तब से गमछे का प्रचलन और अधिक बढ़ा है। रंगीन चेक वाला गमछा सबसे अधिक प्रचलित है परंतु पूरे भारत में भिन्न-भिन्न प्रकार के गमछे पाये जाते हैं। उनके नाम, बनावट, और रूपांकन भिन्न होता हैं, परंतु वे प्रतीकात्मक अर्थ और उपयोग में एक ही हैं। गमछे की अपनी अलग संस्कृति और परंपरा रही है। गमछे किसान के शरीर में उर्जा के संचार का माध्यम रहा है। कठिन-से-कठिन काम की शुरुआत करने से पहले किसान और श्रमिक अपने माथे पर गमछे को कसकर संकल्प की गांठ बांधते हैं। कुछ लोग इसे कमर में भी बांधते हैं।
गमछे या गमूचा आमतौर पर लाल, नारंगी या हरे रंग के चेक और धारीदार पैटर्न के साथ पाया जाता है । उड़ीसा और असम में लाल (कशीदाकारी या प्रिंटेड) किनारा के साथ सफेद गमछे प्रचलित है जिसे गमोसा भी कहा जाता है तथा गले में पहना जाता है। यह दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘गा’ जिसका अर्थ है शरीर और ‘मूसा’ जिसका अर्थ है पोंछना। इसे पुरुष बिहू नर्तक द्वारा एक छोटी पगड़ी के रूप में पहना जाता है; सामान्य पुरुष भी इसे औपचारिक अवसरों के दौरान गले में या कंधों पर पहनते हैं।
भारत के उत्तरी भाग में गमछे के प्रकार
असम में परंपरागत रूप से दो प्रकार के गमोसा बुने जाते हैं। इन्हें ‘उका’ (Uka) और ‘फूलम’ (Phulam) कहते हैं। उका सादे रंग का गमछा होता हैं, जिनका प्रयोग प्राय: गर्मियों में और नहाने के बाद किया जाता है। बिहुवान, टियोनी गामोसा, पानी गामोसा, अनाकोटा गामोसा, टेलोस गामोसा, जोर गामोसा भी गमोसा के ही अलग-अलग प्रकार हैं।
फूलम का प्रयोग विशेष अवसरों पर किया जाता है। बिहू (रंगोली बिहू) जैसे त्यौहार के समय, फूलम को उपहार स्वरूप प्रदान किया जाता है। इस पर स्थानीय फूल व फसलों की कलाकृतियां बने रहने के कारण इसे फूलम कहते हैं। गमोसा का उपयोग मेहमानों का अभिवादन और अभिनंदन करने और आदर दिखाने के लिए किया जाता है। माना जाता है कि असम में अपनेपन और आदर सत्कार के लिए फूल माला की जगह गमछे देना सम्मान का प्रतीक है।
मणिपुर में गमछा खुदेई(Khudei) तथा लेंगयान(Lengyan) के रूप में जाना जाता है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने वीडियो संदेश में “मणिपुरी लेंगयान” ही मास्क के रूप में पहना था। वहीं कपास की खुदेई (Khudei) कई किस्मों में उपलब्ध है जैसे सादा तथा चेक के साथ। मैटई (Meetei) लोगों द्वारा खुदेई को कमर के पास पहना जाता है और यह फानेक से अलग होता है जिसे महिलाओं द्वारा पहना जाता है। कुछ प्रकार के खुदेई का हर दिन उपयोग किया जाता है, तो अन्य को औपचारिक अवसरों के लिए निर्धारित किया जाता है।
रिकुटु (Rikutu) गमछा त्रिपुरा में वयस्क पुरुषों की पारंपरिक वेशभूषा का अभिन्न अंग है।
उत्तर प्रदेश और बिहारी गमछे, गमची या अंगौछी कहलाते हैं और मुख्य रूप से चार रंगों में उपलब्ध होते हैं- लाल, गुलाबी, ऑफ-व्हाइट और व्हाइट- और आमतौर पर यह सूती का बना होता है। कपड़ा या तो सादा होता है या चेक और धारियों के बीच अलग-अलग डिजाइन के होते हैं।
ओडिशा में भी, गमछे का उपयोग अभिवादन करने के लिए किया जाता है और कुछ स्थानीय हाथ से बुनी हुई किस्मों में डिजाइन भी प्रचलित है। सरला दास ने उड़िया महाभारत में भी गमछे के उपयोग को बताया है।
दक्षिण भारत में अंगवस्त्रम
दक्षिण भारत में, गमूचा अधिक मोटा होता है और विभिन्न रंगों में उपलब्ध होता है। यहां तक कि घर के बने हल्के फर तौलिये को भी लोकप्रिय रूप से गमछे कहा जाता है। दक्षिण भारत में गमछे को एक सम्मान का वस्त्र माना जाता है जिसे “अंगवस्त्रम” कहा जाता है। सामान्य तौर पर अंगवस्त्रम कपास और रेशम दोनों से बुना जाता है।
तमिलनाडु में, इसे थुंडू कहते है जो नीले, हरे और भगवे रंग में बुना जाता है। वहीं केरल की ओर बढ़े तो इसे “थोरथ मुंडू” के नाम से जाना जाता है और इसे मलयाली लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार के उपयोगों के लिए उपयोग किया जाता है।
पश्चिमी क्षेत्रों में, गमूचा मुख्य रूप से लाल रंग में बनाता है और सादे कपड़े की तरह होता है। पंजाब में इसका उपयोग पगड़ी और सूती तौलिये के रूप में भी किया जाता है। वे इसे पारना कहते हैं
सिर्फ एक तौलिया से ज्यादा, भारतीय उपमहाद्वीप में सार्वजनिक जीवन के लिए गमछे आंतरिक महत्व रखता है तथा दैनिक जीवन और लोककथाओं में स्थान रखता है। प्राचीन भारत में, यात्री यात्रा करते समय उसमें भोजन ले जाने के लिए गमछे का उपयोग करते थे। यह धार्मिक समारोहों के दौरान भारतीय देवताओं को दी जाने वाली आवश्यक वस्तुओं में से एक है।
शहरी तथा मध्यवर्गीय परिवार में मोटे तौलिये के स्थान पर अब धीरे-धीरे सूती गमछे ने ले ली है। आज, गांवों और सड़कों पर गमछे देखने की सबसे अधिक संभावना है, जहां पुरुष अपने सिर पर लपेटकर चलते हैं या अपने कंधों पर रख कर चलते हैं।
और पढ़ें- प्राचीन भारतीय कपड़ों का स्वर्णिम इतिहास। अध्याय 1 – पगड़ी
कोरोना काल में इसकी उपयोगिता
कोरोना महामारी के बाद तो यहां इसकी उपयोगिता कई गुना बढ़ी है। गर्मी हो या ठंड या फिर कोरोना इन सभी से बचने के लिए गमछा कारगर हथियार रहा है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इन दिनों 80 प्रतिशत लोग मास्क के विकल्प के रूप में गमछे का उपयोग कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब लॉकडाउन तीन के समय जब राष्ट्र के नाम वीडियो संदेश जारी किया था तब उन्होंने अपने चेहरे पर गमछे लपेट रखा था। उनका स्पष्ट संदेश था कि कोरोना से इस लड़ाई में कैसे हमारा पारंपरिक परिधान का एक भाग हथियार साबित हो सकता वह भी गमछे के रूप में। उनके द्वारा मास्क के स्थान पर गमछे के उपयोग ने आम जनमानस को भी अपने सामान्य जीवनशैली में गमछे के उपयोग पर गर्व महसूस करने का अवसर दिया। तब त्रिपुरा के सीएम बिप्लप देब ने लोगों से इसके बजाय जल गमछे का उपयोग करने के लिए कहा था।
चिलचिलाती धूप से राहत देनी हो या पसीना पोछना हो या फिर ठंड लगने पर कानों को बांधना हो इन सभी परिस्थितियों में गमछे कारगर है। यही नहीं थकान होने पर आप गमछा बिछाकर उस पर लेट भी सकते हैं। गर्मी के मौसम में ठंडक पाने के लिए गमछे को गीला करके शरीर पर भी रखा जा सकता है।
गमछे का शहरी जीवन में महत्त्व और भविष्य
गमछा तेज़ी से शहरी जीवन का स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। जिस प्रकार राजा के लिए मुकुट का महत्व होता था, भारत के एक देशी व्यक्ति के लिए गमछे या उसका स्वरूप ही उसका मुकुट है। भारत के कई क्षेत्रों में गमछे की ही पगड़ी भी बनाई जाती है। गांवों में आज भी लोग घर से निकलते वक़्त गमछे ज़रूर लेते हैं।
गमछा हिंदू धर्म के कर्मकांड पद्धति में शुभ कार्यों में बाएं कंधे पर होता है और श्राद्ध कर्म में दाहिने पर। अचार्य पंडित विद्यासागर ओझा ने बताया है कि, ‘श्राद्ध क्रिया में दाहिने कंधे पर गमछे का होना आदमी के असहज स्थिति में होने का परिचायक है। कोई भी पूजा-पाठ अनुष्ठान हो या किसी से आशीर्वाद लेना हो तो सर पर गमछे होना अनिवार्य है। इससे प्राप्त होने वाली उर्जा क्षीण नहीं होती है।’
पिछले कुछ वर्षों में भारत भर में कई डिजाइनरों, शिल्प संगठनों और छोटे ब्रांडों ने नए डिजाइन बनाने के लिए गमछा चुना है। प्रधानमंत्री द्वारा इसे प्रचारित किए जाने के बाद इसके उत्पादन में भी वृद्धि दर्ज की गयी है। पश्चिम बंगाल सहित असम और बिहार में कई ब्रांड है जो उभरकर सामने आए हैं।
अब जिस तरह से गमछे का उपयोग बढ़ा है, इसके रंग, पैटर्न और कपड़े की गुणवत्ता के मामले में इसके उत्पादन को बढ़ाने की कई संभावनाएं हैं।