सुप्रीम कोर्ट के गेट नंबर डी के पास सोमवार को एक पुरुष और एक महिला ने खुद को आग लगा ली। कहा जा रहा है कि दोनों वादी हैं जिनकी जमानत एक सुनवाई में खारिज कर दी गई थी। गेट डी के पास परिसर से बाहर निकलने पर दोनों ने लाइटर से खुद को आग लगा ली। वहां तैनात पुलिसकर्मियों ने आग पर काबू पाकर उन्हें बचाया और इलाज के लिए राम मनोहर लोहिया अस्पताल भेज दिया। लेकिन आत्मदाह का प्रयास करने से पहले, उन्होंने आरोपी बसपा सांसद अतुल राय को बचाने के लिए आईपीएस अधिकारी अमित पाठक, उत्तर प्रदेश के पूर्व आईजी अमिताभ ठाकुर और एमपी/एमएलए कोर्ट के एक न्यायाधीश के खिलाफ आरोप लगाते हुए एक लाइव वीडियो शूट किया।
2019 में, मऊ की रहने वाली महिला ने बसपा सांसद अतुल राय के खिलाफ मामला दर्ज कराया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि बसपा सांसद वाराणसी के लंका इलाके में अपने अपार्टमेंट में जाने के बाद लगभग एक साल से उसका यौन उत्पीड़न कर रहे थे। उसने यह भी आरोप लगाया था कि राय ने उसका एक वीडियो बनाया और उसे सोशल मीडिया पर प्रसारित करने की धमकी दी। लेकिन, अपने रसूख का इस्तेमाल कर के मामले की सिर्फ लीपापोती करने की कोशिश की गयी।
ज़रा अंदाज़ा लगाइए अगर यही आरोप किसी भाजपा के नेता पर लगा होता और पीड़िता एवं उसके पुरुष मित्र ने सर्वोच्च न्यायालय के द्वार पर आत्मदाह किया होता तो विपक्षा और मीडिया की क्या प्रतिक्रिया होती। मीडिया ट्रायल होती, बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के उस भाजपा नेता को दोषी ठहरा देते और इस्तीफा पूरी सरकार से मांगा जाता। इतने बड़े और संवेदनशील खबर का मीडिया के नज़रों से बच जाना उसका पूर्वाग्रह और पक्षपातपूर्ण रवैया दिखाता है।
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गौरतलब है कि बसपा सांसद अतुल राय के भाई गाजीपुर निवासी पवन कुमार सिंह ने सीजीएम स्पेशल कोर्ट में वादिनी के खिलाफ यह शिकायत की थी कि महिला और उसका पुरुष मित्र सत्यम प्रकाश राय गैंग बनाकर हनी ट्रैप और जालसाजी करते हैं। ये राजनीतिक लोगों को अपने जाल में फंसाकर पैसे की वसूली करते हैं। पवन कुमार सिंह ने ये आरोप भी लगाया था कि जहां पैसे देने को सामने वाला तैयार हो जाता है, वहां ये कूटरचित अभिलेखों के जरिए समझौता कर लेते हैं। अन्यथा की स्थिति में उसके विपक्षी से पैसे लेकर झूठा मुकदमा करते हैं। बता दें कि बसपा सांसद अतुल राय रेप के इस मामले फरार रहकर ही 2019 का लोकसभा चुनाव लड़े और जीते भी।
आरोपियों की गिरफ्तारी न हो पाने पर विवेचक ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया जिस पर सीजीएम स्पेशल कोर्ट ने अतुल राय पर रेप का आरोप लगाने वाली लड़की के साथ ही उसके पुरुष मित्र सत्यम प्रकाश राय को भगोड़ा घोषित कर दिया था। सीजीएम स्पेशल कोर्ट ने दोनों को भगोड़ा घोषित करने के साथ ही इनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का आदेश भी दिया था।
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हाल ही में, 2019 से जेल में बंद बसपा सांसद अतुल राय के भाई की शिकायत पर महिला के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। उत्तर प्रदेश पुलिस ने महिला और उसके सहयोगी के खिलाफ आईपीसी की धारा 419 (प्रतिरूपण द्वारा धोखाधड़ी) , 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी के लिए प्रेरित करना), 467 (मूल्यवान सुरक्षा की जालसाजी, वसीयत), 468 (धोखाधड़ी का उद्देश्य), 471 (फर्जी दस्तावेज के रूप में वास्तविक उपयोग करना) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी।
इस घटना के तूल पकड़ने के बाद प्रशासन हरकत में आया। एक अधिकारी ने बुधवार को कहा कि वाराणसी के दो पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है। पुलिस ने एक बयान में कहा कि निलंबित पुलिस अधिकारियों में वाराणसी कैन थाने के एसएचओ राकेश सिंह और बलात्कार पीड़िता के खिलाफ जालसाजी के एक मामले की जांच कर रही जांच अधिकारी गिरिजा शंकर शामिल हैं।
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मीडिया लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ है। वैश्वीकरण के दौर में इसके विभिन्न आयामों के उत्पति के बाद इससे अपेक्षा थी कि यह जनता की व्यथाओं और पीड़ाओं के प्रति और अधिक संवेदनशील होगी, लेकिन, राजनीतिक स्वार्थ, रसगुल्ला और मगसेसे अवार्ड के प्रति आसक्त विरोधी मीडिया को इसमें खबर नहीं दिखी। यह एक स्त्री के बलात्कार की घटना नहीं है बल्कि भारत जैसे एक प्रगतिशील राष्ट्र में कौरव सभा सम दुष्कृत्य की कहानी है। आज का विरोधी मीडिया अंधे धृतराष्ट्र की भूमिका में हैं और न्याय के सर्वोच्चतम दरवाजे पर दम तोड़ती उस लड़की का तमाशा देखती न्यायपालिका, आम जन, व्यवस्था और लोकतन्त्र इस सभा के मौन सभासद।
असल समस्या मसाले, टीआरपी और राष्ट्र विरोधी एजेंडे की है। इस मामले में न टीआरपी है और न मसाला। ‘माननीय’ सांसद महोदय बीएसपी के कदद्वार नेता जो है। अतः व्यवस्था स्वयं उनकी दासी है। एक आम लड़की की क्या बिसात। ऊपर से उस लड़की का दुस्साहस इतना की सांसद जी के विरोध मे आवाज़ उठाए। बताते चलें की ‘सांसद साहब’ इस आरोप के दौरान चुनाव भी लड़े और जीते भी। विरोधी मीडिया की चुप्पी ने उस चीख को सन्नाटे में बदल दिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं। सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, डिजिटल मीडिया यहाँ तक की तथाकथित प्राइम टाइम वालों मानवीय संवेदना भी शांत रही। वैसे आप उनकी गला फाड़ विलाप सुन सकतें है। आप उदाहरण के लिए उन्नाव और हाथरस को ले सकतें है लेकिन यहाँ तो आरोपी गैर-भाजपा पार्टी से है। अतः, उन्हें मज़ा नहीं आएगा। परंतु, ज़रा विचार करिए जो बलात्कार में भी भेद कर ले, उसके प्रसारण और प्रकाशन की प्राथमिकता टीआरपी, मज़े और अपने प्रोपगंडा के हिसाब से खबर दे वह गिद्ध ही है।