‘अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना’, ये कहावत हैं, लेकिन आजकल पंजाब की क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने संभवतः इसे यथार्थ में बदलने की तैयारी कर ली है। अपने राजनीतिक भविष्य पर अकालियों ने पहली चोट तो उसी दिन मार ली थी, जब किसानों के हितों का दिखावा करके मोदी सरकार की आलोचना करते हुए एनडीए का साथ छोड़ा था। परंतु वो जिन सिखों के हितों का मुद्दा उठाकर वोटों की अभिलाषा रखते हैं, उनकी पीठ पर भी छुरा घोंपने लगे हैं। इसका उदाहरण अकालियों का तालिबान के ऊपर विश्वास करना है। इस पार्टी ने तालिबान के वादों पर इस हद तक विश्वास कर लिया है, कि अब उनकी बातों को लोगों तक पहुंचाने लगे हैं। अकाली दल का तालिबान के प्रति ये प्रेम उन्हें विधानसभा चुनाव में तगड़ा झटका दे सकता है।
दरअसल, एक तरफ अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हुआ, तो दूसरी ओर भारत में एक बड़ा वर्ग धीरे-धीरे तालिबान के प्रति अपना प्रेम उजागर करने लगा है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से लेकर समाजवादी पार्टी के लोकसभा सांसद शफीकुर रहमान बर्क तक तालिबान के समर्थन में बयानबाजी कर चुके हैं। हालांकि केस दर्ज होने के बाद अचानक उनके सुर बदल गए हैं। तालिबान को भारत से मिल रहे इस प्रेम में एक नाम अब शिरोमणि अकाली दल का भी जुड़ गया है। अकाली दल के नेता मंजिदर सिंह सिरसा ने सिखों और हिन्दुओं की रक्षा के वादे पर बिना कुछ सोचे-समझे विश्वास कर लिया है, एवं अब वो तालिबान की बातों का प्रसार-प्रचार तक करने लगे हैं।
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तालिबानी राज आने के साथ ही वहां के अल्पसंख्यक वर्ग के हिन्दुओं और सिखों के मन में भय व्याप्त है। ऐसे में बड़ी सख्या में वहां के गुरुद्वारे में हिन्दू और सिख समुदाय के लोग शरण ले रहे हैं। इस बीच एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें गुरुद्वारे में गए तालिबानियों ने कहा है कि वो सिखों एवं हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए कटिबद्ध हैं। इसको लेकर दिल्ली सिख गुरुद्वारा संघ कमेटी के अध्यक्ष और शिरोमणि अकाली दल के नेता मंजिदर सिंह सिरसा ने एक वीडियो जारी किया है, एवं कहा है कि तालिबानियों ने सिखों समेत हिन्दुओं की सुरक्षा का भरोसा दिया है।
https://twitter.com/mssirsa/status/1428032650262978560?s=20
उन्होंने इस मामले में कहा, “अफगानिस्तान में जो भारतीय परिवार फंसे हुए हैं, उनको लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय में बात की है। वहां से पता चला है कि अफगानिस्तान में फंसे लोगों के लिए शुरू की गई नई स्कीम के तहत सभी के वीजा मंजूर कर लिए गए हैं।” स्पष्ट है कि तालिबान के एक बार कहने पर ही शिरोमणि अकाली दल ने ये मान लिया है, कि तालिबान बदल गया है, जो कि हास्यास्पद भी है, और आलोचनात्मक भी। मंजिदर सिंह सिरसा समेत शिरोमणि अकाली दल हमेशा ही सिख हितों की बात करते रहे हैं, किन्तु अब जब सिख तालिबान के चंगुल में फंसे हैं, और वो फर्जी की सुरक्षा के दावे कर रहा है, तो अकाली दल तालिबान पर भरोसा जताकर संतुष्टि प्रकट कर रहा है, जो कि पार्टी के तालिबान के प्रति सकारात्मक रवैए को दर्शाता है।
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अकाली दल की स्थिति पंजाब में पहले से ही काफी खराब है। पार्टी पिछले दो चुनावों में कुछ खास कमाल नहीं कर पाई है। ऐसे में उम्मीद थी, कि तालिबान के चंगुल में फंसे सिखों को बचान के लिए अकाली दल मुखर आवाज उठाएगा, किन्तु सिरसा जैसे अकाली दल के नेता तो तालिबान के प्रति अपनी निष्ठा दिखा रहे हैं। अकालियों का तालिबान के प्रति ये प्रेम उन्हें 2022 के विधानसभा चुनाव में तगड़ा झटका दे सकता है।