इन दिनों योगी आदित्यनाथ फुल फॉर्म में हैं। प्रशासन हो या राजनीति, वे हर जगह अपनी छाप छोड़ते हैं। इतना ही नहीं, अपने विरोधियों को जलाने का एक भी अवसर वे हाथ से जाने नहीं देते। अखिलेश यादव और उनकी पार्टी के मुस्लिम प्रेम पर आक्रामक होते हुए योगी ने ‘अब्बाजान ‘ वाला तंज कसा, जिस पर अखिलेश ऐसे भड़के कि उससे स्पष्ट हो गया कि अब उत्तर प्रदेश में अन्य पार्टियों के लिए अल्पसंख्यक तुष्टिकरण अस्वीकार्य हो चुका है।
योगी ने ऐसा भी क्या बोल दिया, जिससे अखिलेश यादव जल बिन मछली की भांति तड़पने लगे? दरअसल, पंचायत आजतक कार्यक्रम में सीएम योगी ने समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव पर वार किया था। सीएम योगी ने राम मंदिर के मुद्दे को लेकर अखिलेश यादव पर तंज कसते हुए कहा कि उनके अब्बाजान तो कहते थे परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा, लेकिन अब तो मंदिर का भूमि पूजन तक हो चुका है।
मुलायम सिंह यादव का अल्पसंख्यक तुष्टिकरण किसी से छुपा नहीं है। बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए इन्होंने निहत्थे कार सेवकों पर गोलियां तक चला दी थी। यही नहीं, जब 1993 में सपा और बसपा गठबंधन जीतकर सरकार में आया, तब हिंदुओं का मजाक उड़ाते हुए इन्ही के समर्थकों ने नारे लगाए थे, ‘मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम’
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तब की राजीति और अब की राजनीति में बहुत अंतर आ चुका है। अब हिंदुओं को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। इसीलिए अखिलेश ने भड़कते हुए कहा, “मुख्यमंत्री किसी और भाषा को जानते हैं। हमारा आपका झगड़ा मुद्दों को लेकर हो सकता है, लेकिन मुख्यमंत्री अपनी भाषा पर संयम रखें अगर वो मेरे पिता जी को कुछ कहेंगे तो मैं भी उनके बारे में बहुत कुछ कह सकता हूं।
मुख्यमंत्री मेरे पिता जी के बारे में ऐसी भाषा का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? मुख्यमंत्री को अपनी भाषा पर संतुलन रखना चाहिये। मेरे पिता जी के बारे में कहेंगे तो अपने पिता के बारे में भी सुनने के लिये तैयार रहें।”
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जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे यादव परिवार की हिंदू भक्ति भी निखर-निखरकर सामने आ रही है। कभी कार सेवकों पर गोलियां चलवाने वाले मुलायम आज हनुमान भक्त बने बैठे हैं और उनके सुपुत्र परशुराम के गुणगान गा रहे हैं।
इसी दोहरे मापदंड पर अप्रत्यक्ष रूप से हमला करते हुए भाजपा मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा, “अखिलेश यादव को अब्बाजान शब्द से क्या दिक्कत है यह समझ से परे है। अब्बाजान उर्दू का एक मीठा शब्द है। जैसे पिता को डैडी कहा जाता है वैसे ही अब्बा है। अखिलेश मुलायम सिंह को पिता तो कहते नहीं हैं। असल में उन्हें शब्द की समझ नहीं है। बिना सोचे-समझे कुछ भी बोलने वालों के मुंह से भाषा में संतुलन की बात हजम नहीं होती है।
उन्होंने कहा है कि ड्राइंग रूम में बैठकर ट्वीट करने वालों को अब भाषा में भी दोष नजर आने लगा है। भाजपा की बढ़ती ताकत और जनाधार सपाइयों को रास नहीं आ रहा है। वो सहमे हुए हैं। इसलिये आदर सूचक और सम्मानजनक शब्दों की पहचान करना भी भूल गये हैं।”
असल में अखिलेश यादव और उनके समर्थक जिस प्रकार से योगी आदित्यनाथ के बयान पर उबल पड़े हैं, उससे स्पष्ट होता है कि अब वे अपने आप को एक मुस्लिम समर्थक पार्टी के रूप में नही दिखाना चाहते, अन्यथा 2022 में उन्हें जो कुछ सीटें मिलने की आशा है वो भी खत्म हो जाएगी।