गैर-यादव OBC वोटों से यूपी विजय करेगी बीजेपी, योगी-मोदी की रणनीति की इनसाइड स्टोरी समझ लीजिए

बीजेपी की महीन रणनीति का ‘अंकगणित’, अखिलेश के ‘M-Y’ और मायावती की ‘सोशल इंजीनियरिंग’ पर भारी पड़ने वाला है!

उत्तर प्रदेश ओबीसी

बीजेपी के संबंध में ये कहा जाता है कि पार्टी चुनावी राज्यों में अन्य राजनीतिक पार्टियों की अपेक्षा अति सक्रिय रहती है, जिसका उदाहरण पुनः देखने को मिल रहा है। ऐसा वक्त जब उत्तर प्रदेश के 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए सपा, बसपा एवं कांग्रेस जैसी पार्टियां एक दूसरे को एकजुट करने के प्रयासों में समय की बर्बादी कर रही हैं, तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा ने अपनी चुनावी प्लानिंग के अंतर्गत निर्णय लेने भी शुरु कर दिए हैं, एंव चुनाव के लिए एजेंडा सेट कर दिया है। भाजपा का पूरा ध्यान इस बार ओबीसी वोट बैंक पर है, जो कि  सपा बसपा एवं कांग्रेस के बीच बिखरता रहा है। अब भाजपा इसी ओबीसी वोट को विपक्षी दलों से पूरी तरह छीनने की बिसात बिछा चुकी है, जिसमें सर्वाधिक नुकसान अखिलेश यादव की पार्टी सपा को हो सकता है।

अगर ये कहा जाए कि उत्तर प्रदेश की राजनीति जाति आधारित  ही होती है, तो निश्चिचत रूप से ये गलत नहीं होगा। सपा एवं बसपा जैसे दलों का तो उदय भी जाति आधारित राजनीति के लिए हुआ है। ऐसे में इनके किलों को ध्वस्त करने के लिए भाजपा भी जमकर जातिगत रणनीति बनाती है। भाजपा समझ गई है कि यदि उत्तर प्रदेश के 2022 विधानसभा चुनाव में अपने 350 सीटों के लक्ष्य को प्राप्त करना है तो उसे सपा-बसपा के ओबीसी वोट बैंक पर अपनी पकड़ मजबूत करनी ही होगी। ऐसे में ओबीसी वर्ग को साधने का सारा जिम्मा भाजपा ने उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य एवं प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को दिया है, जिसमें लव-कुश के फॉर्मूले को प्राथमिकता दी गई है, और इसके लिए ही 32 टीमों का गठन भी किया गया है।

और पढ़ें- PM मोदी की राह पर CM योगी, उत्तर प्रदेश के नौकरशाही ढांचे को बदलकर रख दिया है

बीजेपी की प्लानिंग है कि ओबीसी वोट बैंक को साधा जाए, जिसके लिए प्रदेश के अलग-अलग जिलों में ओबीसी सम्मेलनों का आयोजन किया जाएगा। इसकी शुरुआत 31 अगस्त को मेरठ से हो चुकी है। इन सम्मेलन के जरिए राज्य के पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट बैंक पर अपनी पैठ बनाने की थी। इसी नीति के तहत योगी सरकार से लेकर संगठन तक में ओबीसी वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की संभावनाएं हैं।  जिलों की बात करें तो मथुरा, काशी, अयोध्या, मेरठ में विशाल स्तर पर ओबीसी सम्मेलन आयोजित होंगे। इसके अलावा मौर्य समाज के  मुख्य जिलों फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर देहात, जालौन, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर में भी ओबीसी सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। मौर्य समाज की संख्या यहां करीब 10 फीसदी है।

ठीक इसी तरह कुर्मी और पटेल वोट बैंक राज्य में 12 फीसदी तक है, जो मुख्यतः मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर एवं बस्ती जिलों में अधिक हैं। इन सभी जिलों भी ओबीसी सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। स्पष्ट रूप से कहा जाए तो उत्तर प्रदेश के प्रत्येक पूर्व पूश्चिमी, ब्रज तक के क्षेत्रों में भाजपा का ध्यान ओबीसी वोट बैंक पर है, जिसके चलते पार्टी हाल में कैबिनेट विस्तार में बने 27 नए ओबीसी मंत्रियों को भी इन सम्मेलनों में शामिल करवाने की योजना बना चुकी है।

और पढ़ें- मीडिया ‘नाम बदलने’ और ‘भगवा कपड़ों’ पर ही अटका है, योगी ने यूपी में ‘एक्सप्रेस-वे क्रांति’ कर दी  

ओबीसी उत्तर प्रदेश में लोकसभा से लेकर विधानसभा के चुनावों में विशेष महत्व रखता है क्योंकि इस वर्ग के वोट बैंक की भागीदारी लगभग 50 प्रतिशत तक की है। इस वोट बैंक को लेकर पहले ये कहा जाता था कि ये सपा एवं बसपा में बंट जाता है, लेकिन 2014 मे भाजपा के पुनर्उत्थान के बाद ये स्थिति बदल गई है।  भाजपा लगातार ओबीसी वर्ग को आकर्षित कर रही है।  इसी योजना के तहत ही मोदी सरकार ने मेडिकल क्षेत्र में ओबीसी आरक्षण देने एवं राज्यों को ओबीसी जातियों का वर्गीकरण करने में छूट देने के मुद्दे पर कुछ विशेष प्रावधान किए हैं, जिसा समर्थन करना विपक्ष की मजबूरी था, यद्यपि इसका सकारात्मक फायदा पीएम मोदी एव भाजपा के पक्ष में आ सकता है।

वही ओबीसी को आकर्षित करने का भाजपा का ये तरीका सपा के लिए सबसे ज्यादा खतरा बनने वाला है, क्योंकि सपा को सबसे ज्यादा ओबीसी वोट मिलता था। भाजपा को पता है कि सपा को ओबीसी में यादवों का ही सर्वाधिक वोट मिलता है, जिनकी भागीदारी 21 फीसदी है। इसके अलावा राज्य में गैर-यादव ओबीसी में कुर्मी 7.5%, लोध 4.9%, गडरिया/पाल 4.4%, निषाद/मल्लाह 4.3%, तेली/शाहू 4%, जाट 3.6%, कुम्हार/प्रजापति 3.4%, कहार/कश्यप 3.3%, कुशवाहा/शाक्य 3.2%, नाई 3%, राजभर 2.4%, गुर्जर 2.12% हैं। इसका करीब 90 प्रतिशत समाज एक समय सपा को वोट करता था, किन्तु अब वो 2014 के बाद से लगातार भाजपा की तरफ जा रहा है। भाजपा के वोट बैंक की बात करें तो लोकनीति-सीएसडीएस की रिपोर्ट बताती है,उत्तर प्रदेश के ओबीसी वर्ग में भाजपा की बढ़त करीब दोगुनी हो गई है।

और पढ़ें- तालिबानी विचारधारा के शिक्षा केंद्र देवबंद में योगी सरकार ने ATS कमांडो सेंटर बनाने का किया ऐलान

भाजपा अब अपने मजबूत हुए इसी ओबीसी जनाधार को पहले की तुलना में अभेद्य करने की नीति के तहत ही ओबीसी सम्मेलनों का आयोजन कर रही है। महत्वपूर्ण बात ये भी है कि साल 2018 में भी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने इसी तरह के सम्मेलन किए थे, एवं 2019 में पार्टी की जीत इन सम्मेलनों की सफलता की कहानी कहती है। भाजपा जानती है कि ये ओबीसी वोट बैंक इस बार भी महत्वपूर्ण होगा, इसीलिए 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण से लेकर 39 जातियों को ओबीसी वर्ग में शामिल करने का फैसला किया गया है। नए मंत्रियों (सर्वाधिक ओबीसी) द्वारा निकाली गई जन आशीर्वाद यात्रा  भाजपा एवं मोदी सरकार की रणनीति का हिस्सा है।

अब इस क्रोनोलॉजी के तहत ही उत्तर प्रदेश में ओबीसी सम्मेलनों की नीति ये स्पष्ट करती है, कि बीजेपी अब नॉन यादव ओबीसी वोट बैंक को पूर्णतः सपा बसपा से छीनने की तैयारी कर चुकी है, जिससे भाजपा जहां राज्य मे अभेद्य हो जाएगी, वहीं सपा, बसपा एवं कांग्रेस का उत्तर प्रदेश की राजनीति से अंत हो जाएगा।

Exit mobile version