कोरोना से समय बर्बाद हुई हुवावे एक बार फिर से अपने बिजनेस को बढ़ाने जा रही है और इसका कारण कोई और नहीं है बल्कि जो बाइडन हैं। अब हुवावे जो बाइडन की मदद से एक बार फिर अफ्रीकी देशों के साइबर स्पेस पर कब्जा जमाएगी। कोरोना जब शुरू हुआ तब चीन के खिलाफ बने माहौल में विश्व भर के देशों ने चीनी कंपनियों का बहिष्कार किया था। उन कंपनियों में सबसे अधिक नुकसान झेलने वाली हुवावे को लगभग सभी देशों ने बैन करने की बात कही थी। डोनाल्ड ट्रम्प ने तो इस कंपनी को बैन भी कर दिया था। मई 2021 में हुवावे के खिलाफ सबसे बड़ा एक्शन लेते हुए ट्रम्प प्रशासन ने हुवावे को होने वाले सेमीकंडक्टर एक्स्पोर्ट्स पर प्रतिबंध लगा दिया था। ये सेमीकंडक्टर चिप्स फोन निर्माण के साथ-साथ 5G उपकरणों के निर्माण में भी आवश्यक होते हैं। इसी तरह कई देशों ने भी हुवावे के खिलाफ एक्शन लिया। इससे हुवावे की बिजनेस को बड़ा झटका लगा था और इस कंपनी को बचाने के लिए Honor ब्रांड को बेचना पड़ा था। परंतु अब एक बार फिर से CCP के इस कंपनी को दोबारा बल मिल रहा है।
दरअसल, बाइडन अब इसी कम्पनी को फिर से अधिकार दे रहे है कि वह व्यापार के रास्ते पैर फैला सकें। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी अधिकारियों ने चीन की ब्लैकलिस्टेड टेलीकॉम कंपनी हुवावे टेक्नोलॉजीज कंपनी लिमिटेड को ऑटो चिप्स खरीदने के लिए करोड़ों डॉलर के लाइसेंस आवेदनों को मंजूरी दे दी है। अब इसी से हुवावे को दोबारा मजबूत होने में मदद मिलेगी।
हुवावे अपने अतीत के लिए बदनाम हो चुकी एक कम्पनी है। चीनी बहुराष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स से जुड़ी कंपनी हुवावे को अपने साइबर सुरक्षा, बौद्धिक संपदा और मानवाधिकारों के उल्लंघन के संबंध में संचालन के लिए कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। CCP के इशारों पर नाचने वाली कम्पनी है जो अंततः चीन के लिए ही काम करती है। यह शर्म की बात है कि एक ऐसी कम्पनी, जो यूईघर मुसलमानों को अपने एप्प से पहचानकर चीनी पुलिस को सतर्क कर देने का काम करती है, वो आज भी कई देश में बतौर टेलिकॉम कम्पनी काम कर रही है।
5G वायरलेस नेटवर्क में Huawei की भागीदारी के साथ जासूसी, सर्विलांस की चिंताएँ तेज हो गईं और कुछ देशों ने चीनी-निर्मित हार्डवेयर के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया। हुवावे को जब पश्चिम और अमरीका से लात पड़ी तो वह भागकर अफ्रीका गया। वहां पर मुद्रास्फीति भले अमरीका जितना मजबूत नहीं है लेकिन 1.3 अरब लोगों का बाजार है। चीन वहां अपनी मौजूदगी चाहता है और ऐसा करने में वह सफल भी रहा है। अमरीका भले यूरोप और दक्षिण अमेरिका के आधे हिस्सों में अपनी दादागीरी चला सकता है लेकिन अफ्रीका धीरे-धीरे चीन के तरफ जा रहा है।
दक्षिण अफ्रीका स्थित रिसर्च फर्म, वर्ल्ड वाइड वर्क्स के प्रमुख आर्थर गोल्डस्टक के अनुसार, अफ्रीका में 4G बेस स्टेशनों में से लगभग 70% Huawei द्वारा बनाए गए हैं, और 5G में यह आंकड़ा 100% होगा। यूरोपीय देशों के पास भले ही 5G कैरियर के लिए नोकिया और एरिक्सन जैसा विकल्प है लेकिन अफ्रीका में वो काफी महंगे साबित होंगे। अमेरिकी नियमों से प्रभावित अन्य चीनी कंपनियों ने भी अफ्रीका में पैठ बना ली है। हुवावे ZTE और MTN ने साझेदारी में, इस जनवरी में घोषणा किया था कि उन्होंने युगांडा में 5G परीक्षण सफल रूप से कर लिया है।
दुनिया भर में, हुवावे के अधिकांश सौदे (लगभग 57%) उन देशों में हैं जो मध्यम आय वाले हैं। चीन के पास पूरे अफ्रीका में सूचना और कंप्यूटर प्रौद्योगिकी प्रदान करने का एक प्रलेखित इतिहास है। पिछले 20 वर्षों में, Huawei ने अफ्रीका के 3G नेटवर्क का लगभग 50% और अपने 4G नेटवर्क का 70% निर्माण किया है।
वर्ष 2018 तक, चीन ने कम से कम 40 अफ्रीकी देशों में विस्तार कर लिया था।
सरकारें भी चाहती हैं कि हुवावे वहां बनी रहे। चीन जैसे अपने नागरिकों ओर नकेल कसा रहता है, किसी भी देश के लिए यह लाजवाब होगा कि वैसा ही सिस्टम उनके देश में भी रहे। पूर्व में अफ्रीकी सरकारों द्वारा नागरिकों की जासूसी करने के लिए चीनी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने पिछले साल बताया कि हुवावे तकनीशियनों ने युगांडा और जाम्बिया की सरकारों को राजनीतिक विरोधियों के सर्विलांस में मदद की थी। यह सीधे सीधे लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन है।
वैश्विक स्तर पर मानवाधिकार हनन और वैश्विक मूल्यों के अवहेलना में तुंरत चीन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए लेकिन अमरीका ऐसा नहीं करेगा। हुवावे इस वक्त अपने मुनाफे में सबसे बड़ी गिरावट देख रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, ब्राज़ील समेत तमाम देशों में हुवावे पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से लगा हुआ है। ऐसे में जरूरी है कि ये प्रतिबंध चलते रहे लेकिन बाइडन अब इसी कम्पनी को फिर से अधिकार दे रहे हैं जिससे वह व्यापार के रास्ते पैर फैला सकें। आपका एक वोट कैसे आपको गर्त में ले जा सकता है, यह अमेरिका की जनता से बढ़िया कोई नही समझ सकता है। जो बाईडन के इस एक फैसले से अधिकतर देशों में हुवावे के प्रति अच्छी छवि बनने लगेगी, डूबते कम्पनी को निवेशकों को सहारा मिल जाएगा। दूध का जला छांछ भी फूंककर पीता है लेकिन ऐसा लगता है कि जो बाईडन अब भी नव उदारवाद के नशे में इतना डूब गए है कि उन्हें गलत सही का पता नहीं चल रहा है।