हमारे देश के इतिहास में हमारे वास्तविक वीरों का कम, और नकली वीरों का गुणगान अधिक किया गया है। औपनिवेशिक मानसिकता के अधीन हमें ऐसे लोगों का महिमामंडन करने के लिए बाध्य किया गया, जो कभी उस योग्य थे भी नहीं। जिन वामपंथियों और वरियमकुन्नथु कुंजाहम्मद हाजी जैसे कट्टरपंथी मुसलमानों ने स्वतंत्रता आंदोलन में लेशमात्र भी योगदान नहीं दिया, उन्हें वीरों के वीर के रूप में चित्रित किया गया, जबकि जिन्होंने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया, उनका या तो उल्लेख ही नहीं किया गया, या फिर उनका नकारात्मक चित्रण किया गया। अब इस भूल को सुधारने की दिशा में केंद्र सरकार ने एक अहम कदम उठाया है, जब कल यह घोषणा की गयी कि मोपला दंगे में जो कट्टरपंथी मुसलमान शामिल हुए थे, उन्हें अब से ‘हुतात्माओं’ की श्रेणी से हटा दिया जाएगा।
387 दंगाइयों का नाम स्वतन्त्रता सेनानी की लिस्ट से हटाया जाएगा
जी हाँ, वर्षों पुरानी भूल को सुधारते हुए केंद्र सरकार ने उन लोगों का महिमामंडन करना बंद कर दिया है, जो 1921 के कुख्यात मोपला दंगों में लिप्त थे। केंद्र सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम में हुतात्मा होने वाले वीर सेनानियों की सूची में से उन 387 सेनानियों के नामों को हटाने का निर्णय किया है, जो मोपला दंगों में संलिप्त थे।
1921 में कथित तौर पर असहयोग आंदोलन के दौरान केरल में ‘मालाबार विद्रोह’ हुआ था, जिसे महात्मा गांधी ने समर्थन भी दिया था। वास्तव में वह अंग्रेज़ों के विरुद्ध एक विद्रोह न होकर हिंदुओं का नरसंहार था, जिसमें मप्पिला मुस्लिमों व उनके नेताओं ने मिलकर 10,000 से भी अधिक हिन्दुओं का नरसंहार किया था। 1921 में लगभग 6 महीनों तक ये कत्लेआम चलता रहा था।
दंगाइयों का सरगना था हाजी
इन दंगाइयों का सरगना था वरियमकुन्नथु या चक्कीपरांबन वरियामकुन्नथु कुंजाहम्मद हाजी (VariyamKunnathuKunjahammed Haji), जो खुद को ‘अरनद का सुल्तान’ कहता था। वो मालाबार में ‘मलयाला राज्यम’ नाम से एक इस्लामी सामानांतर सरकार चला रहा था। एक ‘इस्लामिक स्टेट’ की स्थापना करने वाला कोई व्यक्ति स्वतंत्रता सेनानी कैसे हो सकता है?
‘द हिन्दू’ अख़बार को पत्र लिख कर वरियमकुन्नथु कुंजाहम्मद हाजी ने हिन्दुओं को भला-बुरा कहा था। अंग्रेजों ने उसे मौत की सज़ा दी थी। हाजी एक ऐसे परिवार से आता था, जो हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ ध्वस्त करने के लिए मशहूर था। उसके अब्बा ने भी कई दंगे किए थे, जिसके बाद उसे मक्का में प्रत्यर्पित कर दिया गया था।
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लेकिन इनके दोषियों को आज भी लोग ‘हुतात्माओं’ की श्रेणी में गिनते हैं, और अभी हाल ही में केरल विधानसभा के अध्यक्ष एमबी राजेश ने निर्लज्जता की सभी सीमाओं को लांघते हुए इन दंगाइयों के सरगना, वरियमकुन्नथु कुंजाहम्मद हाजी की तुलना वीर क्रांतिकारी भगत सिंह से की थी।
अब ये दंगाई स्वतंत्रता सेनानी नहीं कहलाएँगे
लेकिन अब ये दंगाई स्वतंत्रता सेनानी नहीं कहलाएँगे। केंद्र सरकार ने हाल ही में हुतात्माओं की सूची के पांचवें वॉल्यूम की तीन सदस्यीय समिति द्वारा समीक्षा की थी। इसमें इंडियन काउंसिल फॉर हिस्टॉरिकल रिसर्च (ICHR)’ ने मोपला नरसंहार के दोषियों नाम हटाने की सिफारिश की थी। समिति के अनुसार, ‘मालाबार विद्रोह’ कभी अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध था ही नहीं, बल्कि ये एक कट्टरवादी आंदोलन था जिसका मुख्य उद्देश्य था इस्लामी धर्मांतरण। समिति ने नोट किया कि इस पूरे ‘विद्रोह’ के दौरान ऐसे कोई भी नारे नहीं लगाए गए, जो राष्ट्रवादी हों या फिर अंग्रेज विरोधी हों। हाल ही में RSS नेता राम माधव ने भी कहा था कि ये भारत में तालिबानी मानसिकता का पहला आंदोलन था।
इससे पहले सितंबर 2020 में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने ICHR की डिक्शनरी को जनविरोध के कारण पुनः समीक्षा के लिए वापिस लिया था, क्योंकि लोगों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के बीच मोपला नरसंहार के दोषियों का नाम जोड़े जाने का विरोध किया था। हालांकि, पाँचवें वॉल्यूम को सरकारी वेबसाइट से हटा लिया था। साल 1921 में केरल में हुए हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार वरियमकुन्नथु कुंजाहम्मद हाजी की जिंदगी पर आधारित फिल्म भी बनने वाली है, जिसका निर्देशन आशिक अबू कथित तौर पर करेंगे।
परंतु अब ये महिमामंडन और नहीं चलेगा। जिस प्रकार से केंद्र सरकार देश के इतिहास को एक नई राह देने के लिए उद्यत है, उस दिशा में ये एक सराहनीय निर्णय है, जिसके बेहद लाभकारी परिणाम भविष्य में देखने को मिलेंगे। मोदी सरकार ने मोपला के दंगाइयों को ‘हुतात्माओं’ की सूची से हटाकर भारत को नकली वीरों के कलंक से मुक्त कराने की दिशा में एक सार्थक कदम उठाया है।