कहावत है कि जब गीदड़ की मौत आती है तो वो शहर की ओर भागता है, आजकल उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी की स्थिति भी कुछ ऐसी ही हो गई है। मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए हिन्दू हितों को ठेंगा दिखाने वाले अखिलेश ने जिस तरह से अपने पिता मुलायम सिंह यादव से तुष्टीकरण की कलाएं सीखी थीं, संभवतः हिंदुओं को लुभाने की कला भी उन्हीं से सीखी है, क्योंकि राज्य में महत्वपूर्ण होता हिंदू और ब्राह्मण वोट बैंक अखिलेश को भयभीत कर रहा है। इसके चलते अब जालीदार टोपियां धारण करने वाले पिता-पुत्र मुलायम-अखिलेश को समाजवादी पार्टी हिन्दू हितैषी दिखाने के लिए बड़े से बड़ा भक्त बता रही है। अखिलेश अपने पिता को पवनपुत्र हनुमान और स्वयं को भगवान परशुराम का भक्त बताने लगे हैं, जो कि एक अप्रत्याशित राजनीतिक घटनाक्रम है।
देश में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण को लेकर 1990 में कारसेवकों पर गोलियां चलवाने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को मौलाना मुलायम कहा जाने लगा था। कुछ ऐसे ही हिन्दुओं को दबाकर मुस्लिम समाज के तुष्टीकरण की राजनीति मुलायम ने अपने सुपुत्र अखिलेश यादव को भी सिखा दी थी, किन्तु अब वो सभी पुराने दांव उल्टे पड़ गए हैं, एवं 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद मुस्लिम वोट बैंक बिखर चुका है। ऐसे में अब अखिलेश स्वयं को हिन्दू देवी-देवताओं का भक्त बताने के साथ ही सपा को एक हिंदुत्ववादी पार्टी बताने लगे है। उन्होंने सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को एक बड़ा हनुमान भक्त बताया है, और अखिलेश के राजनीतिक दिन इतने बुरे आ हो गये हैं कि उन्हें खुद को भक्त साबित करने के लिए पूजनों तक का उल्लेख करना पड़ रहा है।
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अखिलेश प्रयास कर रहे हैं कि बीजेपी को उसके ही हिन्दुत्व वोट बैंक में फंसाया जाए, किन्तु समस्या ये है कि यथार्थ ये है कि उनकी छवि बर्बाद हो चुकी है। उन्होंने खुद को बीजेपी नेताओं से बड़ा हिन्दू नेता बताया है। अखिलेश ने कहा, “हम भाजपा वालों से बड़े हिंदू हैं। उनकी जो परिभाषा हिंदू वाली है, वो हमें नहीं चाहिए। जो नफरत फैलाती हो, समाज को बांटती हो। हम उनसे बड़े हिंदू हैं।” ध्यान देने वाली बात ये भी है कि अखिलेश के पिता मुलायम के संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक आक्रामक बयान दिया था, जिसके बाद से अखिलेश आक्रोशित थे।
अखिलेश भाजपा के सामने स्वयं को तो बड़ा हिन्दू बता ही रहे हैं, अपितु वो अपने इस बयान में पिता मुलायम सिंह यादव को भी शामिल कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “भगवान की पूजा की बात है, तो आप सैफई को देख आइए। हमारा जन्म तो अभी हुआ है, लेकिन हमारे मंदिर तो हमारे जन्म से भी पहले के हैं। नेताजी तो हनुमान जी की पूजा जाने कब से करते आए हैं। तो हम हैं ही नहीं हिंदू, केवल भारतीय जनता पार्टी हिंदू है। जो पाप करे वो हिंदू।” अखिलेश यादव के साथ ही उस समय के कुछ वामपंथी पत्रकारों में ये देखा गया है कि वो मुलायम सिंह यादव के कुश्ती लड़ने वाले दौर को भगवान हनुमान की पूजा से जोड़ देते हैं।
महत्वपूर्ण बात ये है कि इस कॉन्क्लेव में अखिलेश ने सपा के चार सौ सीटें जीतने का दावा भी किया था, जिसको लेकर मुख्यमंत्री योगी उनकी ही खिल्ली उड़ाई हैं। योगी आदित्यनाथ से जब इस संबंध में प्रश्न किया गया तो उन्होंने कहा, “देखिए सपना देखना तो अच्छी बात है। मुझे आश्चर्य हो रहा है कि उन्होंने 500 क्यों नहीं कह दिया। जब बोलना ही है तो कुछ भी बोल सकते हैं। राज्य की जनता आपके सारे कारनामों को जानती है। लेकिन सपना देखना आपका अधिकार है।” अखिलेश की जीत के दावों और हिन्दू भक्ति को लेकर बीजेपी नेता एवं सीएम योगी लगातार अखिलेश का मखौल उड़ा रहे हैं।
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अखिलेश अपनी पार्टी का कायाकल्प कर इसे हिन्दू और ब्राह्मण हितैषी बनाने के प्रयासों में जुटे हुए हैं। यही कारण है कि वो राज्य के सभी जिलों में भगवान परशुराम की प्रतिमा लगाने की बात कर चुके हैं, और अब चुनाव को देखते हुए ही अखिलेश ने अपने ब्राह्मण नेताओं को ब्राम्हण वोट बैंक पर सेंधमारी का टास्क दिया है; जिससे राज्य में बीजेपी को हराया जा सके। इसके विपरीत अखिलेश का ये हिन्दू हितैषी होना बचकाना लग रहा है, एवं इस हिन्दू हितैषी दिखने वाले रवैए के कारण सपा प्रमुख अखिलेश के छद्म हिंदुत्व की आलोचना के साथ ही उनका मखौल उड़ाया जा रहा है, क्योंकि यूपी की राजनीति में मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के तहत हिन्दुओं को प्रताड़ित करने का काम मुलायम और अखिलेश ने ही सर्वाधिक किया है।