ओलंपिक में इतिहास रचते हुए भारतीय पुरुष टीम द्वारा जर्मनी पर 5-4 से जीत के साथ कांस्य पदक जीत और महिला हॉकी टीम द्वारा सेमीफ़ाइनल में स्थान बनाना देश के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था। इस जीत के साथ भारत ने यह संकेत दे दिया है कि वह पुनः हॉकी का सुपरपावर बनने जा रहा है। अपने स्वर्णिम गौरव को लौटाने की राह पर चल चुकी भारतीय टीम ने सिर्फ हॉकी में 41 साल के सूखे को ही समाप्त नहीं किया बल्कि विश्व को यह संदेश दे दिया कि यह यात्रा सिर्फ कांस्य पर नहीं रुकने वाला है।
41 साल के इंतजार के बाद पदक जीतना अपने आप में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, लेकिन यह ख़ुशी और दोगुनी तब हो गयी जब न केवल भारत ने कांस्य पदक जीता, बल्कि पुरुष हॉकी टीम ने खेलों के दौरान अपने शानदार प्रदर्शन के कारण विश्व स्तर पर अपनी सर्वोच्च रैंकिंग हासिल की।
हाल ही में जारी हुई FIH विश्व रैंकिंग के अनुसार, भारत अब ऑस्ट्रेलिया और बेल्जियम के बाद नंबर 3 पर पहुँच चुका है जो 2003 में FIH प्रणाली शुरू होने के बाद से भारत की अब तक की सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग है। ओलंपिक पदकों की संख्या के मामले में भी भारतीय टीम (12) ने जर्मनी को पछाड़ दिया है।
वहीं महिला टीम ने भी अपने पहले क्वार्टर फाइनल में स्वर्ण पदक के प्रबल दावेदार और तीन बार के चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से हराकर टोक्यो ओलंपिक के सबसे बड़ा उलटफेर किया था। वास्तव में यह टीम द्वारा की गयी तैयारी का ही परिणाम था जिससे उन्हें आश्चर्यजनक जीत हासिल हुई थी। हालांकि, भारत की दोनों टीमों का प्रदर्शन हार-जीत से कहीं बढ़कर साबित होगा और भारत एक बार फिर से हॉकी सुपर पावर बनने जा रहा है।
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एक समय था जब भारत का हॉकी खेल पर दबदबा हुआ करता था। वर्ष 1923 से 1972 तक 8 बार ओलंपिक में स्वर्ण पदक, 1 रजत और 2 कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय पुरुष हॉकी टीम का कोई सानी नहीं था। परंतु वर्ष 1960 के ओलंपिक में भारतीय हॉकी का स्वर्णिम दौर रुक गया लेकिन टीम टोक्यो में हुए अगले ओलंपिक खेलों में पदक का रंग बदलने में सफल रही।
इसके बाद वर्ष 1968 में मेक्सिको ओलंपिक के दौरान टीम सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उतरी और कांस्य पर सिमट गई, जहां से संयोगवश भारीतय हॉकी में एक गिरावट की शुरुआत हुई। इस गिरावट का कारण कुछ और नहीं बल्कि भारतीय हॉकी महासंघ (आईएचएफ) की आंतरिक राजनीति थी।
अंतर्राष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच) का सिंथेटिक एस्ट्रोटर्फ को अंतरराष्ट्रीय हॉकी टूर्नामेंटों के लिए आधिकारिक खेल मैदान बनाने का निर्णय भारतीय हॉकी के भविष्य को अंधेरे में ले गया और इसके परिणामवरूप वर्ष 1976 के मॉन्ट्रियल ओलंपिक में, भारत एक भी पदक नहीं जीत सका।
इसके बाद भारतीय हॉकी का पतन जारी रहा और 2008 में जब भारतीय टीम बीजिंग ओलंपिक के लिए QUALIFY करने में विफल रही, तब उसी क्षण तत्काल निर्णय लिया गया और केपीएस गिल को उनके 15 साल के कार्यकाल के बाद हटा दिया गया।
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हालाँकि, फिर वर्ष 2014 आया और समय का चक्र भी पलटा क्योंकि इस साल हॉकी में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए। ओडिशा की सरकार, जिसका प्रशासन नवीन पटनायक के हाथों में था, उन्होंने हॉकी की ओर अपना ध्यान तब आकर्षित किया, जब सभी बड़े राजनीतिक नेता क्रिकेट के पीछे भाग रहे थे। हॉकी खेल के दिग्गज दिलीप तिर्की पटनायक की पार्टी बीजेडी में शामिल हुए और दोनों ने मिलकर भारतीय हॉकी की बेहतरी की प्रक्रिया शुरू की।
और इतना ही नहीं, दिलीप ने पटनायक से हॉकी से संबंधित बुनियादी ढांचे के निर्माण को प्रोत्साहित करने की भी अपील की। नतीजतन, ओडिशा ने न केवल चैंपियंस ट्रॉफी 2014 और FIH विश्व हॉकी लीग फाइनल 2017 की मेजबानी करने की जिम्मेदारी संभाली, बल्कि 2018 विश्व कप की मेजबानी करने की भी इच्छा जताई थी। इस योगदान के लिए नवीन पटनायक के प्रति हर एक भारतवासी अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए आगे आ रहा है और वास्तव में नवीन पटनायक के प्रति उन सभी के हृदयों में एक अलग ही सम्मान समाहित है।
TFI ने वर्ष 2018 में अपनी एक रिपोर्ट में बताया था की कैसे ओडिशा ने उस समय इतिहास में अपना नाम इंगित कर लिया था जब वह किसी खेल में भारतीय टीम को प्रोत्साहित कर उसे स्पॉन्सर करने का बीड़ा उठाया। आज भी ओडिशा ही टीम इंडिया की स्पॉन्सर है। इसके अलावा, Annual Calendar for Training and Competition (ACTC) and Target Olympic Podium Scheme (TOPS), इन दो प्रमुख सरकारी खेल योजनाओं के माध्यम से, सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि हॉकी खिलाड़ी आर्थिक रूप से समृद्ध हों जिससे उनके पोषण और खेल के अंतर्गत आने वाली सभी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।
ज्ञात को कि, TOPS की शुरुआत मोदी सरकार ने 2014 में की थी और कुल 58 हॉकी खिलाड़ी, 33 पुरुष और 25 महिलाएं, सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के तहत 50,000 रुपये का मासिक भत्ता प्राप्त कर रहे हैं। भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में, सरकार ने एथलीटों पर 1,200 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इससे वाकई हर उस खिलाड़ी का खेल के प्रति मनोबल बढ़ता है जिसका खेल के अंदर कोई मुकाबला नहीं कर सकता बस जो कमी रहती है वो मात्र अर्थिक रूप से सबल नहीं होते हैं। यह भारत के हॉकि में सुपरपावर बनने की शुरुआत थी। यही वह टर्निंग पॉइंट था जिससे आज भारत एक बार फिर इस खेल में अपना परचम लहराने को तैयार है।
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भारतीय कप्तान मनप्रीत सिंह ने भत्ता देने के सरकार के फैसले की सराहना की और कहा, “हमारे पास बहुत से खिलाड़ी हैं जो बहुत गरीब परिवार से आते हैं और मिलने वाले इस भत्ते से उन्हें बिना किसी बाधा के ओलंपिक खेलों में अपने खेल को आगे बढ़ाने में मदद करेगा।”
दुनिया भर में देशों के लिए यह बुरी खबर है कि भारतीय टीम अब अपने पुराने स्वर्णिम राह पर कदम आगे बढ़ा चुका है। अगर सरकार अपना समर्थन देने के साथ-साथ और हॉकी इंडिया को राजनीतिक पचड़े से बचा कर रखती है, तो हम एक बार फिर लंबे समय तक इस ऐतिहासिक खेल का पावरहाउस बना रह सकता है।
यह ओलंपिक संभवत: अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों और विशेष रूप से हॉकी में भारत के प्रतिनिधित्व के स्वर्ण युग की शुरुआत है। भारत ने टोक्यो ओलंपिक में अपनी अब तक की सबसे बड़ी टुकड़ी भेजी, जो हमें बताती है कि अधिक से अधिक भारतीय खिलाड़ी इस तरह के मेगा इवेंट के लिए क्वालीफाई कर रहे हैं। खेल में हारकर सीखना एक सतत प्रक्रिया है और निश्चित ही भारतीय महिला और पुरुष टीमें अपनी कमर कस्ते हुए आगे की रणनीति तय कर भारत का वो दौर वापस लाने वाली हैं जब हॉकी खेल में भारत सानी नहीं था।