मोदी सरकार ने पिछले 7 वर्षों में किए गए सुधारों के साथ विकास के एक लंबे चक्र को आगे बढ़ाया है, जो पूरे एक दशक या उससे अधिक समय तक चलने की संभावनाएं हैं। यह पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपयी सरकार द्वारा शुरू किए गए विकास चक्र के समान ही होगा, जो कि यूपीए के भ्रष्टाचार और नीतिगत पक्षाघात के बावजूद करीब एक दशक तक चला था। जब मोदी सरकार ने कार्यभार संभाला, तो उसने विकास को गति देने के लिए उन कदमों का सहारा नहीं लिया, जिनके दम पर यूपीए के शासनकाल के दौरान अनेकों भ्रष्टाचार के कारण मुद्रास्फीति आसमान छू गई। इसके उलट मोदी सरकार ने सुधारों पर जोर दिया और मुद्रास्फीति की दरों पर लगाम लगाई। ऐसे में धैर्यपूर्वक विकास के लिए एक प्राकृतिक और टिकाऊ चक्र की प्रतीक्षा थी, जो अब देखने को मिल रही है।
बैंक ऑफ अमेरिका ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि भारत एक बहु-वर्षीय CapEx Cycle यानि Capital Expenditure Cycle के शिखर पर है। इस ब्रोकरेज फर्म का मानना है कि भारत का ये CapEx Cycle वित्तीय वर्ष 2002-03 और 2011-12 के बीच देखे गए CapEx Cycle के समान हो सकता है। हालाँकि, ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है। एक भयंकर महामारी के बावजूद सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों और कम लागत वाले आवास पर निवेश सहित बुनियादी ढांचे पर खर्च में भारत का चक्रीय विकास सकारात्मक दिख रहा है।
यूपीए शासन और उसके पतन की शुरुआत भले ही कई अरबों के घोटालों के उजागर होने के साथ हुई हो, लेकिन इसकी वास्तविक गिरावट उच्च अस्थिर मुद्रास्फीति की दरों के चलते हुई, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था सहित समाज को त्रस्त कर दिया और मध्यम वर्ग को चोट पहुंचाई। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस और उसके पॉलिसी पेपर के मुताबिक अक्टूबर 2016 से मार्च 2020 के बीच औसत महंगाई दर 3.93 फीसदी रही, जिसे मोदी सरकार की एक सबसे बड़ी सफलता माना जाता है।
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यद्यपि, पिछले दो महीनों में मुद्रास्फीति की दर भले ही 6 प्रतिशत से ऊपर चली गई हो, लेकिन जुलाई में यह जल्दी ही 5.59 प्रतिशत के साथ कंट्रोल में आ गई। ज्यादा होने के बावजूद मुद्रास्फीति केंद्रीय बैंक के 2 प्रतिशत से 6 प्रतिशत लक्ष्य के दायरे में ही है। मार्च 2016 में, मोदी सरकार ने केंद्रीय बैंक के पालन के लिए और मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण शासन स्थापित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम में संशोधन किया। RBI को एक मौद्रिक नीति चलानी थी जो यह सुनिश्चित करती कि मुद्रास्फीति 2 प्रतिशत point band के साथ 4 प्रतिशत तक सीमित रहे।
मोदी सरकार और यूपीए सरकार के बीच औसत मुद्रास्फीति दर का यह अंतर स्पष्ट करता है कि एक निर्णायक सरकार आम आदमी पर वित्तीय बजट को कम करने में भूमिका निभा सकती है। यहां तक कि पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने में यूपीए सरकार की अक्षमता को स्वीकार करते हुए कहा था, “मुझे लगता है कि यूपीए-2 रिपोर्ट कार्ड में मुद्रास्फीति एक लाल झंडे की तरह थी।” COVID-19 संक्रमणों में गिरावट देश में टीकाकरण की गति में तेजी के बीच आए ये नवीनतम मुद्रास्फीति के सकारात्मक आंकड़े सामने आए हैं।
सुधार
अर्थव्यवस्था को सतत् और प्राकृतिक प्रगति के पथ पर बनाए रखने के लिए मोदी सरकार द्वारा सुधार के लिए उठाए गए कदम के प्रमुख है। विदेशी निवेश को बढ़ावा देने से लेकर 2012 में यूपीए सरकार द्वारा पेश किए गए विवादास्पद पूर्वव्यापी कराधान के नकारात्मक प्रभाव को समाप्त करने के लिए, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कराधान कानून (संशोधन) विधेयक पेश किया, और यूपीए के कानूनों को खत्म कर दिया। ये पूर्वव्यापी टैक्स एक नकारात्मक टैक्स था, जिसने भारत में निवेश के माहौल को नकारात्मक बना दिया था। इसके अलावा, इसने वोडाफोन और केर्न्स ऊर्जा मध्यस्थता मामलों में सौजन्य से देश की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
नया पेश किया गया बिल भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए माहौल को काफी हद तक बढ़ाएगा। एफडीआई की बात करें तो, भारत 2020 में देश में 64 बिलियन डॉलर के प्रवाह के साथ दुनिया भर में एफडीआई के सबसे बड़े प्राप्तकर्ताओं में से एक था। व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की रिपोर्ट में कहा गया है कि COVID के कारण वैश्विक FDI प्रवाह में 35 प्रतिशत की गिरावट आई है, भारत में FDI 2019 में 51 बिलियन अमरीकी डालर से 2020 में 27 प्रतिशत बढ़कर 64 बिलियन अमरीकी डालर हो गया, जो कि भारत की अभूतपूर्व बढ़त को दर्शाता है।
FDI में बढ़ोतरी
सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) में अधिग्रहण से एफडीआई में वृद्धि हुई है। पिछले साल, फेसबुक ने रिलायंस जियो में 5.7 बिलियन डॉलर(43,574 करोड़ रुपये) में 9.99 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी, जिसने इसे दुनिया में कहीं भी एक तकनीकी कंपनी द्वारा अल्पमत हिस्सेदारी के लिए सबसे बड़ा निवेश बना दिया था।
यूनिकॉर्न कंपनियों की बढ़ोतरी
2021 भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिए एक सनसनीखेज वर्ष रहा है, जिसने यूनिकॉर्न की संख्या और जुटाई गई फंडिंग दोनों के मामले में सभी के अनुमानों को पीछे छोड़ दिया है। अकेले जुलाई 2021 में, भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम ने लगभग 10 बिलियन डॉलर जुटाए और अपनी कैप में तीन नए यूनिकॉर्न जोड़े। यह 2020 में जुटाई गई पूरी राशि से कहीं अधिक था।
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आज भारत के युवा जब मैदान में उतरते हैं, तो उनमें वो हिचक नहीं होती।
वो मेहनत करना चाहते हैं, वो रिस्क लेना चाहते हैं, वो नतीजे लाना चाहते हैं।
Yes, We belong to this place- ये भाव आज हम अपने युवाओं में देख रहे हैं।
इसी प्रकार का आत्मविश्वास आज भारत के Startups में है: PM
— PMO India (@PMOIndia) August 11, 2021
40,000 से अधिक कंपनियों और लगभग 44 यूनिकॉर्न के साथ भारतीय स्टार्टअप का तंत्र दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा है। साल के पहले 8 महीनों में 21 स्टार्टअप ने इस सूची में जगह बनाई है। भारत ने इस साल पहला हेल्थटेक, सोशल कॉमर्स, क्रिप्टो और एफार्मेसी यूनिकॉर्न स्थापित किया है। अगस्त के महीने में भारत पे, माइंडटिकल, अपग्रेड और कॉइनडीसीएक्स हाल ही में शामिल हुए हैं। दो कंपनियों के घाटे में चलने के बावजूद Zomato और Nazara का हालिया बंपर IPO यह स्पष्ट करता है कि निवेशक भारत के विकास की राह पर अग्रसर होने से उत्साहित हैं। नतीजतन, शेयर बाजार तेजी से उछाल मार रहा है, और निफ्टी अगस्त के पहले सप्ताह में अपने ऐतिहासिक 16,000 के आंकड़े तक को पार कर चुका है।
GST
सुधारों की बात करें तो वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की शुरूआत ने भारत की बेतरतीब कर प्रणाली का कायाकल्प कर दिया है। वित्त मंत्रालय की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक जुलाई महीने में जीएसटी कलेक्शन में पिछले साल (जुलाई 2020) के इसी महीने की तुलना में 33 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई। जुलाई 2021 के महीने में 1.16 लाख करोड़ रुपये के वस्तु और सेवा कर के राजस्व संग्रह ने संकेत दिया है कि चीन द्वारा दी गई वैश्विक महामारी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से उबर रही है।
वाणिज्य मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी में कहा गया है कि, “जुलाई 2021 के महीने में एकत्रित सकल जीएसटी राजस्व 1,16,393 करोड़ है, जिसमें सीजीएसटी 22,197 करोड़, एसजीएसटी 28,541 करोड़, आईजीएसटी 57,864 करोड़ का रहा है।” देश के लिए जीएसटी कलेक्शन लगातार आठ महीनों के लिए 1 लाख करोड़ रुपये तक सीमित रह गया था और जून 2021 में क्षणिक रूप से कम हो गया था। हालांकि, अधिकांश राज्यों में लॉकडाउन हटाए जाने के बाद, संग्रह ने 1 लाख करोड़ की बाधा को पार किया है। ऐसे में फिर एक बार अर्थव्यवस्था के खुलने और बाकी कोविड प्रतिबंधों के हटने के साथ, अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी होने की उम्मीदें हैं।
पीएलआई योजनाएं
अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में PLI योजना ने भी देश के विकास को गति प्रदान की है। भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की दृष्टि से सरकार ने PLI योजना शुरू की और अब तक इसका विस्तार अर्थव्यवस्था के प्रमुख और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में किया गया है। जिन नौ क्षेत्रों के लिए इस योजना को पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है, उनमें इलेक्ट्रॉनिक या प्रौद्योगिकी उत्पाद (5 साल के लिए 5,000 करोड़ रुपये का परिव्यय), फार्मास्यूटिकल्स ड्रग्स (15,000 करोड़ रुपये), दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पाद (12,195 करोड़ रुपये), खाद्य उत्पाद (10,900 करोड़ रुपये) शामिल हैं।
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सड़क इनफ्रास्ट्रक्चर और बढ़ता विदेशी मुद्रा भंडार
इसके अलावा, RBI के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 30 जुलाई को समाप्त हुए सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 9.427 बिलियन अमरीकी डॉलर और बढ़कर 620.576 बिलियन अमरीकी डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है। सड़क और परिवहन उद्योग में क्रांति लाने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बताया कि देश को ऐसी बुनियादी ढांचे वाली परियोजनाओं के लिए कम लागत वाले वित्त की आवश्यकता है। दूरदर्शी गडकरी अब इस साल के अंत तक 40 किलोमीटर प्रतिदिन के अनुसार राजमार्ग निर्माण का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं।
2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य देश में बड़ी सस्ती पूंजी के प्रवाह के बिना हासिल नहीं किया जा सकता है, और निवेश तभी आएगा जब एक स्थिर सरकार, अनुकूल कराधान वातावरण, भूमि और श्रम क्षेत्र में संरचनात्मक सुधार हो। मोदी सरकार ने कराधान (जीएसटी, कराधान संशोधन, कॉर्पोरेट कर का युक्तिकरण) में कई मुद्दों का समाधान किया है, इसलिए आने वाले वर्षों में पूंजी में बड़े विस्तार की संभवानाएं हैं। मुद्रास्फीति, एफडीआई और शेयर बाजार में तेजी, जैसे प्रमुख संकेतक साबित करते हैं कि भारत वास्तव में अर्थव्यवस्था के सही रास्ते पर जा रहा है, और ये एक नई इबारत लिख सकता है।