अद्भुत !! दुर्लभ !! अद्वितीय !! अफगानिस्तान में आतंक और अत्याचार के बीच अदम्य साहस का उत्कृष्ट उदाहरण देखने को मिला । जान बचाने के लिए जान जोखिम में डालते लोग और पूरे मुल्क मेंं पसरे मातम के माहौल के बीच उम्मीद का दिया जलाता रतननाथ मंदिर के पुजारी पंडित राजेश कुमार जी ।
काबुल मेंं रतन नाथ मंदिर के पुजारी पंडित राजेश कुमार ने अपनी जान बचाने के लिए काबुल से भागने से इनकार कर दिया। उन्होनें कहा- “कुछ हिंदुओं ने मुझसे काबुल छोड़ने का आग्रह किया और मेंरी यात्रा और ठहरने की व्यवस्था करने की पेशकश की। लेकिन मेरे पूर्वजों ने सैकड़ों वर्षों तक इस मंदिर की सेवा की। मैं इसे नहीं छोड़ूंगा। अगर तालिबान मुझे मारता है, तो मैं इसे अपनी सेवा मानता हूं।”
इस्लामवादियों के हमले के डर से, अफगानिस्तान के अंतिम ज्ञात यहूदी, ज़ाबुलोन सिमंतोव ने देश छोड़ दिया। ज़ाबुलोन सिमंतोव अफगान शहर हेरात मेंं जन्में और पले-बढ़े । वह लगभग चार दशकों से काबुल मेंं आराधनालय (सिनेगाग), एक यहूदी पूजा स्थल की देखभाल कर रहे हैं। हेरात कभी सैकड़ों यहूदियों का घर था, लेकिन अंततः इस्लामवादी हमले से कोई नहीं बच सका। अफगानिस्तान मेंं यहूदी इतिहास लगभग 2000 साल पुराना है। सिमंतोव के बाहर जाने के साथ, अफगानिस्तान के यहूदी इतिहास का एक अध्याय समाप्त हो जाएगा।
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सिमंतोव के वहां नहीं होने से देश का एकमात्र आराधनालय भी अपने शटर गिरा देगा। 1961 मेंं हेरात मेंं जन्में सिमंतोव बचपन मेंं ही काबुल चले गए थे। 1992 मेंं, जब तालिबान के हुक्म ने उसके लिए शहर मेंं जीवित रहना असंभव बना दिया, तो वह ताजिकिस्तान भाग गया।
लेकिन पंडित राजेश कुमार नहीं डिगे । उन्होनें साबित किया की प्रेम और आस्था में सचमुच तलवार और किसी भी हथियार से ज़्यादा ताकत होती है । गोलियों के बीच मंदिर की घंटी बजी और आग की लपटो के बीच आरती । जिस अफगानिस्तान के मुस्लिम अमीरात घोषित होने से घबराए मुस्लिम भाग रहे हैं उसी प्रलय के बीच सनातन का सच्चा सेवक खड़ा है, बिलकुल शांत और निर्भीक ।
जानमाल की फिक्र से बेखबर मंदिर की सेवा मेंं, अमेंरिका और नाटो राष्ट्रों के उतरते ध्वज के बीच आखिरी पताका लेकर खड़ा ये सनातनी योद्धा उन करोड़ो अफगानियों को उम्मीद और साहस की सीख दे रहा है ।
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विप्र सेना प्रमुख सुनील तिवारी ने भारत सरकार से मांग करते हुए कहा कि काबुल मेंं रत्ननाथ मंदिर के पुजारी पंडित राजेश कुमार शर्मा को भारत लाया जाए । पुजारी को भारत लाने का जितना भी खर्चा होगा वह रुपए सेना द्वारा देने को तैयार है । इसके लिए उन्होंने इस संबंध मेंं संबंधित भारत सरकार के मंत्रालय को मेंल द्वारा सूचित किया है ।
उन्होंने कहा कि पंडित राजेश कुमार के भारत आने के बाद उनके लिए यहां पर एक मंदिर की स्थापना की जाएगी। जिससे उनका जीवन यापन सही से हो। मंदिर निर्माण मेंं जो भी समय लगेगा उस दौरान पंडित राजेश कुमार को समस्त प्रकार की सुविधाएं निशुल्क विप्र सेना के द्वारा दी जाएगी।
बताते चलें की अफगानिस्तान मेंं केवल अनुमानित 700 सिख और हिंदू ही बचे हैं। मंदिरों की हालत तो बाद से बदतर है। गिने चुने मंदिर बचे है जिसमें ‘आशामाई’ का मंदिर ही एकमात्र प्रमुख मंदिर है। रतन नाथ मंदिर तो नज़र मेंं न आने के कारण बचा हुआ है। हिन्दू और सिख तो दशकों के भेदभाव और लक्षित हिंसा के बाद कई मारे गए हैं और कई अधिक भाग गए हैं। अफगानिस्तान और मुख्य रूप से तालिबान अल्पसंख्यकों पर हिटलर समान अत्याचार और अन्याय के लिए जाना जाता है। तालिबान के बर्बरता के खौफ के आगे जब वह के राष्ट्रपति गनी, वरिष्ठ अधिकारी, सैनिक और आम जनता सब भाग रहे हैं ऐसे समय मेंं रतन नाथ मंदिर के पुजारी का भागने ने मना करना साहस का सर्वोच्चतम प्रतीक है। धन्य है ऐसा धर्म और धन्य है ऐसे धर्म के अनुयायी।