‘हम तो डूबे हैं सनम, साथ तुम्हें भी ले डूबेंगे।’ यह कहावत महाराष्ट्र के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में एक दम प्रासंगिक बैठती है। महाविकास अघाड़ी सरकार के तीनों साथी शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस इन तीनों दलों की आपसी कलह से कोई भी अनभिज्ञ नहीं था। अब MVA सरकार अपनी और पार्टी की साख बचाने की हर मुमकिन कोशिश में जुटी हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री और राकांपा नेता अनिल देशमुख की सीबीआई जांच के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की याचिका खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी नाराजगी को रेखांकित करते हुए कहा कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा याचिका दायर करने से ऐसा लगता है कि वह देशमुख को बचाने की कोशिश कर रही है। बस यह बचाने की मजबूरी इसीलिए आन पड़ी है क्योंकि चाहे सीएम उद्धव हों या शरद पवार इन दोनों को ही अपना राजनीतिक भविष्य अंधकारमय दिखने लग गया है।
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यही कारण है कि अपने काले चिठ्ठे ढके रखने के लिए उद्धव सरकार जांच एजेंसियों को ही दोषी ठहराते हुए उन्हें आरोपित बनाने का स्वांग रचती फिर रही है ताकि देशमुख को बलि का बकरा बनने से बचाया जा सके।
The #SupremeCourt declined to entertain #Maharashtra government's plea seeking to set aside two paragraphs in connection with transfer and posting of police officers, reinstatement of an officer from CBI's FIR against NCP leader and former home minister #AnilDeshmukh. pic.twitter.com/JtqZY2CV6D
— IANS (@ians_india) August 18, 2021
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री और एनसीपी नेता अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत पहुंचने पर महाराष्ट्र सरकार से तीखे सवाल किए हैं। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सीबीआई जांच का विरोध करने से ऐसा लगता है कि राज्य सरकार अभियुक्त पूर्व मंत्री की रक्षा कर संरक्षण देने का प्रयास कर रही है।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि राज्य को “प्रशासन में शुद्धता” सुनिश्चित करने के लिए किसी भी जांच के लिए तैयार रहना चाहिए।
यह तो सर्वविदित सत्य है कि “जब इस पूरे प्रकारण में (आपके) गृह मंत्री शामिल हैं, तो आप क्या ऐसी कौन-सी सरकार होगी जो अपने ही मंत्री के विरुद्ध जाँच पर सहमति देगी।”
इसलिए उच्च न्यायालय ने जांच का आदेश दिया है। आपको अपने स्वयं की सुविधानुसार न्याय करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। जो स्थिति अभी राज्य सरकार द्वारा देशमुख के केस में उत्पन्न की जा रही है इससे यह आभास होता है कि महाराष्ट्र सरकार पूर्व मंत्री को बचाने की कोशिश कर रही है।”
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महाराष्ट्र सरकार के वकील जो शुरू से मामले को स्थगित कराना चाहते था यह तर्क देते हुए दिखे कि राज्य ने सीबीआई जांच के लिए सहमति नहीं दी थी। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “आपको (महाराष्ट्र सरकार) एक पूर्ण और निष्पक्ष जांच की अनुमति देनी चाहिए। इसमें क्या कठिनाई है? यह जांच राज्य के खिलाफ नहीं है। यह जांच राज्य के पूर्व गृह मंत्री के खिलाफ है।”
सीबीआई द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट में यह कहने के कुछ दिनों बाद याचिका दायर की गई थी कि महाराष्ट्र सरकार जांच को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक दस्तावेजों को साझा करने से इनकार कर रही है।
एजेंसी ने अदालत को बताया था कि महाराष्ट्र सरकार ने कहा था कि चूंकि उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की योजना बनाई है, इसलिए वह सीबीआई के साथ अनुरोधित दस्तावेजों को साझा नहीं करेगी। जोकि निश्चित ही सरकार की ओर से कानूनी और जांच प्रक्रिया में बाधा डालने का प्रयास था।
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मंगलवार को राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया कि वह सीबीआई के साथ सहयोग करने को तैयार है, लेकिन जोर देकर कहा कि केंद्रीय एजेंसी द्वारा मांगे गए दस्तावेज मामले से “प्रासंगिक नहीं” हैं। यह प्रासंगिक राग इस वजह से छेड़ा जा रहा है क्योंकि अनिल देशमुख पर राज्य के गृह मंत्री रहते हुए कई आरोप लगे थे।
जिनमें मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह ने पद से हटाए जाने के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि अनिल देशमुख ने कुछ पुलिस अधिकारियों को प्रति माह 100 करोड़ रुपये की उगाही का लक्ष्य दिया था।
ऐसे में यदि ऐसे दस्तावेज कोर्ट के समक्ष आ गए जिससे सरकार और अन्य नेताओं के नपने की संभावना और बढ़ जाती है, तो सरकार और प्रशासन अपने पैर पर कुल्हाड़ी क्यों मारेगा जब उसे पता है कि यह उसके सत्ता और शासन के ताबूत में ठोंकी गई अंतिम कील साबित हो सकता है।
यह पहली बार नहीं है जब राज्य ने सीबीआई जांच को अधिकृत करने वाले उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया है।