आप विचार कीजिए कि आप एक शहर में तीन-चार महीने बिताने गए हैं। किसी दुकान से कोई फ्रीज रेंट पर लेटे हैं जब आपने फ्रीज रेंट पर लिया तो उस पर लागू होने वाला किराया 1500 रुपये था, लेकिन जब आप फ्रीज वापस लौटने गए तो दुकानदार ने आपको बताया कि अब उसने फ्रीज का किराया बढ़ाकर 2000 रुपये कर दिया है, इसलिए आपको 500 रुपये अतिरिक्त किराया, पिछले चार महीनों के हिसाब से देना ही पड़ेगा। आपको लगेगा कि यह सरासर लूट है। लेकिन ऐसा ही एक कानून भारत में लागू था, जिसे रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स कहते थे। हालांकि, अब भारत सरकार टैक्स कानून में संशोधन के लिए नया बिल लेकर आई है, जिसके बाद रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स कानून समाप्त हो जाएंगे।
2012 में UPA के शासन में आए इस रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स कानून में ऐसा ही प्रावधान था। उदाहरण के लिए मानिए कि कोई कंपनी भारत में 1990 से व्यापार कर रही है और मानिए कीह 15 प्रतिशत टैक्स भर रही है।अचानक 2013 में सरकार ने टैक्स की दर बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दी, तो कंपनी तो रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स के नियमों के अनुसार 1990 से 2013 तक हर साल की कमाई पर 5 प्रतिशत अतिरिक्त टैक्स भुगतान करना पड़ेगा।अगर सरकार किसी समय टैक्स 25 प्रतिशत कर देती है तो उस समय तक के प्रतिवर्ष हुए लाभ पर कंपनी को 5 प्रतिशत टैक्स फिर से भरना पड़ेगा।
मोदी सरकार ने इस विवादित रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स कानून को समाप्त कर दिया है।यह सारा विवाद शुरू तब हुआ था जब वोडाफोन ने टैक्स भुगतान के एक मामले में भारत सरकार को हरा दिया था।
2007 में वोडाफोन ने हच कंपनी को खरीदा था। यह अपने समय की बहुत बड़ी डील थी और वोडाफोन को इस लेनदेन के ऊपर भारत सरकार को करीब 7000 करोड़ से अधिक राशि का भुगतान करना था। डील होने के बाद जब भारत सरकार ने वोडाफोन से उनके हिस्से का कर भुगतान करने को कहा तो वोडाफोन ने भारत सरकार के ही एक नियम का हवाला देते हुए टैक्स देने से मना कर दिया। तब तक भारत में टैक्स के जो नियम लागू होते थे उसके अनुसार यदि कोई डील भारत की भूमि के बाहर होती है तो सरकार उसपर टैक्स नहीं ले सकती थी।
वोडाफोन ने इसी नियम का लाभ उठाया।वोडाफोन ने चोरी नहीं कि, केवल भारत सरकार के नियमों के हिसाब से अपना टैक्स बचा लिया। सरकार ने इस मामले को न्यायालय में चुनौती दी, जिसमें हाई कोर्ट में सरकार की जीत हुई लेकिन जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो उच्चतम न्यायालय ने फैसला वोडाफोन के पक्ष में सुनाया। भारत सरकार ने अपनी हार स्वीकार करके नियमों के संशोधन करने के बजाए 2012 में रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का कानून संसद में पारित कर दिया। कांग्रेस सरकार ने इस मामले को अपनी साख का प्रश्न बना लिया, जबकि सारा मामला सुप्रीम कोर्ट जा चुका था और उच्चतम न्यायालय ने वोडाफोन के पक्ष में निर्णय किया था। UPA सरकार को तात्कालिक समय की मांग को समझते हुए ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए था।
जैसे ही सरकार ने यह नियम पारित किया, निवेशक भारत में निवेश करने से डरने लगे। एक वोडाफोन को सबक सिखाने के चक्कर में कांग्रेस सरकार ने लाखों करोड़ के निवेश को दांव पर लगा दिया। इसके बाद इस कानून को क्रेन एनर्जी ने इंटरनेशनल आर्बिटरी कोर्ट में चुनौती दी, जहाँ भारत सरकार की हार हुई। हालांकि, इंटरनेशनल आर्बिटरी कोर्ट का कोई भी निर्णय भारत सरकार पर बाध्यकारी नहीं है, लेकिन इससे भारत की छवि को नुकसान हुआ। सरकार इस समय भारत को ग्लोबल सप्लाई चेन में केंद्रीय भूमिका में लाने का प्रयास कर रही है। तमाम अंतरराष्ट्रीय एजेंसी भारत की तीव्र आर्थिक विकास की संभावनाएं व्यक्त कर रही हैं, ऐसे में सरकार नहीं चाहती कि निवेशकों को भारत में निवेश के प्रति कोई भी आशंका हो।