भारत में जब-जब राष्ट्रवादियों का गुणगान होता है, तब-तब एक ख़ास वर्ग को दिक्कत होती है। हाल ही में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यान चंद्र के नाम पर कया गया तब भी लेफ्ट-लिबरल लॉबी ने इस पर ख़ूब हंगामा काटा। ऐसा ही कुछ अब एक बार दोबारा से देखने को मिल रहा है। दरअसल, भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद ने ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ को लेकर स्वतंत्रता सेनानियों की एक तस्वीर जारी की। पोस्टर में स्वतंत्रता सेनानियों के साथ नेहरू की तस्वीर नहीं थी, बस फिर क्या था लेफ्ट-लिबरल-कांग्रेसी लॉबी की रुदाली शुरु हो गई।
इन लोगों को मिर्ची इस बात से कम लगी कि नेहरू की फोटो नहीं थी बल्कि इस बात से अधिक लगी कि सावरकर की फोटो क्यों थी ?
दरअसल, सूचना और प्रसारण मंत्रालय 23 अगस्त से 29 अगस्त तक आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में प्रतिष्ठित सप्ताह मना रहा है। मंत्रालय की विभिन्न मीडिया ईकाईयों ने इस अवसर पर विभिन्न गतिविधियों की योजना बनाई है। आजादी का अमृत महोत्सव के तहत एक पोस्टर को भी लॉंन्च किया गया था। इस पोस्टर में स्वतंत्रता सेनानियों के साथ पहली बार उस पराक्रमी सैनानी को वो स्वीकृति दी गई जिसके लिए न जाने कितने दशकों से राष्ट्रवादी संगठन विभिन्न माध्यमों से मांग कर रहे थे।
राष्ट्र प्रेमियों और सावरकर के अनुयायियों को सम्मान प्रदान करने के लिए आजादी का अमृत महोत्सव के पोस्टर में वीर सावरकर की तस्वीर को रखा गया है।
ज्ञात हो कि आजादी के लिए सावरकर ने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो ‘मित्र मेला’ के नाम से जानी गई। 1905 के बंग-भंग के बाद उन्होंने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में पढ़ने के दौरान भी वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देते थे। निस्संदेह वीर सावरकर विश्वभर के क्रांतिकारियों में अद्वितीय थे। उनका नाम ही भारतीय क्रांतिकारियों के लिए उनका संदेश था। वे एक महान क्रांतिकारी, इतिहासकार, समाज सुधारक, विचारक, चिंतक, साहित्यकार थे। उनकी पुस्तकें क्रांतिकारियों के लिए गीता के समान थीं।
आज के लिबरलगुट को यह सब हजम नहीं होता। लेफ्ट-लिबरल आज भी सावरकर को स्वतंत्रता सेनानी नहीं मानते। इसलिए, आजादी का अमृत महोत्सव का यह पोस्टर आने के बाद एक बार फिर से ये लोग धड़ल्ले से वीर सावरकर के विरुद्ध सोशल मीडिया पर अनर्गल बातें लिखने में लगे हैं।
वे इसी बात पर रुदाली कर रहे हैं कि आजादी का अमृत महोत्सव के उस पोस्टर में सावरकर को क्यों स्थान दिया गया और जवाहरलाल नेहरू को क्यों उपेक्षित किया गया? भले ही यह गुट विरोधी मानसिकता को घोट के पीता रहे, सत्य यही है कि सावरकर एक मात्र ऐसे स्वतंत्रता सैनानी थे जिन्होंने अंग्रेज़ी हुकूमत के कुशासन को सर्वाधिक झेला और जेल के भीतर उन पर हुई प्रताड़ना का तो कोई सानी ही नहीं है।
नेहरू की बात करें तो इसमें कोई दोराय नहीं है कि नेहरू धनाड्य परिवार से आते थे। जिनको कोई हानि तो प्राप्त नहीं हुई बल्कि चारों ओर से लोकप्रियता और पद प्रतिष्ठा ही मिली। नेहरू महात्मा गांधी के पिछलग्गू और चापलूस थे जोकि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अल्पमत प्राप्त होने के बाद भी प्रधानमंत्री बन गए। ऐसे में यदि लेफ़्ट ब्रिगेड अब नेहरू के पोस्टर में न होने की वजह से सरकार को घेरती है तो उसे आईना दिखाने के लिए यह तथ्य भी आँखों से पट्टी खोलकर ज्ञान में भर लेने चाहिए।
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सावरकर को यह सम्मान बहुत पहले मिल जाना चाहिए था परंतु सत्ता की बागडोर उन एजेंडाधारकों के हाथों में थी जो देश के दो टुकड़े करने वाले जिन्ना को अपना मित्र मानते थे और देश के लिए बलिदान देने वाले सावरकर को ‘आतंकी’ बताते थे।
यह सर्वविदित सत्य है कि सावरकर का जीवन बहुआयामी था पर इससे एकराय न रखते हुए सभी विरोधियों समेत स्वतंत्रता आंदोलन में सहभागी रही कांग्रेस पार्टी आज उन्हें कोसते नहीं थकती है। जबकि सावरकर ही एकमात्र वो क्रांतिकारी थे जिन्होंने नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षड्यंत्र कांड के आरोप में काला पानी की सजा काटी थी। इस जेल में कैदियों को कोल्हू में बैल की तरह जोत दिया जाता था। सावरकर 4 जुलाई 1911 से 21 मई 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। यह एक बहुत बड़ा कालखंड था और अपने जीवन का इतना बड़ा समय सावरकर ने देश की स्वतंत्रता के लिए न्योछावर कर दिया।
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कई नेता भी ऐसे हैं जिन्हें कहना तो बहुत कुछ है पर कह नहीं पा रहे हैं। उन्हीं में से एक हैं शिवसेना से राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा- ‘ये भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की असुरक्षा को दर्शाता है। यदि आप स्वतंत्र भारत के निर्माण में दूसरों की भूमिका को कम करते हैं तो आप कभी भी बड़े नहीं दिख सकते। आजादी का अमृत महोत्सव तभी मनाया जा सकता है जब यह सभी की भूमिका को स्वीकार करे। भारत के पहले प्रधानमंत्री को हटाकर, ICHR अपनी क्षुद्रता और असुरक्षा को दर्शाता है। यहां शिवसेना नेता कहना तो यह चाहती हैं कि इस तस्वीर में सावरकर को नहीं होना चाहिए लेकिन कह नहीं पा रही हैं।
अब यदि वामपंथी मीडिया से लेकर आतंकी एजेंडा प्रस्तोता सावरकर को मौका परास्त और देशद्रोही कहते हैं तो उसको तमाचा मारने के लिए पूरा देश एकजुट खड़ा है क्योंकि जिन इतिहासकारों ने सावरकर जैसे अनन्य देशप्रेमियों कि छवि धूमिल की है आज उनकी सत्यता सबके सामने है।