सुप्रीम कोर्ट के 71 साल पुराने इतिहास में वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस नरसिम्हा, ऐसे छठे वकील बन सकते हैं जिन्हें कॉलेजियम की सिफारिश पर बार से सीधे शीर्ष अदालत की बेंच में पदोन्नत किया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने केंद्र को पीएस नरसिम्हा का नाम सरकार के पास भेज दिया है। ऐसा लगता है कि अब सुप्रीम कोर्ट में समावेशी और मुख्य संस्कृति से जुड़े हुए लोगों को जगह मिल रही है। यह संभव है कि बहुत से “वोक लिबर्ल्स” को यह खबर अच्छी ना लगे क्योंकि पीएस नरसिम्हा, रामलला के भी वकील रह चुके है।
बार काउंसिल से सर्वोच्च न्यायालय जाना कठिन काम है और बड़े स्तर के वकीलों को कॉलेजियम द्वारा यह पद दिया जाता है। पीएस नरसिम्हा ऐसे ही बड़े वकील हैं। मई 1963 में पैदा हुए नरसिम्हा को 2014 में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया था और उन्होंने 2018 में इस पद से इस्तीफा दे दिया था। उनकी उपलब्धियों में BCCI और रामलला मामलें है। अयोध्या विवाद मामलें में पीएस नरसिम्हा रामलला के पक्ष से वकील रह चुके हैं। उन्होंने हमेशा अयोध्या के विवादित स्थल पर रामलला की दावेदारी की है। बता दें कि शीर्ष अदालत ने 9 नवंबर 2019 को इस मामले में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ किया था।
अयोध्या मामले में महंत रामचंद्रदास की ओर से पेश हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और पूर्व ASG पीएस नरसिम्हा ने फैसले के बाद सार्वजनिक रूप से मुखर होकर कहा था, “सुप्रीम कोर्ट द्वारा हमारे आस्था और विश्वास की मान्यता हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हम शीर्ष अदालत के भी आभारी हैं, जिसने संवैधानिक मूल्य के तहत सभी धर्मों को मान्यता और सम्मान दिया है। अदालत का निर्देश धर्म और बंधुत्व में मजबूती लाएगा। यह देश के लिए एक महान दिन है और हर कोई विजेता है।” उन्होंने अयोध्या मामलें के फैसले पर यह भी कहा था, “मस्जिद बनने से पहले हिंदू राम जन्मभूमि पर पूजा कर रहे थे और मस्जिद बनने के बाद आज भी वे वहां पूजा करते रहे हैं। यह एक महान निर्णय है, एक ऐतिहासिक गलती को सुधारा गया है।”
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वहीं जब बीसीसीआई में चार सदस्यीय COA तकनीकी रूप से काम नहीं कर पा रहा था और मामला न्यायालय में चला गया था तब सुप्रीम कोर्ट ने पीएस नरसिम्हा को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया था। उस वक्त तमाम राज्य क्रिकेट बोर्ड COA पर पैसा न देने के आरोप लगा रहे थे। पीएस नरसिम्हा को इस काम के लिए लगाया गया की वह सारे मतभेदों को दूर करके सुचारू व्यवस्था बनाये। उन्होंने यह किया भी और आज BCCI एक बार फिर से बेहतरीन तरीके से चल रही है। एक कानून अधिकारी के रूप में, उन्होंने इतालवी मरीन मामले में शीर्ष अदालत के समक्ष केंद्र का प्रतिनिधित्व किया था।
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पीएस नरसिम्हा को जानने से पहले उनके पिता जस्टिस श्री पी कोडण्डारामैया को जान लीजिए। वह आंध्रप्रदेश हाइकोर्ट के जज रह चुके है। उन्होंने हिन्दू धर्मग्रंथों को संस्कृत भाषा से तेलुगु भाषा में बदला है और खुद रामायण और महाभारत जैसी किताबें लिख चुके हैं। वह अर्श विंगना ट्रस्ट से जुड़े हुए थे तो लगातार हिन्दू धर्मग्रंथों के प्रचार प्रसार में लगी हुई थी।
‘बापे पूत परापत घोड़ा, बहुत नहीं तो थोड़ा थोड़ा’, पिता से प्राप्त दर्शन और समझ पीएस नरसिम्हा के भी पास रही है। अगर नामों पर स्वीकृति मिल जाती है तो आपको सोशल मीडिया पर विलाप सुनने को मिल सकता है। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में लंबे समय से एक खास प्रकार के मानसिकता वाले लोगों को स्थान दिया जाता था। अब जब पीएस नरसिम्हा जैसे लोग जाकर उसे समावेशी बनाएंगे तो लिबरल भड़कने वाले हैं। नरसिम्हा अपने आस्था और अपने विश्वास को लेकर मुखर रहने वाले व्यक्ति है और हो सकता है की उनके नियुक्ति के बाद लेफ्ट ब्रिगेड न्यायिक हिंदुत्व का रोना रोने लगे।