पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा और बदले की कार्रवाई के अंतर्गत किस तरह से विपक्षियों को निशाने पर लिया जाता है, ये सर्वविदित है। ये एक बड़ा कारण है कि विधानसभा चुनावों के दौरान विरोध करने वाले लेफ्ट के कार्यकर्ता और बुद्धादेव भट्टाचार्या जैसे नेता हार के बाद अगले साढ़े 4 वर्ष के लिए ममता सरकार के सामने सांकेतिक सरेंडर कर देते थे। लेफ्ट का सांकेतिक सरेंडर ये भी दर्शाता था कि कहीं-न-कहीं इन दोनों के बीच एक साठ-गांठ है। इसके विपरीत हाल के विधानसभा चुनावों के बाद ममता के लिए मुश्किलें बढ़ गईं हैं जब विपक्ष में लेफ्ट की बजाय बीजेपी आ गई है, और बीजेपी ने ममता के धुर विरोधी सुवेंदु अधिकारी को विपक्ष का नेता बनाकर ममता की मुश्किलों में दोहरी बढ़ोतरी कर दी है। इसका नतीजा ये हुआ कि ममता के प्रत्येक कुकृत्य पर वो ममता सरकार को अदालत में घसीट रहे हैं।
ममता बनर्जी को जहां बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी से मिली हार चुभती रहती है, तो वहीं बीजेपी उनके चुभने वाले घावों पर नमक छिड़कने काम करती है और सुवेंदु को नेता विपक्ष बनाने का निर्णय इसी का विशेष उदाहरण है। ममता सुवेंदु से किसी भी कीमत पर बदला लेने को आतुर हैं, इसीलिए उन पर सरकारी तंत्र से दबाव बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिसका ताजा उदाहरण हाईकोर्ट के एक निर्णय में भी सामने आया है। ममता सरकार पर आरोप था कि सुवेंदु अधिकारी के करीबी राखल बेरा को फर्जी नौकरी से संबंधित घोटाले का आरोपी बनाकर गिरफ्तार कर लिया गया है, और इस मामले में अब उन्हें हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा है।
सुवेंदु के करीबी राखल बेरा के केस की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने ममता सरकार को स्पष्ट आदेश जारी किया है कि उन्हें तुरंत रिहा किया जाए, और तब तक गिरफ्तार न किया जाए, जब तक कोर्ट की स्वीकृति न हो। कोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश में ये भी कहा कि राखल बेरा के विरुद्ध कोई एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती, और यदि ऐसा कुछ करना भी है तो उसे कोर्ट की अनुमति लेनी होगी। इस मामले में पहले सुजीत डे नाम के एक शख्स ने आरोप लगाया था कि उसके साथ सिंचाई विभाग में सरकारी नौकरी दिलाने के लिए झूठ बोला गया था, जो कि राखल बेरा द्वारा आयोजित एक कैंप से संबंधित है। राखल बेरा के विरुद्ध इस शिकायत के बाद ही पुलिस ने राखल को गिरफ्तार कर लिया था। ध्यान देने वाली बात ये है कि ये पूरा मामला 2019 का है, और इस मामले में अब कार्रवाई होना इस बात का संकेत है कि ये कार्रवाई केवल सुवेंदु के करीबे होने के कारण राखल बेरा के विरुद्ध एक बदले के तहत ही हुई है।
बदले की नीति से हुई इस कार्रवाई का सबसे बड़ा संदेश ये भी है कि ममता सरकार का पक्ष दो पल भी न टिक सका, और राखल बेरा को एफआईआर दर्ज होने तक में कोर्ट का संरक्षण मिल गया। हाईकोर्ट के इस निर्णय को ममता सरकार के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, साथ ही इसे सुवेंदु की ममता के विरुद्ध एक अदालती जीत भी माना जा रहा है क्योंकि सुवेंदु ममता के लिए दिन-प्रतिदिन मुसीबतें खड़ी कर रहे हैं। ये इस बात का संकेत है कि भले ही ममता की विधानसभा चुनावों में जीत हो गई हो, किन्तु ममता के लिए सुवेंदु एक मुश्किल विपक्षी नेता साबित होंगे।
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विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद हुई हिंसा से लेकर अब-तक प्रत्येक मुद्दे पर ममता के खिलाफ सबसे मुखर आवाज सुवेंदु की ही रही है। सुवेंदु इतने दिनों में अनेकों बार ममता को कोर्ट में लताड़ लगवा चुके हैं, कोर्ट के फैसले और ऑब्जरवेशन ममता के लिए ही मुसीबत खड़ी करते हैं क्योंकि प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोए बैठीं ममता को यदि बार-बार कोर्ट से लताड़ ही लगती रहेगी तो उनकी फजीहत होती रहेगी, और सुवेंदु इसे लगातार सार्थक कर रहे हैं। ममता ने विपक्षी नेताओं को पश्चिम बंगाल में बदले की कार्रवाई के तहत दबाव में ही रखा, इसका नतीजा ये है कि बंगाल से लेफ्ट और कांग्रेस का खात्मा हो गया है, और बुद्धादेव भट्टाचार्य सरीखे नेता हाशिए पर जा चुके हैं।
ममता को उम्मीद थी कि लेफ्ट की तरह ही अगले चार वर्षों में वो बीजेपी को भी हाशिए पर ले आएंगी, किन्तु वो शायद ये भूल गईं थीं कि बीजेपी की कमान विधानसभा में सुवेंदु के हाथ में है, जो कि उन्हें प्रत्येक मोर्चे पर चुनौती देते हुए एक मुश्किल विपक्षी नेता साबित होंगे।