पश्चिम बंगाल में विधानसभा में मिली जीत के बाद से ममता बनर्जी की निगाहें अब दिल्ली की कुर्सी पर है। ममता बनर्जी ने अब अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए देश के सभी राज्यों का दौरा करना शुरू कर चुकी हैं। वहीं उनके भतीजे और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी त्रिपुरा के दौरे पर हैं। सोमवार को अभिषेक मां त्रिपुर सुंदरी की पूजा-अर्चना कर वहां के हिन्दुओं को लुभाने का प्रयास करेंगे। परन्तु क्या वास्तव में वो ऐसा करने में सफल हो पाएंगे? क्या ममता बनर्जी और उनकी पार्टी भारत के पूर्वोत्तर राज्य में अपनी पकड़ बना पाएगी और भाजपा को उखाड़ फेकेंने में सफल होंगे ? शायद नहीं, कारण त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा हैं।
ममता की इस योजना के सामने भाजपा के दो धुरंधर चट्टान बनकर खड़े है। पहले दिग्गज हैं खुद त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिपलब देव। भले ही दिल्ली के एलिट वर्ग के मीडिया संस्थानों के लिए अहमियत न रखते हों परन्तु जमीनी स्तर पर त्रिपुरा में उनकी पकड़ काफी मजबूत है। कारण त्रिपुरा में उनके द्वारा किया जा रहा विकास है। जिस त्रिपुरा में मूल सुविधाओं की कमी थी, किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पाता था, वहां केंद्र और राज्य सरकार के प्रयासों के कारण एमएसपी के आधार पर पहली बार 2019 में यहाँ के किसानों से धान खरीदा गया था। जिस त्रिपुरा को land lock राज्य बताकर विकास का हक छीना गया था, उस त्रिपुरा को बिप्लब देब के प्रयासों के कारण ही साउथ-ईस्ट एशिया का नया Gateway बनाया जा रहा है। ये बिप्लब देब के प्रयास ही हैं कि त्रिपुरा के लिए तीन दशक के बाद अगरवुड की अगरबत्ती और तेल के निर्यात का रास्ता साफ हो सका।
जिस त्रिपुरा को हड़ताल कल्चर ने बरसों पीछे कर दिया था, आज वो Ease of Doing Business के लिए काम कर रहा है। जहां कभी उद्योगों में ताले लगने की नौबत आ गई थी, वहां अब नए उद्योगों, नए निवेश के लिए जगह बन रही है। त्रिपुरा का Trade Volume तो बढ़ा ही है, राज्य से होने वाला निर्यात भी करीब – करीब 5 गुणा तक बढ़ गया है। जिस तरह से सीएम बिप्लब देब ने राज्य में काम किया है उसे जनता पुरानी सरकार के 25-30 साल और भाजपा की 3 साल की सरकार में आए बदलाव को स्पष्ट अनुभव कर रही है। ऐसे में ममता बनर्जी की पार्टी का यहाँ आना त्रिपुरा की जनता पर कुछ ख़ास प्रभाव नहीं डाल सकेगा, क्योंकि बंगाल में किस तरह वो तानाशाही राज चलाती हैं वो किसी से भी छुपा नहीं है। कैसे ममता बनर्जी हिंसा को अपने राज्य में बढ़ावा देती हैं, और हिन्दुओं के साथ पक्षपात करती हैं वो भी त्रिपुरा की जनता जानती हैं। जिस त्रिपुरा ने कम्युनिस्ट शासन में केवल गरीबी देखी और विकास के मामले में अपने राज्य को दशकों पीछे जाते देखा उस त्रिपुरा की जनता के लिए बिप्लब देब की अहमियत को समझना है तो त्रिपुरा की जनता से पूछिए।
दूसरे दिग्गज हैं हाथ का साथ छोड़कर भगवा परचम पकड़ने वाले हिमंता बिस्वा सरमा। हिमंता बिस्वा सरमा पूर्वी राज्यों में काफी लोकप्रिय हैं। इनका जनाधार काफी विस्तृत है। उत्तर-पूर्वी राज्यों में इनकी छवि एक करिश्माई नेता की है और ऊपर से ये ब्रहमाण जाति से आने के कारण ममता बनर्जी के नरम हिंदुत्व कार्ड की काट भी है। चाहे ममता बनर्जी की साम्यवादी सोच हो, और मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति हो, या छद्म धर्मनिरपेक्षता हो, हिमंता बिस्वा सरमा सभी मुद्दों पर करारा वार करने के लिए जाने जाते हैं। जिस तरह से असम में उन्होंने काम किया है। जिस तरह से ड्रग तस्करी, मानव व गौ तस्करी, अलगाववादी, अवैध प्रवासियों और जनसंख्या जैसे मुद्दों पर उन्होंने बड़े निर्णय लिए हैं उससे पूर्वोत्तर की जनता में उनका कद और बढ़ गया है। ऐसे में इस चेहरे के समक्ष ममता बनर्जी और उनकी पार्टी का टिकना संभव नहीं लगता।
रही बात बंगाली अस्मिता का कार्ड खेलने का तो पूर्वोत्तर के राज्य के बंगाली पश्चिम बंगाल के बंगालियों से अलग विचार रखते हैं। पश्चिम बंगाल के बंगाली पूर्वोत्तर राज्य के बंगालियों को बाहरी समझते हैं जिससे पूर्वोत्तर राज्य के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है। ऐसे में यहाँ ममता बनर्जी का ये दांव भी फेल होने वाला है।
कुल मिलाकर कहें तो पूर्वोत्तर राज्य में ममता बनर्जी के समक्ष सरमा और देव की जोड़ी खड़ी है जिसे पराजित करना ममता के लिए असंभव की तरह है।