लगता है ट्विटर ने जो रायता फैलाया है, उसे समेटने का कार्य शुरू हो चुका है। हाल ही में ट्विटर ने एक अहम निर्णय में ट्विटर इंडिया के तत्कालीन एमडी मनीष महेश्वरी को भारत से मुख्य कार्यालय, यानि अमेरिका स्थानांतरित किया है। कारण चाहे जो भी हो, लेकिन असली कारण सर्वविदित है – मनीष यदि जरा भी और टिके होते तो ट्विटर का फजीहत होना तय है।
आखिर मनीष ऐसा क्या जानते हैं कि जिससे ट्विटर की पोल खुल सकती थी? इसपर एक विस्तृत विश्लेषण आवश्यक है, जिसके लिए हमें जनवरी 2021 की ओर जाना होगा, जब डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका का शासन छोड़ा था।
आपको पता है डोनाल्ड ट्रम्प को सत्ता से बाहर करने में सबसे बड़ा हाथ किसका था? डेमोक्रेट्स का? नहीं! Antifa का? नहीं! असल में ट्विटर के नेतृत्व में सोशल मीडिया के बिग टेक समूह ने फेक न्यूज का ऐसा मायाजाल फैलाया जिसे तोड़ पाने में डोनाल्ड ट्रम्प असफल रहे, और वे सत्ता से बाहर हो गए। ये बिग टेक अपारदर्शी है, अलोकतांत्रिक है, और किसी भी तरह से एक सशक्त, लोकतान्त्रिक और राष्ट्रवादी सत्ता को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मानते हैं।
ऐसे में भारत का उदय पर बिग टेक की चिंता स्वाभाविक थी। इसीलिए टूलकिट से लेकर फेक न्यूज को ट्विटर के नेतृत्व में बिग टेक ने जमकर बढ़ावा दिया, जिसके परिणामस्वरूप किसान आंदोलन के नाम पर 26 जनवरी को लाल किला परिसर में खालिस्तानियों ने जमकर उपद्रव भी मचाया। डोनाल्ड ट्रम्प को सत्ता से निकालने के बाद ट्विटर को लगने लगा था कि वह तो सर्वशक्तिशाली है, वह किसी भी कानून से ऊपर है, और उसे कोई हाथ भी नहीं लगा सकता।
लेकिन इसका मनीष महेश्वरी के मामले से क्या संबंध है? आखिर ऐसा भी क्या हुआ कि मनीष महेश्वरी को स्थानांतरित करना ट्विटर के लिए इतना अवश्यंभावी हो गया? इसके पीछे दो कारण है – मोदी प्रशासन की सतर्कता और लोनी घटना पर ट्विटर की हेकड़ी उसी पर भारी पड़ना।
ट्विटर को ऐसा लगने लगा था कि उसे कोई हाथ भी नहीं लगा सकता। लेकिन मई 2021 में जब उसने केंद्र सरकार के आईटी अधिनियमों को मानने से मना किया, और जानबूझकर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सम्बित पात्रा के ट्वीट्स को ‘Manipulated’ की श्रेणी में डाला, तो केंद्र सरकार ने भी ट्विटर के पेंच को कसना शुरू किया।
इतना ही नहीं, लोनी मामले में जब वामपंथियों ने फेक न्यूज फैलाई, तो ट्विटर ने स्वयं अपने स्तर पर इसे बढ़ावा दिया। बाद में जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने आपत्ति जताई, तो ट्विटर ने कार्रवाई से साफ मना कर दिया। लेकिन योगी आदित्यनाथ की सरकार भी सवा सेर निकली, उन्होंने ट्विटर को नाकों चने चबवाने पर विवश करते हुए उन्हीं के विरुद्ध मुकदमा कर दिया। ट्विटर ने हर जगह हाथ पाँव मारे, लेकिन उसे असफलता ही हाथ लगी।
इसके साथ ही साथ ट्विटर से निपटने के लिए मोदी सरकार ने कैबिनेट में फेरबदल करते हुए अश्विनी वैष्णव को आईटी मंत्री बनाया, जो ऐसे मामलों से निपटने में विशेषज्ञ माने जाते हैं। उनके आईटी मंत्री बनते ही ट्विटर न केवल लाइन पर आया, बल्कि इस माइक्रो ब्लोगिंग साइट को आईटी अधिनियमों के संशोधनों को भी मानने पर विवश होना पड़ा।
मनीष महेश्वरी ने अपनी ओर से ट्विटर की रक्षा करने का भरपूर प्रयास किया है, परंतु ट्विटर भी भली-भांति जानता है कि इस बार बाजी मोदी सरकार ने मारी है। इससे पहले ट्विटर ने कभी भी किसी भी सरकार से इस प्रकार की कार्रवाई के बारे में सोचा तक नहीं था। अब बात उसके इज्जत पर बन आई है। यदि मनीष महेश्वरी कानूनी एजेंसियों के शिकंजे में आ जाते, तो न केवल ट्विटर के कार्यशैली की पोल खुलती, अपितु मोदी सरकार ट्विटर का वो हाल करती जो उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा।
ऐसे में ट्विटर ने यही श्रेयस्कर समझा कि अपनी पोल खुलवाने और अपना भर्ता बनाने से अच्छा कि मनीष महेश्वरी को स्थानांतरित कर दो, ताकि ट्विटर के मुख्य कार्यालय तक कार्रवाई की आंच न पहुंचे। अन्यथा जब मोदी प्रशासन की कार्रवाई ने चीन तक को पीछे हटने से मजबूर कर दिया तो फिर जैक डॉर्सी तो फिर भी एक कंपनी के मालिक है। और कोई प्राइवेट कंपनी देश से बड़ी नहीं होती।