अमेरिका में कोरोना से हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं। अमेरिका भी हॉस्पिटल में बेड की कमी से जूझ रहा है। वहाँ लगभग वैसी ही स्थिति है जैसी दूसरी कोरोना वेव के समय भारत की थी।
A thread about how the first world is currently dealing with the pandemic.
FL COVID-19 Surge: Hospitals Storing Bodies in Refrigerated Coolers https://t.co/Pq28kSODRR
— Ajit Datta (@ajitdatta) August 28, 2021
कोरोना एक ऐसी महामारी है जो संपूर्ण मानव जाति द्वारा अब तक किए गए सभी विकास कार्य के ऊपर भारी पड़ रही है। विकसित हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर वाले देश भी कोरोना के आगे असहाय दिखाई दे रहे हैं। हालांकि, पश्चिमी मीडिया ने कोरोना की विभीषिका को भी वैश्विक प्रोपेगेंडा के लिए ही इस्तेमाल किया है।
As the US runs out of Oxygen & ICU beds, have a look at the headlines when India was battling Covid:
‘Crisis deepened by missteps, complacency’: NYT
‘India’s healthcare system is buckling’: BBC
‘Responsibility lies with a strongman regime’:Time
‘PM’s overconfidence’:Guardian
— Shubhangi Sharma (@ItsShubhangi) August 28, 2021
हाल ही में जब से अमेरिका में कोरोना के सक्रिय मामले 10,0000 के पार हुए हैं और आईसीयू बेड की कमी हुई है तब से सीएनएन ब्लूमबर्ग न्यू यॉर्क टाइम्स, सभी बड़े मीडिया संस्थानों ने कोरोना की विभीषिका को लेकर जो रिपोर्टिंग की है वह उस रिपोर्टिंग से बहुत अलग है जो भारत में आई वुहान वायरस की दूसरी लहर के समय की गई थी।
इस समय सभी मीडिया संस्थान केवल सामान्य खबरें छाप रहे हैं कि अमेरिका में किस राज्य में कोरोना के कैसे हालात हैं, इसपर कोई भी चर्चा नहीं हो रही है कि अमेरिका में कोरोना के कारण इतनी भयावह स्थिति कैसे पैदा हो गई है। बता दें कि इस समय अमेरिका के हालात हैं, पिछले वर्ष की तुलना में बहुत अधिक खराब हो चुकी है। हॉस्पिटल में भर्ती रोगियों की संख्या अब तक के सबसे ऊंचे स्तर तक जा पहुंची है, लेकिन ट्रंप को कोरोना के मुद्दे पर घेरने वाली मीडिया, जो बाइडन से एक सवाल तक नहीं पूछ रही है।
When a publication extensively write about a topic so that it turns into a big talking point, it’s coverage.
When you do an article or two about a topic, that’s called formality.
What the western liberal media is doing cannot be called coverage. https://t.co/BKjENT5EU7
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) August 28, 2021
वहीं भारत से तुलना करें तो, भारत में दूसरी लहर के समय The Guardian (द गार्डियन), वाशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स, टाइम जैसे सभी बड़े अखबारों ने भारत सरकार के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि इन बड़े अखबारों में छप रहे समीक्षात्मक लेख भारतीयों द्वारा ही लिखे जा रहे थे।
टाइम में छपे राना अय्यूब के लेख का शीर्षक था ‛strongman régime ignored all caution’. अर्थात मोदी सरकार ने अपनी मजबूत छवि के घमंड में कोरोना से संबंधित सभी चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया। जबकि सत्य यह है कि चेतावनियों को नजरअंदाज केंद्र ने नहीं, बल्कि विभिन्न राज्य सरकारों ने किया था। उत्तर भारत में कोरोना का जो वेरिएंट फैला था वह ब्रिटेन से भारत आया था। इस वैरीअंट के शुरुआती मामले पंजाब में देखने को मिले थे। तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने उसी समय पंजाब और दिल्ली की सरकारों को चेतावनी दी थी तथा यह बताया था कि दिल्ली की सीमा पर लगातार चल रहा किसान आंदोलन सुपर स्प्रेडर बन सकता है। लेकिन राणा अय्यूब ने अपने लेख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैली और कुंभ को कोरोना की दूसरी लहर का जिम्मेदार बताया था।
इसी प्रकार वॉशिंगटन पोस्ट ने Modi Chose Himself शीर्षक वाले लेख में सरकार पर आरोप लगाया कि अपनी चुनावी प्राथमिकताओं के कारण भारत सरकार ने कोरोना की भी चिंता नहीं की। यह लेख सुमित गांगुली द्वारा लिखा गया था। वहीं, अरुंधति राय ने The Guardian (द गार्डियन) अखबार में लिखे अपने लेख में कोरोना की दूसरी लहर को सरकार की असफलता बताते हुए आरोप लगाया कि सरकार में कोरोना की आपराधिक उपेक्षा ‛Criminal negligence’ साफ दिखाई दी है। इस लेख का शीर्षक क्राईम अगेंस्ट ह्यूमैनिटी था।
इन पत्रिकाओं और अखबारों ने शमशान में जलाई जा रही चिताओं की तस्वीरें ली और उसे अपने लेख में प्रयोग किया। उस समय पश्चिमी मीडिया को मृतकों की गरिमा का भी ध्यान नहीं रहा, लेकिन इस समय पश्चिमी मीडिया ने हॉस्पिटल में तड़प रहे अमेरिकियों की तस्वीरों को अपने लेख में इस्तेमाल नहीं किया है।
दरअसल, पश्चिमी मीडिया ने भारत की विभीषिका का इस्तेमाल अपने एजेंडे के लिए किया था। पिछले 7 वर्षों में भारत की सॉफ्ट पावर बहुत अधिक बढ़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि वैश्विक स्तर पर एक कुशल प्रशासक की बन चुकी है। ऐसे में कोरोना ने पश्चिमी मीडिया को एक अच्छा अवसर प्रदान किया, क्योंकि 7 वर्षों में पहली बार मोदी सरकार किसी समस्या से बुरी तरह जूझती दिखी। ये बहुत ही शर्मनाक है कि अपने एजेंडे के लिए पश्चिमी मीडिया ने अंसवेदनशील रिपोर्टिंग की और केवल एक पहलू को दिखाया जिससे आम जनता में डर का माहौल बने।
पश्चिमी मीडिया ने सरकार के प्रयासों को अपनी रिपोर्टिंग का भाग नहीं बनाया। सऊदी अरब, फ्रांस, सिंगापुर ने भारत की तत्काल सहायता की तो इसके पीछे प्रधानमंत्री मोदी के प्रभाव का बहुत बड़ा योगदान था। सरकार ने ऑक्सीजन एक्सप्रेस चलाई, DRDO ने रिकॉर्ड गति से हॉस्पिटल और ऑक्सीजन प्लांट बनाए। लेकिन पश्चिमी मीडिया में इसपर कोई चर्चा इसलिए नहीं हुई क्योंकि उन्हें कोरोना की रिपोर्टिंग नहीं करनी थी, बल्कि उसका इस्तेमाल करना था। वास्तव में एकपक्षीय न्यूज़ रिपोर्टिंग नहीं, बल्कि प्रोपेगेंडा होता है।
आज जब अमेरिकी चिकित्सा तंत्र कोरोना के दबाव में टूट रहा है तो इसकी रिपोर्टिंग नहीं करना भी प्रोपेगेंडा ही है। पश्चिमी मीडिया के लिए सुपर पावर अमेरिका की छवि पत्रकारिता के मानकों में सबसे पहली प्राथमिकता है जो दिखाई भी दे रही है। यहां जनका की जान का कोई महत्व नहीं है।