हमारे वृद्धजन ठीक ही कहा करते थे – विनाश काले विपरीते बुद्धि। एक समय अमरनाथ में तीर्थयात्रियों पर खरोंच पड़ने पर बालासहेब ठाकरे महाराष्ट्र में हज यात्रा पर प्रतिबंध लगवा देते थे। आज उन्हीं की पार्टी सत्ता में बने रहने के लिए अल्पसंख्यकों की किस प्रकार से मानसिक गुलामी कर रही है, इसका हाल ही में उदाहरण देखने को मिला है। कभी जिस शिवसेना में बालासाहेब ठाकरे के भगवा पोस्टर के अलावा कुछ और दिखता ही नहीं था, अब वहाँ हर प्रकार के रंगों में आदित्य ठाकरे के पोस्टर दिखाई दे रहे हैं, वो भी उर्दू में, जो शिवसेना के लिए, विशेषकर मराठा समुदाय के लिए विदेशी आक्रान्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली भाषा मानी जाती थी।
वास्तव में 2022 में BMC के चुनाव होने हैं, जिसके लिए अभी से शिवसेना ने कमर कस ली है। शायद इसीलिए सोशल मीडिया पर आदित्य ठाकरे के चेहरे वाले ‘नमस्ते वर्ली’ की फोटो दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इनमें अधिकतम पोस्टर उर्दू भाषा में है।
From Shiv Sena to Mughal Sena? Netizens slam Aaditya Thackeray’s green poster; accuse Sena of betraying Hindutva.@CharuPragya #adityathackeray#MuslimAppeasement #Shivsena #Hindus #Maharashtra
Read Full Story Here: https://t.co/1lQoS45FDC pic.twitter.com/iMc5ZnurVr
— Organiser Weekly (@eOrganiser) September 8, 2021
कभी अपने आप को ‘हिन्दुत्व’ का ‘सच्चा प्रतिनिधि’ कहने वाली शिवसेना पार्टी आधिकारिक रूप से ‘सेक्युलर सेना’ बन चुकी है। इसकी नींव तो तभी पड़ चुकी थी जब सत्ता के लालच में उद्धव ठाकरे ने देवेन्द्र फडणवीस की भाजपा सरकार को ठेंगा दिखाते हुए काँग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाया और सीएम पद की शपथ ली। अब जिस प्रकार से शिवसेना खुलेआम उर्दू को बढ़ावा दे रही है, उससे स्पष्ट होता है कि उसके लिए अब ‘हिन्दुत्व’ नहीं, केवल सत्ता मायने रखती है, और इसी रवैये के कारण आज महाराष्ट्र की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है।
इससे पहले मार्च में शिवसेना ने घोषणा की थी कि वह BMC में विजयी होने के बाद भायखला में उर्दू भाषा भवन बनवाएगी।। जिस महाराष्ट्र ने उर्दू के जबरन थोपे जाने के विरुद्ध जबरदस्त संघर्ष किया था, जिस उर्दू के विरुद्ध बालासाहेब ठाकरे मुखर रहे, उसी उर्दू को इस प्रकार महत्व देना शिवसेना की नीयत को स्पष्ट ज़ाहिर करता है। जिस शिवसेना की स्थापना महाराष्ट्र को अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के विषबेल से दूर रखने के लिए हुई थी, दुर्भाग्यवश अब वो शिवसेना उसी विषबेल में महाराष्ट्र को जकड़ने पर तुला हुआ है।
#MediaShot | ‘Salaam Worli’: 2019 poster of Aditya Thackeray given communal twist on social media
The poster from 2019 appeared in multiple languages, but the Urdu version resurfaced online. https://t.co/leNc1qMDVs pic.twitter.com/MQxXNJTlEG
— newslaundry (@newslaundry) September 8, 2021
न्यूजलॉन्ड्री का कहना है कि आदित्य ठाकरे के उर्दू पोस्टर के फोटो 2019 की है, और इसे तूल देना उचित नहीं। चलिए मान भी लिया कि 2019 की है, फिर भी ये शिवसेना के वैचारिक नीतियों की पोल पट्टी उधेड़ रही ही है। ऐसे में लोगों ने जमकर शिवसेना की आलोचना की।
एक यूजर ने लिखा, “केसरिया से हरे हो गए, मराठी से उर्दू, और शिवसेना से ?”
Transformation
From Saffron to Green.
From Marathi to Urdu.
From Shiv Sena to ……………..?@AUThackeray @ShivSena @OfficeofUT @yagsi_p @PatelViral @iParthkacha @nishitjb007 pic.twitter.com/ZPz99wajFs— Gaurav Ajagiya (@GauravAjagiya) September 8, 2021
एक अन्य यूजर ने स्पष्ट लिखा, “हो गई शिवसेना से उर्दू सेना”।
From shivsena to urdu sena
— Bhuvanesh Konar (@BhuvaneshKonar1) September 8, 2021
सच कहें तो आदित्य ठाकरे के उर्दू पोस्टर के साथ ये तो स्पष्ट हो गया है की शिवसेना का राजनीतिक पतन तो 2019 में ही प्रारंभ हो गया था, लेकिन अब जो सामने आया है, उससे स्पष्ट होता है कि कैसे शिवसेना सत्ता में बने रहने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। एक समय हुआ करता था जब हिंदुओं के विरुद्ध एक भी शब्द कहे जाने पर बालासाहेब ठाकरे अल्पसंख्यकों को महाराष्ट्र में नहीं देना चाहते थे। एक बार तो महाराष्ट्र को एक हिंदू राज्य बताते हुए और मुसलमानों के खिलाफ टिप्पणी खुलकर करते हुए बालासाहेब ठाकरे ने मुंबई आने वाले मुसलमानों विशेषकर बांग्लादेश से आने वाले मुस्लिम शरणार्थियों को वहां से चले जाने को कहा था; और एक आज का समय है, जब उन्हीं की शिवसेना अल्पसंख्यकों के समक्ष नतमस्तक है।