आदित्य ठाकरे की उर्दू भाषा वाली होर्डिंग की तस्वीर आई सामने, शिवसेना अब सेक्युलर सेना बन गयी है?

आदित्य ठाकरे पोस्टर

हमारे वृद्धजन ठीक ही कहा करते थे – विनाश काले विपरीते बुद्धि। एक समय अमरनाथ में तीर्थयात्रियों पर खरोंच पड़ने पर बालासहेब ठाकरे महाराष्ट्र में हज यात्रा पर प्रतिबंध लगवा देते थे।  आज उन्हीं की पार्टी सत्ता में बने रहने के लिए अल्पसंख्यकों की किस प्रकार से मानसिक गुलामी कर रही है, इसका हाल ही में उदाहरण देखने को मिला है। कभी जिस शिवसेना में बालासाहेब ठाकरे के भगवा पोस्टर के अलावा कुछ और दिखता ही नहीं था, अब वहाँ हर प्रकार के रंगों में आदित्य ठाकरे के पोस्टर दिखाई दे रहे हैं, वो भी उर्दू में, जो शिवसेना के लिए, विशेषकर मराठा समुदाय के लिए विदेशी आक्रान्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली भाषा मानी जाती थी।

वास्तव में 2022 में BMC के चुनाव होने हैं, जिसके लिए अभी से शिवसेना ने कमर कस ली है। शायद इसीलिए सोशल मीडिया पर आदित्य ठाकरे के चेहरे वाले ‘नमस्ते वर्ली’ की फोटो दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इनमें अधिकतम पोस्टर उर्दू भाषा में है।

कभी अपने आप को ‘हिन्दुत्व’ का ‘सच्चा प्रतिनिधि’ कहने वाली शिवसेना पार्टी आधिकारिक रूप से ‘सेक्युलर सेना’ बन चुकी है। इसकी नींव तो तभी पड़ चुकी थी जब सत्ता के लालच में उद्धव ठाकरे ने देवेन्द्र फडणवीस की भाजपा सरकार को ठेंगा दिखाते हुए काँग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाया और सीएम पद की शपथ ली। अब जिस प्रकार से शिवसेना खुलेआम उर्दू को बढ़ावा दे रही है, उससे स्पष्ट होता है कि उसके लिए अब ‘हिन्दुत्व’ नहीं, केवल सत्ता मायने रखती है, और इसी रवैये के कारण आज महाराष्ट्र की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है।

इससे पहले मार्च में शिवसेना ने घोषणा की थी कि वह BMC में विजयी होने के बाद भायखला में उर्दू भाषा भवन बनवाएगी।। जिस महाराष्ट्र ने उर्दू के जबरन थोपे जाने के विरुद्ध जबरदस्त संघर्ष किया था, जिस उर्दू के विरुद्ध बालासाहेब ठाकरे मुखर रहे, उसी उर्दू को इस प्रकार महत्व देना शिवसेना की नीयत को स्पष्ट ज़ाहिर करता है। जिस शिवसेना की स्थापना महाराष्ट्र को अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के विषबेल से दूर रखने के लिए हुई थी, दुर्भाग्यवश अब वो शिवसेना उसी विषबेल में महाराष्ट्र को जकड़ने पर तुला हुआ है।

न्यूजलॉन्ड्री का कहना है कि आदित्य ठाकरे के उर्दू पोस्टर के फोटो 2019 की है, और इसे तूल देना उचित नहीं। चलिए मान भी लिया कि 2019 की है, फिर भी ये शिवसेना के वैचारिक नीतियों की पोल पट्टी उधेड़ रही ही है। ऐसे में लोगों ने जमकर शिवसेना की आलोचना की।

एक यूजर ने लिखा, “केसरिया से हरे हो गए, मराठी से उर्दू, और शिवसेना से ?”

एक अन्य यूजर ने स्पष्ट लिखा, “हो गई शिवसेना से उर्दू सेना”।

सच कहें तो आदित्य ठाकरे के उर्दू पोस्टर के साथ ये तो स्पष्ट हो गया है की शिवसेना का राजनीतिक पतन तो 2019 में ही प्रारंभ हो गया था, लेकिन अब जो सामने आया है, उससे स्पष्ट होता है कि कैसे शिवसेना सत्ता में बने रहने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। एक समय हुआ करता था जब हिंदुओं के विरुद्ध एक भी शब्द कहे जाने पर बालासाहेब ठाकरे अल्पसंख्यकों  को महाराष्ट्र में नहीं देना चाहते थे। एक बार तो महाराष्ट्र को एक हिंदू राज्य बताते हुए और मुसलमानों के खिलाफ टिप्पणी खुलकर करते हुए बालासाहेब ठाकरे ने मुंबई आने वाले मुसलमानों विशेषकर बांग्लादेश से आने वाले मुस्लिम शरणार्थियों को वहां से चले जाने को कहा था; और एक आज का समय है, जब उन्हीं की शिवसेना अल्पसंख्यकों के समक्ष नतमस्तक है।

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