भारतीय सरकार इस समय पूरे जोश के साथ ग्रामीण क्षेत्रों के विकास हेतु समर्पित है। इस समय वह जो काम कर रही है, वह भारतीय ग्रामीण विकास के लिए आधार बनेगा और कई तो ऐसे काम है जो लंबे वक्त तक ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नींव थी। सहकारी व्यवस्था हमारे देश में बहुत पहले से चली आ रही है। किसानों का, दूध व्यपारियों का समूह, आर्थिक उन्नति के लिए लंबे समय से ऐसे समूह बनाकर काम करता आया है। भारत के राष्ट्रीय सहकारी संघ के आंकड़ों के अनुसार, भारत का सहकारी क्षेत्र दुनिया का सबसे बड़ा और लगभग 98% ग्रामीण इलाकों को कवर करता है, जिसमें लगभग 290 मिलियन लोगों की सदस्यता वाली 900,000 से अधिक समितियां हैं। सरकार भी इस मूलभूत ढांचों को समझती है, शायद इसीलिए वह भी सहकारी समितियों को और मजबूत करने में लगी हुई है। इससे नौकरशाही भ्रष्टाचार पर भी करारी चोट होगी।
इसी वर्ष जुलाई में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया था और एक नया सहकारी मंत्रालय बनाया था जो पहले कृषि मंत्रालय के अधीन एक विभाग था। अब उस बदलाव के बाद एक नया बदलाव लाने की ओर इशारा करते हुए गृहमंत्री और सहकारी मंत्रालय के मंत्री अमित शाह ने नए बड़े बदलाव लाने की बात कह दी है। भारत में सहकारी समितियां केंद्रीय स्तर पर दो मुख्य कानूनों द्वारा शासित होती हैं: सहकारी समितियां अधिनियम, 1912 और बहु-राज्य सहकारी समितियां अधिनियम, 2002. अमित शाह ने कोई विशेष कानून नहीं बताया है, लेकिन ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि वह अभी के पंजीकृत सहकारी समितियों को बहु उद्देशीय और बढ़िया वित्त प्रणाली विकसित करने की दिशा में बड़ा कानून ला सकते हैं।
अपनी योजनाओं के बारे में बताते हुए शाह ने कहा कि उनका मंत्रालय कृषि इनपुट से लेकर क्रेडिट तक, ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों की एक पूरी श्रृंखला की धुरी के रूप में सहकारी समितियों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करेगा।
शाह ने सहकारी समितियों के एक सम्मेलन में कहा, “हम बहु-क्षेत्रीय सहकारी समितियों जैसे क्षेत्रों में प्रक्रियाओं को सुचारू करने के लिए अधिनियम में थोड़े समय के भीतर बदलाव ला रहे हैं। विकास की दिशा में यह एक बड़ा कदम होगा।”
शाह ने आगे कहा, “हम सहकारी क्षेत्र को मजबूत करने के लिए अधिनियम में बदलाव लाएंगे। हमारे 10,000 साल पुराने इतिहास में सहकारिता कोई नई अवधारणा नहीं है। यह भारत के विकास के लिए एक मॉडल होगा और भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। मेरे मंत्रालय का मुख्य जनादेश ग्रामीण विकास, कृषि और छोटे व्यक्ति का विकास है। हमारा लक्ष्य 300,000 PACs बनाना है, ताकि हर एक या दो गांवों में एक PAC हो।”
पैक्स ग्रामीण स्तर के ऋण देने वाले नेटवर्क हैं जो अक्सर ऐसे देश में कृषि ऋण के लिए पहला पड़ाव होते हैं जहां बड़े अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक अभी भी गरीबों को पर्याप्त रूप से कवर नहीं करते हैं। एक सहकारी क्रेडिट सोसायटी, जिसे आमतौर पर प्राथमिक कृषि सहकारी समिति (PACS) के रूप में जाना जाता है, उसे 10 या अधिक व्यक्तियों का समूह कहा जा सकता है जो आमतौर पर एक गांव से संबंधित होते हैं।
अमित शाह चाहते हैं कि यह समूह किसानों की बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करें और सरकार भी इनकी मांगो के हिसाब से बदलाव करे। भारत में किसान सम्बंधी वित्तीय सहायता प्रदान करने के बावजूद दलाली व्यवस्था से लाभ सीधे उनके हाथ में नहीं जाता है। सरकार PAC को जिम्मेदार मानकर सीधे उनके द्वारा किसानों तक पैसा पहुंचाने का काम करेगी। पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सरकार डिजिटल ग्रिड व्यवस्था निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है। शाह के अनुसार, सहकारी क्षेत्र का डिजिटलीकरण इसके परिवर्तन की कुंजी होगी। उन्होंने कहा, “किसान क्रेडिट कार्ड से लेकर सभी प्रकार के प्राथमिकता वाले क्षेत्र को ऋण देने की क्षमता बढ़ाई जाएगी,” उन्होंने कहा, “सहकारी क्षेत्र प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आत्म निर्भर भारत के दृष्टिकोण के केंद्र में है।”
आज देश में तमाम प्रतिष्ठित सहकारी व्यवसाय हैं, जैसे अमूल, लिज्जत पापड़ और इफको लेकिन सहकारी क्षेत्र अक्षमताओं और अपारदर्शी संरक्षण प्रणालियों से घिरा हुआ है। सरकार सहकारी समितियों को मल्टी सर्विस सेंटर के रूप में भी विकसित करना चाहती है। सहकारी समितियां सीधे किसानों से अनाज लेकर, कीमत तय करके आगे बाजार में बेचने का काम करेंगी। भारत के किसानों में बड़ी समस्या यह है कि यहां किसान खाद फुटकर में खरीदता है और अनाज थोक में बेचता है, जिसके कारण उसे कम मुनाफा प्राप्त होता है। सहकारी समितियों द्वारा थोक में खाद खरीदने से फुटकर में खरीद करने वाले किसानों को बहुत लाभ होगा। यहां से सबकी सहमति से अनाज बेचने पर बिचौलियों का धंधा बंद हो जाएगा।
सच कहें तो अमित शाह के इस कदम से कृषि क्षेत्र भ्रष्ट नौकरशाही के चंगुल से मुक्त हो रहा है। पहले किसान मुख्य रूप से अपनी उपज कृषि उपज मंडी समितियों को निश्चित मूल्य पर बेचते थे। यहां तक कि उस प्रक्रिया में बिचौलिए/आढ़ती भी शामिल थे, जो किसान की आय का एक बड़ा हिस्सा गट कर जाते थे मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों ने किसानों को अपने उत्पाद किसी को भी बेचने का उचित अवसर दिया है।
सरकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करने वाले किसानों के समक्ष नौकरशाही के कारण आने वाली बाधा भी थी परंतु अब एक मजबूत सहकारी समिति न केवल किसानों को उनकी फसलों के बारे में परामर्श देने में मदद करेगी, बल्कि वे सरलीकृत उधार प्रक्रिया में अत्यधिक प्रभावी होंगे।
इन बुनियादी सुविधाओं को देखा जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत के आर्थिक उन्नति में पिछली सरकारों द्वारा किसानों को पीछे छोड़ दिया जाता था, लेकिन अब सरकार उन्हें साथ लेकर आर्थिक महागाथा लिखने के लिए तैयार है।