द प्रिंट ने हाल ही में एक विकास सूचकांक के प्रति प्रतिबद्धता से सम्बंधित एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। कमिटमेंट टू डेवलपमेंट इंडेक्स रिपोर्ट में मध्यम आय वाले देशों की नीतियों का आंकलन है, जिससे वह अपने से भी गरीब देशों में विकास और बदलाव के लिए कितने प्रतिबद्ध है, उसके हिसाब से उसे रैंक दी जाती है। इस रैंकिंग में 40 देशों का आंकलन किया गया है और भारत को अंतिम स्थान दिया गया है। यह रिपोर्ट 2003 से अमेरिका स्थित थिंक टैंक, सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट द्वारा प्रकाशित की जाती है। कमिटमेंट टू डेवलपमेंट इंडेक्स नामक इस रिपोर्ट में आठ क्षेत्रों (विकास वित्त, निवेश, प्रवास, व्यापार, पर्यावरण, स्वास्थ्य, सुरक्षा और तकनीक) को ध्यान में रखा जाता है। सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट की अध्यक्षता पाकिस्तान में जन्मे ब्रिटिश अर्थशास्त्री मसूद अहमद कर रहे हैं। यह एजेंडा चलाने वाले लोगों में से एक हैं।
कमिटमेंट टू डेवलपमेंट इंडेक्स का विवादों के साथ पुराना नाता रहा है। 2006 के सूचकांक में जापान को अंतिम स्थान पर रखा गया था और जापानी विदेश मंत्रालय ने उस समय एक औपचारिक बयान भी जारी किया था जिसमें लिखा था, “सात पैमानों के चयन के मानदंड स्पष्ट नहीं हैं। इसके अलावा, यह सूचकांक विकास पर सात पैमानों के प्रभाव के विभिन्न अंशों को ध्यान में नहीं रखता है और सबका प्रभाव एक जैसा मानता है। इसके हिसाब से विकास पर ‘सहायता’ और ‘प्रवास’ का एक समान प्रभाव माना जाता है।”
इस साल की कमिटमेंट टू डेवलपमेंट इंडेक्स रैंकिंग और दुनिया भर के अन्य पैमानों और तथ्यों के बीच कोई भी तालमेल नहीं है। सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट ने इस बार भारत को व्यापार, विकास वित्त, स्वास्थ्य और प्रवास क्षेत्रों में क्रमशः 40वें, 39वें, 39वें और 37वें स्थान पर रखा है। भारत का सर्वोच्च प्रदर्शन पर्यावरण के क्षेत्र में है जहाँ भारत को छठा स्थान दिया गया है।
भारत ने चालू वित्त वर्ष में पड़ोसी देशों, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में विकास के लिए अपने बजट में से 7,100 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। भारत अफ्रीका में सातवां सबसे बड़ा निवेशक है। भारत ने रेलवे लाइनों, विद्युतीकरण और सिंचाई परियोजनाओं, कृषि मशीनीकरण परियोजनाओं जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण के लिए रियायती लाइन ऑफ क्रेडिट (एलओसी) नामक सॉफ्ट लोन के माध्यम से गरीबी से ग्रस्त राष्ट्रों के विकास में तेजी लाई है। इसके अलावा गरीब देशों के साथ भारत के परोपकारी सम्बन्धों में पहले ही महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं और यह जमीनी स्तर पर बदलाव लाता दिख रहा है। सेनेगल में भारत की एक सिंचाई परियोजना से देश के चावल उत्पादन में छह गुना वृद्धि हुई है। इसी तरह भारत ने 640 मिलियन अमेरिकी डॉलर की ऋण सहायता से इथियोपिया को चीनी उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने में मदद की है।
हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में, नई दिल्ली ने मालदीव और श्रीलंका दोनों को लाखों डॉलर की ऋण सहायता प्रदान की है। हिमालय में, भारत ने भूटान को विकास सहायता के लिए 3,004 करोड़ रुपये और नेपाल को विकास सहायता के लिए 992 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। इसके अलावा, बांग्लादेश के लिए भी 200 करोड़ रुपये आवंटित किए जाएंगे। भारत उन कुछ देशों में से एक है जो दुनिया के सभी वंचित और गरीब हिस्सों में सर्वांगीण विकास और समान विकास को बढ़ावा दे रहा है।
पाकिस्तान को छोड़कर लगभग सभी दक्षिण एशियाई देशों से गरीबी और भुखमरी मिटाने के लिए भारत प्रतिबद्ध है। जब अधिकतर राष्ट्र अफ़ग़ानिस्तान को अकेला छोड़ दिये थे तब भारत तीन अरब डॉलर देकर अफ़ग़ानिस्तान के विकास कार्य में मदद करने के लिए प्रतिबद्ध दिखा था।
भारत में इससे सटीक सर्वेक्षण तो रहरिया कॉलेज के लड़के कर देते हैं। ऐसे थिंक टैंक की दुनिया भर में भरमार है। ऐसे ही थिंक टैंक स्टैनफोर्ड से बैठकर बोल रहे थे कि 99% से ज्यादा चांस है कि हिलेरी क्लिंटन अमेरिका की राष्ट्रपति बनेंगी। भारत को जरूरत है कि ऐसे थिंक टैंकों को नजरअंदाज करे। साथ में पत्रकारिता से जुड़े हुए संस्थानों के लिए भी आवश्यक है कि वह किसी भी ऐरू गेरू थिंक टैंक के रिपोर्ट्स के आधार पर बड़े बड़े दावे ना करके पहले क्रॉस चेक करे।