उधर तुर्की कश्मीर-कश्मीर करता रहा, इधर भारत ने निकाला ‘साइप्रस कार्ड’

तुर्की के नहले पर भारत का दहला!

साइप्रस तुर्की विवाद पर मोदी मीटिंग करते हुए

कुछ देशों को देखकर एक कहावत स्वत: ही स्मरण हो आती है – चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए। यही अवस्था पाकिस्तान की भी है और यही अवस्था तुर्की की भी है। दोनों ही देश भारत से ऐतिहासिक दृष्टि में पराजित हो चुके हैं, दोनों ही देश कूटनीतिक स्तर पर भारत के हाथों मुंह की खाए हैं, परंतु मजाल है कि दोनों देश अपनी हरकतों से बाज़ आए। एक बार फिर तुर्की ने भारत को भड़काने के लिए कश्मीर के फटे ढोल को पीटने का प्रयास किया, परंतु भारत ने सूझबूझ से काम लेते हुए तुर्की की कमज़ोर कड़ी को ही उजागर कर दिया और साइप्रस के मुद्दे को एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत किया।

ये साइप्रस का मुद्दा है क्या, और इसे सामने लाने से तुर्की को कैसे भारत ने मुंहतोड़ जवाब दिया है? इसके लिए हमें अभी वर्तमान मुद्दे पर प्रकाश डालना होगा, जहां तुर्की ने भारत को भड़काने हेतु कश्मीर का मुद्दा उठाने का प्रयास किया। असल में तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष रेसेप तैयप एर्दोगन ने अपने अभिभाषण में कश्मीर के मुद्दे का उल्लेख किया। एर्दोगन ने मंगलवार को अपने संबोधन में कहा, “हम 74 वर्षों से कश्मीर में चल रही समस्या को बातचीत के माध्यम से और संयुक्त राष्ट्र के प्रासंगिक प्रस्तावों के ढांचे के भीतर हल करने के पक्ष में अपना रुख बनाए हुए हैं।”

हालांकि, इसके कुछ ही देर बाद विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर का ट्वीट आया, “मैं अपने साइप्रस के समकक्ष निकोस क्रिसटोडुलिडेस से मिलकर बेहद प्रसन्न हूँ। आशा करता हूँ कि हमारे आर्थिक संबंध और सशक्त हों। उनके क्षेत्रीय विश्लेषण की मैंने प्रशंसा की, और मैं चाहता हूँ कि साइप्रस के संबंध में यूएन सुरक्षा परिषद अधिनियमों का सम्मान सभी करें।”

अब ज़रा डॉक्टर जयशंकर के ट्वीट के अंतिम लाइन पर ध्यान दीजिए। ‘मैं चाहता हूँ कि साइप्रस के संबंध में यूएन सुरक्षा परिषद अधिनियमों का सम्मान सभी करें’। इस एक लाइन से डॉक्टर जयशंकर ने बिना कोई विशेष आक्रामकता दिखाए तुर्की को एक स्पष्ट संदेश भी दिया है और कश्मीर के विषय पर उसकी औकात भी बताई है। परंतु प्रश्न तो अब भी व्याप्त है – ये साइप्रस का मुद्दा आखिर है क्या, और इसके उल्लेख से तुर्की को इतनी मिर्ची क्यों लगती है?

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असल में जिस प्रकार से कश्मीर के विषय पर पाकिस्तान भारत के साथ विवाद को जन्म देता है, उसी प्रकार से उत्तरी साइप्रस पर तुर्की ने आधिपत्य जमा के रखा है, जो साइप्रस के लिए प्रतिष्ठा का विषय भी है। 2020 में भी भारत के विदेश मंत्रालय ने तुर्की अधिकृत साइप्रस को लेकर चर्चा की थी, जो 1974 से उसके कब्जे में है।

बता दें कि तुर्की ने हिंसक आक्रामकता दिखाते हुए वर्ष 1974 में साइप्रस के दो टुकड़े कर दिये थे और उसके उत्तरी इलाके पर उसने आज भी कब्जा किया हुआ है। 1974 में द्वीप के जातीय आधार पर विभाजित होने के बाद से तुर्की ने उत्तरी साइप्रस में भारी हथियार और 35,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया हुआ है।

ये ठीक उसी प्रकार से साइप्रस के लिए आत्मसम्मान का विषय है, जिस प्रकार से भारत के लिए पाक अधिकृत कश्मीर है, जिसपर 1947 से पाकिस्तान ने अवैध नियंत्रण जमाया हुआ है। इसके अलावा ऐसे अनेक अवसर सामने आए हैं, जहां हमने देखा है कि कैसे कश्मीर की आड़ में तुर्की भारत को भड़काने का प्रयास कर रहा है और भारत में अराजकता फैला कर एक प्रकार से पाकिस्तान की अप्रत्यक्ष सहायता करना चाहता है। इसके सं

केत तभी मिल गए थे जब पिछले वर्ष कयास लगाए गए कि तुर्की कश्मीर में जिहाद फैलाने के लिए अब सीरिया से अपने 100 लड़ाकों को कश्मीर में भेजने से पहले उन्हें तैयार कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि तुर्की की खुफिया सेवा एजेंसी इन आतंकियों को देश के दक्षिणी हिस्‍से में स्थित मेर्सिन शहर में प्रशिक्षण दे रही है। इन आतंकियों को तुर्की सीरिया और Nagorno-Karabakh में भी इस्तेमाल कर चुका है।

2019 में, UNGA में भी भारत के खिलाफ एर्दोगन ने बयान दिया था तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्मेनिया के पीएम Nikol Pashinyan और और साइप्रस के राष्ट्रपति Nicos Anastasiades से मुलाकात की थी। तब भी साइप्रस और आर्मेनिया के साथ शीर्ष-स्तरीय बैठकें करके, भारत ने तुर्की को एक कड़ा संदेश दिया था।

यानी देखा जाए तो भारत ने एक बार फिर तुर्की को कूटनीति के अखाड़े में साइप्रस के दांव से चोकस्लैम दिया है। जैसे ही एर्दोगन ने कश्मीर का मुद्दा उठाया, सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने तुरंत साइप्रस का मुद्दा छेड़ते हुए संदेश दे दिया कि वे ही अकेले ‘स्मार्ट ब्वॉय’ नहीं है। इसके अलावा पिछले वर्ष से ही भारत तुर्की को सबक सिखाने के लिए उसके पड़ोसियों का सहारा लेने की नीति पर काम कर रहा है, क्योंकि तुर्की अपने सभी पड़ोसियों का सबसे बड़ा दुश्मन है, फिर चाहे पूर्व में अर्मेनिया हो, दक्षिण में साइप्रस हो या फिर पश्चिम में ग्रीस, और भारत इन्हीं देशों के साथ सहयोग कर तुर्की को डीप फ्राई करने की नीति पर काम कर रहा है।

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