शिवसेना और भाजपा के बीच लंबे समय तक लड़ाई चलती रही है। कभी शिवसेना भाजपा को गलत पार्टी बताती है तो कभी भाजपा ऐसा करती है। दोनों दक्षिणपंथी विचारधारा की पार्टी में एक लंबे समय तक सद्भाव और समर्पण था। बाला साहेब ठाकरे जब तक जिंदा थे, भाजपा के साथ थे। कांग्रेस के खिलाफ रहने के लिए वो मशहूर थे, उनकी कांग्रेस से इसलिए नहीं बनती थी कि क्योंकि उनके हिसाब से भारत में मुख्य सांस्कृतिक मूल्यों की बात करके कांग्रेस तुष्टिकरण करती रही है। ये बात अलग है कि 2019 विधानसभा चुनाव के बाद उद्धव ठाकरे ने भाजपा से गठबंधन तोड़कर कांग्रेस और NCP से हाथ मिला लिया। अब खबर आ रही है कि वह भाजपा के साथ गठबंधन बनाने के लिए तैयार है लेकिन भाजपा ने साफ शब्दों में गठबंधन से मना कर दिया है।
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अगले किसी चुनाव के लिए बीजेपी कोई गठबंधन नहीं करेगी, शिवसेना की ओर इशारा करके उसे भी झटका ही दिया है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी अब से उन लोगों के साथ गठबंधन में चुनाव नहीं लड़ेगी, जिन्होंने हमें धोखा दिया है। बता दें कि शिवसेना सीएम की कुर्सी के लिए कांग्रेस एनसीपी से मिली थी, लेकिन पीएम से उद्धव की मीटिंग और महाराष्ट्र में फडणवीस से संजय राउत की मीटिंग ये संकेत देती रही हैं कि शिवसेना अपने लिए बीजेपी की दरवाजे खुले रखना चाहती है।
2019 में भाजपा ने अपने सबसे पुराने और एकमात्र प्रमुख हिंदुत्व सहयोगी पार्टी शिवसेना को खो दिया था और तीन दशकों से अधिक समय तक उसकी सहयोगी रही पार्टी केंद्र में मोदी सरकार से बाहर चली गई थी। हालांकि, उनके 18 सांसद जाने से भी कुछ खास फर्क नहीं पड़ा था क्योंकि अकेले भाजपा 303 सीटों पर कब्जा करके बैठी थी। गठबंधन तोड़ने का मुख्य कारण 2 हिस्सों में समझना जरूरी है।
पहला यह कि भाजपा और पीएम मोदी लहर में अकेले महाराष्ट्र में ही भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर गई थी और इससे शिवसेना का राजनीतिक कद छोटा हो गया था। दूसरी बात यह कि राष्ट्रीय स्तर पर बतौर दक्षिणपंथी पार्टी, शिवसेना के हाथों से यह पहचान भी भाजपा की तरफ जा रहा था।
खैर, जैसे तैसे सरकार 2 साल से चल रही है लेकिन ऐसा लगता है कि शिवसेना को एक बात समझ में आ गई है कि भाजपा के साथ गठबंधन तोड़कर अपने आप को महाराष्ट्र में ही सीमित कर लेने का फैसला उसपर भारी पड़ रहा है और वह भी तब, जब आपके गढ़ में ही आपको भाजपा आपसे मजबूत दिख रही है।
जुलाई में खबर आई कि शिवसेना विधायक प्रताप सरनाईक ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चिट्ठी लिखकर भाजपा से गठबंधन करने को कहा था। अब ऐसा लगता है कि शिवसेना भाजपा के साथ मिलकर 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को देख रही है, लेकिन गठबंधन के सारे कयासों पर लगाम लगाते हुए महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने साफ साफ बोल दिया है कि भाजपा गठबंधन नहीं करेगी। अमरावती में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “अब समय आ गया है कि भाजपा बैसाखी से छुटकारा पाए और अकेले चुनाव लड़े। मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में बीजेपी अकेले चुनाव लड़ती है और जीतती है, उनका वहां कोई गठबंधन सहयोगी नहीं है। फिलहाल रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आठवले), शिव संग्राम, रयात क्रांति और राष्ट्रीय समाज पार्टी बीजेपी के साथ हैं और हम इन पार्टियों के साथ ही अपना गठबंधन जारी रखेंगे।”
उन्होंने यह भी कहा कि विदर्भ क्षेत्र में भाजपा पहले से ही मजबूत है। शिवसेना हाथ पकड़कर यहां पर आई और आज भी अकेले वहां से चुनाव लड़कर शिवसेना देख ले, उसे समझ आ जाएगा कि वह कहां है। विदर्भ में 288 सीट में से 60 विधानसभा सीट है, ऐसा लगता है भाजपा नागपुर, अमरावती, वर्धा को लेकर महाराष्ट्र में सरकार बनाना चाह रही है। खैर, जहां तक सीटों के समीकरण की बात है, भाजपा शिवसेना से कहीं ज्यादा मजबूत पार्टी लग रही है। ऐसे में शिवसेना भाजपा को लुभाने की भरपूर कोशिश कर रही है।