बगराम एयरबेस जहां कभी अमेरिकी फौज तैनात हुआ करती थी वहां अब चीनी सैनिक और श्रमिक काम करते दिखाई देंगे। हालांकि, चीन ने बगराम एयरबेस को लेकर तालिबान से किसी भी प्रकार की बातचीत से इनकार किया है और उन मीडिया खबरों का खंडन किया है जो यह दावा करती है कि चीन जल्द ही बगराम एयरबेस पर अपने सैनिक उतार देगा। पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से तालिबान और चीन के बीच इस प्रकार की निकटता देखने को मिली है, इस संभावना को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता है। यदि चीन ऐसा करता है तो तालिबान अधिकृत अफगानिस्तान में उसके प्रभाव की वृद्धि तो होगी ही साथ ही अमेरिका की वैश्विक महाशक्ति की छवि को करारा झटका लगेगा।
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चीन अब बगराम एयरबेस पर कब्जा करने जा रहा है। अमेरिका का थिंकटैंक इस समय चीन को अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वन्दी मान रहा है। वर्तमान समय में विश्व पर अमेरिकी दबदबे को चुनौती देने वाला एकमात्र देश चीन ही है। अमेरिका के लिए चीन आज ना सिर्फ आर्थिक, कूटनीतिक या सैन्य मोर्चे पर चुनौती बन गया है बल्कि वह सांस्कृतिक और वैचारिक प्रतिद्वंदी बन कर सामने आया है।
अपने 20 वर्षीय युद्ध के बाद अमेरिका अफगानिस्तान में अपने समर्थन वाली सरकार नहीं बना सका, जबकि चीन ने लगभग पूरे समय तक अफगानिस्तान की समस्या से दूरी बनाए रखी, अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में कभी कोई सक्रिय भूमिका नहीं निभाई। आज वह तालिबान के लिए सबसे बड़े सहयोगी के रुप में सामने खड़ा है।
चीन ने तालिबान की सरकार को स्थिर करने के लिए अफगानिस्तान को 31 मिलियन डॉलर की आर्थिक मदद देने का निर्णय किया है। इसके पूर्व भी पाकिस्तान और कतर के अतिरिक्त चीन एकमात्र ऐसा देश था जो तालिबान के साथ नजदीकी संबंध बनाए हुए है। यदि चीन बगराम एयरबेस पर अधिकार कर लेता है तो ना सिर्फ अफगानिस्तान बल्कि पूरे मध्य एशिया और पश्चिम एशिया पर चीन का प्रभाव बढ़ जाएगा। तालिबान ने पहले ही यह स्पष्ट कर रखा है कि वह अपने देश में चीनी निवेशकों को निवेश करने देगा। ऐसे में एयरबेस का चीन के हाथ लगना आर्थिक और सैन्य सहयोग को सुनिश्चित करेगा।
ट्रंप ने यहां तक सुझाव दिया था कि बगराम एयरबेस पर बमबारी की जानी चाहिए थी और उनके प्रशासन ने ऐसा किया होता। इसके परिणामस्वरूप कम से कम चीन की कुटिल योजनाओं को विफल कर दिया गया होता। परंतु बाइडेन में ट्रंप की तरह अमेरिकी हितों की रक्षा करने की इच्छाशक्ति ही नहीं है, यही वजह है कि चीन अब एयरबेस पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए पूरी तरह तैयार है।
बगराम एयरबेस संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक रणनीतिक सैन्य संपत्ति थी। यह एक अस्थायी प्रतिष्ठान नहीं है बल्कि एक छोटे से शहर जैसा दिखने वाला एक विशाल स्थान है। बगराम एयरबेस में एक जेल भी थी जिसमें तालिबान और आईएसआईएस-के दोनों से जुड़े हजारों आतंकवादी थे, जिन्होंने काबुल हवाई अड्डे पर हालिया आतंकी हमले को अंजाम दिया था। बगराम एयरबेस में उन्नत बुनियादी ढांचे- दो रनवे, हैंगर, बैरक और एक अस्पताल की कतारें हैं। सीधे शब्दों में कहें तो, सैन्य एयरबेस पूरी तरह से उस तरह के एयरलिफ्ट को अंजाम देने के लिए तैयार किया गया था, जैसा कि हाल ही में काबुल में हामिद करजई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाहर अमेरिका ने संघर्ष किया था। इसके अलावा, अमेरिकी सैनिक बगराम एयरबेस में दो दशकों तक रहे थे। वे सैन्य अड्डे के बारे में एक-एक विवरण जानते थे और यह भी जानते थे कि आतंकी हमलों से कैसे बचाव किया जाए।
यदि चीन इस पर नियंत्रण कर लेता है, तो बीजिंग के लिए यह एक ऐसी उपलब्धि होगी जिसे वास्तव में परिमाणित नहीं किया जा सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए यह उसी परिमाण की शर्मिंदगी है।
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एक समय अमेरिका एक साथ मुस्लिम देशों और इजराइल दोनों को अपने पक्ष में बनाकर चलता था। आज बदलते समीकरण के बीच चीन पश्चिम एशिया में वही प्रभाव पैदा कर रहा है। पारंपरिक रूप से ईरान और तालिबान के संबंध अच्छे नहीं रहे हैं लेकिन दोनों ही चीनी अधिराजत्व यानी ‛Hegemony’ को स्वीकार करते हैं।
आज तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता में वापस आना भारत रूस और पूरे मध्य एशिया के लिए चिंता का विषय बन गया है। वहीं चीन यह जानता है कि तालिबान उसका सहयोगी बना रहेगा।
ऐसे में यह विचार करने योग्य है कि आज पश्चिम एशिया और मध्य एशिया की राजनीति में अमेरिका और चीन कहां खड़े हैं? अमेरिका अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ कर भाग चुका है, ईरान के साथ न्यूक्लियर समझौता करने को आतुर है, उसके परम सहयोगी इजराइल और सऊदी अरब अमेरिका की भावी रणनीति को लेकर संशयग्रस्त हैं। भारत जो कि एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव के विरुद्ध एक प्रमुख स्तंभ बन सकता है, वह अब आतंकवाद की समस्या को लेकर चिंतित है। यह सब इसलिए क्योंकि अमेरिका अब कैसे भी करके मैदान छोड़कर भाग चुका है।
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वहीं चीन की बात करें तो फिलिस्तीन के मुद्दे पर बार-बार इजराइल के विरुद्ध खड़े होकर उसने मुस्लिम देशों के आम जनमानस में अपनी अच्छी छवि बना रखी है। कट्टरपंथी मुस्लिमों की किसी भी समस्या के लिए चीन सुरक्षा परिषद में उनका मुख्य प्रवक्ता बन जाता है। पाकिस्तान ईरान और अफगानिस्तान उसकी जेब में है। दक्षिणी चीन सागर में वह लगातार दबाव बढ़ा रहा है और कोई भी वियतनाम, फिलीपींस जैसा कोई भी छोटा देश अमेरिका पर इतना विश्वास नहीं करता कि वह अमेरिका के भरोसे चीन का विरोध करे। भारत, चीन, पाकिस्तान और अब अफगानिस्तान तीन तरफ से शत्रुओं से घिरा है। बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव और नेपाल में चीनी निवेश के बढ़ने के कारण ये देश भी बड़े खेल का हिस्सा बनने से बचते हैं। इन देशों में चीन की सॉफ्ट पावर बढ़ रही है और भारत चाहकर भी अमेरिका के आर्थिक सहयोग दिए इसे रोक नहीं पा रहा।
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आज चीन बगराम एयरबेस को अधिग्रहित करें या ना करें उससे यह सत्य नहीं बदल जाएगा कि अमेरिका एक भगोड़ा देश है और चीन एशिया की महाशक्ति बनकर दुनिया के सामने खड़ा है। यह सब जो बाइडन की मूर्खता का नतीजा है। उन्होंने ट्रंप की पूरी विदेश नीति पलट दी जिससे आज यह स्थिति पैदा हुई है। ऐसे में अगर चीन बगराम एयरबेस को कब्जा लेता है तो यह एक प्रकार से स्पष्ट घोषणा होगी कि एशिया महाद्वीप में अमेरिकी वर्चस्व समाप्त हो चुका है और चीनी अधिराजत्व का दौर शुरू हो गया है।