इंद्रप्रस्थ जो एक समय पर पांडवों के राज्य की राजधानी थी जिसे आज दिल्ली के नाम से भी जाता है। दिल्ली का राजधानी का इतिहास अगर खंगालने जाये तो दिल्ली सात बार बसी और इतनी ही बार उजड़ी भी है, इंद्रप्रस्थ से लेकर दिल्लिका, लालकोट, महरौली, किला राय पिथोरा, फ़िरोज़ाबाद, तुगलकाबाद और दीनपनाह से होते हुए शाहजहानाबाद तक। दिल्ली भारत की राजधानी कब बनी यह प्रश्न हमारे मन में हमेशा उठता है और अब ये प्रश्न और भी गहरा जाता है जब यह पता चले की दिल्ली सात बार उजड़ी हो और सात बार फिर बसी हो और हर बार इसे राजधानी के तौर पर ही बसाया गया हो। लेकिन इस लेख में आप जानेंगे की दिल्ली भारत की राजधानी कब – कब बनी।
दिल्ली भारत की राजधानी कब बनी?
सबसे पहले हम आपको हमारे महाकाव्य महाभारत के काल में लेकर चले है जो आज से लगभग 3000 वर्ष पूर्व है जब दिल्ली को इंद्रपस्थ नाम से जाना जाता है और इसे पांडवों ने बसाया था। आप यह कह सकते है की पहली बार दिल्ली भारत की राजधानी कब बनी तो वह 3000 वर्ष पूर्व बनी थी।
दूसरा उल्लेख मिलता है सन 1170 सन के आसपास (यह विवादित है) में जब दिल्ली को दिल्लिका नाम मिला था और यह नाम राजा धिलु ने दिया था और तब दिल्ली भारत की राजधानी हुआ करती थी।
अब जानेंगे की तीसरी बार दिल्ली भारत की राजधानी कब बनी थी? 1050 A.D. तोमर वंश के राजा अनंगपाल तोमर द्रितीय ने लालकोट नाम दिया था और तब तोमर द्वितीय ने ही इसे पुनः बसाया था।
सन 1166 से 1192 तक महान राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान ने भारत के दिल्ली पर राज किया और इसे एक नयी पहचान दी जिसे सभी किला राय पिथौड़ा के नाम से जानते है और इसे कई इतिहास कर असली लाल किला भी कहकर सम्बोधित करते है।
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बर्बर आक्रांता और धोखेबाज़ मोहम्मद गौरी ने 1206 ईस्वी में अनीति से सम्राट पृथ्वीराज चौहान को हराया था तब गौरी ने अपने गुलाम ऐबक को दिल्ली सौप दी थी तब ऐबक ने महरौली नमक जगह बसाई थी जिसे आज क़ुतुब काम्प्लेक्स के नाम से जानते है और इस सल्तनत की आखिरी शासक रजिया सुल्तान रही थी। इसके पश्चात खिलजी दिल्ली सल्तनत का शासक बन गया और उसने सीरी नामक नई जगह बसाई और यह दिल्ली का एक नया भाग बन गया। आप सभी ने वो कहानी तो जरूर सुनी होगी की एक दिन एक बादशाह को एक ख्याल आता है की हमें यह जगह पसंद नही है और वो एक नई राजधानी बसाएगा और सुबह उठकर वो एक फ़रमान जारी करता है की कुछ दिनों में पूरा शहर एक नई राजधानी की और पलायन करेगा। इसे तुगलकी फ़रमान कहते है और जी हाँ आपने सही पहचाना हम बात कर रहे है तुगलक की जिसने 1320 ईस्वी में तुगलकाबाद बसाया और इसी दरमियान एक और शहर बसाया जिसे फिरोजाबाद नाम से जाना जाता है।
छठी बार दिल्ली भारत की राजधानी कब बनी? तुगलकों के बाद 1500 शताब्दी में मुगलों के पहले शासक हुमायूँ ने दिल्ली का छठा शहर दिनपनाह नाम से बनाया।
1539 में शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को हराकर दिनपनाह को शेरगढ़ बना दिया। 1545 शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद हुमायूँ ने दिल्ली को फिर से जीत लिया। हुमायूँ के बाद शाहजहाँ ने 1638 में शाहजहानाबाद की नीव रखी। यह दिल्ली का सातवां शहर बना। जिसे हम आज पुरानी दिल्ली के नाम से जानते हैं।
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वर्तमान राजधानी की स्थापना
अब बात करते है बीसवीं शताब्दी की और इस शताब्दी में दिल्ली भारत की राजधानी कब बनी? तो आपकी जानकारी के लिए बता दे की 12 दिसंबर, 1911 को दिल्ली दरबार के दौरान, भारत के तत्कालीन शासक जॉर्ज पंचम ने क्वीन मैरी के साथ घोषणा की कि भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित होगी। घोषणा के साथ ही कोरोनेशन पार्क किंग्सवे कैंप की आधारशिला भी रखी गई। यह वायसराय का निवास होगा।
दिल्ली की प्रारंभिक योजना और वास्तुकला दो ब्रिटिश वास्तुकारों, हर्बर्ट बेकर और एडविन लुटियंस द्वारा की गई थी। वे उस समय ब्रिटेन के सबसे प्रमुख वास्तुकारों में से थे। योजना स्वीकृत होने के बाद शहर के निर्माण का ठेका शोबा सिंह को दिया गया।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद निर्माण शुरू हुआ और 1931 में निर्माण पूरी तरह से पूरा हो गया। शहर का उद्घाटन अंततः भारत के वायसराय लॉर्ड इरविन ने 13 फरवरी, 1931 को किया। एक बार जब शहर खोला गया, तो भी शहर का विस्तार करने की योजना शुरू हुई उभरना। . कई वास्तुकारों ने अपने विचारों और प्रेरणा की पेशकश की लेकिन उनमें से अधिकांश को वायसराय ने अस्वीकार कर दिया। मना करने का मुख्य कारण इसमें शामिल उच्च लागत थी।
यह था दिल्ली के भारत की राजधानी बनने का इतिहास। जो शहर सात बार बसा और सात बार उजड़ा हो उसकी कहानी और उसका इतिहास भला कैसे बेरंग को सकता है? इसी इतिहास के एहसास को समेटते हुए आपसे आज्ञा लेते है, लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद।