जिस प्रकार से टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक प्राप्त करने वाली पीवी सिंधू के कोच को वह अयोध्या आने के लिए प्रेरित किया हैं, ताकि भारत और कोरिया की साझा संस्कृति से वह परिचित हों, वह अपने आप में पीएम नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व को परिभाषित करता है। अनेक षड्यंत्रों के बाद भी उनकी लोकप्रियता न केवल विद्यमान है, अपितु वैश्विक नेताओं में भी उनकी लोकप्रियता शीर्ष पर है l
Global Leader Approval: Among All Adults https://t.co/dQsNxouZWb
Modi: 70%
López Obrador: 64%
Draghi: 63%
Merkel: 52%
Biden: 48%
Morrison: 48%
Trudeau: 45%
Johnson: 41%
Bolsonaro: 39%
Moon: 38%
Sánchez: 35%
Macron: 34%
Suga: 25%*Updated 9/2/21 pic.twitter.com/oMhOH3GLqY
— Morning Consult (@MorningConsult) September 4, 2021
एक वर्तमान सर्वे के अनुसार, नरेंद्र मोदी वैश्विक नेताओं में सर्वाधिक लोकप्रिय है। अमेरिका में स्थित डेटा इंटेलिजेंस कंपनी Morning Consult के अनुसार मोदी की अप्रूवल रेटिंग इस समय 70 प्रतिशत है, और उनकी नेट रेटिंग 45 है, जो वैश्विक नेताओं में सर्वोच्च है।
इस सर्वे में 13 वैश्विक नेताओं को चुना गया, जिनमें कुछ विश्व के शक्तिशाली देशों से, तो विश्व के उभरते देशों में से चुने गए। इनमें से बहुत कम ऐसे व्यक्ति थे, जिनकी रेटिंग सकारात्मक थी। नरेंद्र मोदी के बाद दूसरे सबसे लोकप्रिय नेता हैं मेक्सिको के राष्ट्रपति आंद्रे ऑबरेडोर, जिनकी 37 की रेटिंग थी, और फिर आते हैं इटली के प्रधानमंत्री मारियो ड्रागी, जिनकी रेटिंग है 32।
रोचक बात तो यह है कि इस रेटिंग में विश्व के बड़े-बड़े नेता कहीं भी नहीं ठहरते। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन किसी तरह अपनी रेटिंग सकारात्मक तो रख लिए, परंतु उनकी रेटिंग का स्कोर मात्र 4 पॉइंट है, जो पीएम मोदी के मुकाबले दस गुना कम है। वहीं यूके के पीएम बोरिस जॉनसन, कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो इत्यादि तो नकारात्मक श्रेणी में आते हैं, जिनकी रेटिंग क्रमश: -11 और -4 है। सबसे निम्नतम रेटिंग हाल में जापान के पीएम पद से इस्तीफा देने वाले योशीहिदे सूगा है, जिनकी रेटिंग -30 के पार है।
तो आखिर ऐसा क्या है, जिसके कारण पीएम मोदी की लोकप्रियता अब भी विद्यमान है, और वह देश में ही नहीं, विदेश में भी कई नेताओं से अधिक लोकप्रिय है? आखिर क्या कारण है, कि अनेकों प्रकार के वामपंथी प्रोपगैंडा के बाद भी पीएम मोदी के लोकप्रियता में लेशमात्र भी कमी नहीं आती? जिस प्रकार से पीएम मोदी को सर्वोच्च रेटिंग मिली है, वो अपने आप में उन वामपंथियों के मुंह पर एक करारे तमाचे के समान है, जो महीनों से उनकी छवि को धूमिल करने में लगे हुए थे, और फेक न्यूज एवं विषैले प्रोपगैंडा के सहारे उन्हे एक तानाशाही नेता के रूप में सिद्ध करना चाहते थे।
असल में नरेंद्र मोदी की वैश्विक लोकप्रियता विद्यमान रहने के पीछे कारण तो कई है, लेकिन अगर उन्हें लिखने बैठें तो शायद कई सामग्री कम पड़ जाएंगी। लेकिन पीएम मोदी की लोकप्रियता के पीछे कुछ प्रमुख कारण है, जिनके बारे में उल्लेख करना अवश्यंभावी है, और जिनकी काट आज तक वामपंथी ढूंढ नहीं पाए हैं।
सर्वप्रथम है पीएम मोदी का भारतीयकरण पर अत्यधिक ध्यान देना। उनका मूल मंत्र ‘सबका साथ सबका विकास’ सनातन धर्म के मूल स्त्रोत ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामय:’ से ही उद्धृत, यानि जब विकास हो, तो पूरे देश का हो, किसी एक वर्ग विशेष का नहीं। वे तुष्टीकरण की नीति में नहीं, अपितु योग्यता को महत्व देने में अधिक विश्वास रखते हैं। इसे एक प्रकार से वास्तविक ‘हिन्दू ग्रोथ रेट’ भी कहते हैं, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमें 2021 के प्रथम तिमाही में देखने को मिला, जब अनेक बाधाओं, चुनौतियों और दूसरी लहर के घातक दुष्प्रभावों के बाद भी भारत ने 20.1 प्रतिशत की अप्रत्याशित आर्थिक वृद्धि का करिश्माई आंकड़ा पार किया!
इसके अलावा कोविड की महामारी से लड़ने के परिप्रेक्ष्य में पीएम मोदी की रणनीति का ही परिणाम है कि आज भारत न केवल वुहान वायरस से जुझारू रूप से लड़ रहा है, अपितु धीरे धीरे पैन्डेमिक के स्टेज को पार कर एन्डेमिक स्टेज की ओर बढ़ रहा है। भारत को नीचा दिखाने में वामपंथियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। चाहे वैक्सीन की गुणवत्ता पर प्रश्न उठाना हो, या वैक्सीन के वितरण पर केंद्र को नीचा दिखाना हो, हर जगह वामपंथियों ने मोदी सरकार को नीचा दिखाने के नाम पर भारत की वैश्विक छवि गिराने में वैश्विक मीडिया का भरपूर साथ दिया था।
जब दूसरी लहर आई थी, तो पूरे देश पर संकट आया था। लेकिन इस संकट में भी वामपंथियों ने भारत को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, और उलटे सनातन धर्म को इसके लिए दोषी ठहराने का भी भरपूर प्रयास किया। लेकिन इतने छल प्रपंच के बाद भी मोदी सरकार ने न केवल अपनी ‘वैक्सीन मैत्री’ अभियान को जारी रखा, अपितु प्रोपगैंडा के बहकावे में आने वाले देशों को अपने सख्त रुख से चेतावनी भी दी। आज इसी का परिणाम है कि देश के 51 करोड़ लोगों को वैक्सीन की कम से कम एक डोज़ लग चुकी है, 15 करोड़ से अधिक लोग पूरी तरह से vaccinated हैं, और कई देशों को भारत ने वैक्सीन एक्सपोर्ट भी की हैं।
लेकिन पीएम मोदी इतने पर नहीं रुकते। टोक्यो ओलंपिक और पैरालम्पिक के दौरान जिस प्रकार से उन्होंने खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाया, हर पदकधारी को सार्वजनिक तौर पर फोन कर बधाई दी, और लड़कर हारने वालों को सार्वजनिक तौर पर प्रोत्साहित कराया, उससे स्पष्ट पता चलता है कि वे अपने देश की जनता के बारे में और अपने देश के नागरिकों के हित के बारे में कितना ख्याल रखते हैं। उनके इस निजी कनेक्शन से कुछ लोगों को जबरदस्त मिर्ची लग सकती है, पर विश्व जानता है कि कौन ‘जन संवाद’ का दावा करता है और जन संवाद में वास्तव में विश्वास रखता है।
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विदेश नीति के परिप्रेक्ष्य में भी पीएम मोदी के दूरगामी सोच की काट कोई भी नेता या वामपंथी नहीं ढूंढ पाया है। भारत चीन के मुद्दे पर ड्रैगन की हवा निकालना हो, UNSC के अध्यक्ष होने के नाते समुद्री सुरक्षा पर एक आधिकारिक मीटिंग की अध्यक्षता करनी हो, या कूटनीतिक मोर्चे पर चीन को अनेक प्रकार से घेरना हो, पीएम मोदी हर मोर्चे पर विजयी सिद्ध हुए हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन को उनके घोर पाकिस्तान प्रेम के बाद भी भारत के विषय पर अपनी सूझ बूझ से शांत रहने को विवश किया है, अन्यथा जिस प्रकार के निर्णय भारत लेता आया है, क्या किसी अन्य नेता के रहते ऐसा संभव था?
प्रारंभ में जब हमने भारतीयकरण की बात की थी, तो हमारा स्पष्ट उद्देश्य पीएम मोदी द्वारा भारतीय शिक्षा नीति में व्यापक बदलाव लाने के उद्देश्य से किये गए ऐतिहासिक निर्णयों की ओर ध्यान आकृष्ट करने की ओर था। अब हमारे देश का शासन ऐसे लोगों के हाथ में नहीं है, जो विदेशी संस्कृति की जी हुज़ूरी करते रहना चाहते हैं, अपितु ऐसे लोगों के हाथों में है, जो देश के वास्तविक नायकों से जनता को परिचित कराना चाहते हैं, देश के वास्तविक संस्कृति से लोगों को अवगत कराना चाहते हैं। इसी दिशा में एक अहम निर्णय में भारतीय सेना में अब आचार्य चाणक्य के अर्थशास्त्र और भगवद गीता जैसे प्राचीन ग्रंथों को आधिकारिक रूप से सैन्य अध्ययन का भाग बनाया जाएगा।
पीएम मोदी के विरुद्ध अनेक प्रोपगैंडा फैलाया जाएगा। बिग टेक से लेकर टूलकिट तक, कई प्रकार के प्रपंच रचे गए, ताकि उन्हे किसी भी तरह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नीचा दिखाया जा सके। लेकिन शायद वे एक बात भूल चुके हैं – सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता ये दिखाती है!