क्रूरता, पशुता और मानवता से परे। इतना नृशंस की व्याख्यायित करने में शब्दकोश भी असमर्थ हो जाए। तालिबान ने एक महिला पुलिस अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी। सुनने में यह आपके दैनिक में छपी एक साधारण सी खबर लगती है लेकिन, जब आप तथ्यों की ओर अपना ध्यानाकर्षण करेंगे तो शायद यह खबर आपको विचलित कर दे। परंतु, आपकी व्यथा और विचलन पूर्णतः नैसर्गिक होगी क्योंकि यह कृत्य मानवता की परिधि से बाहर है। हुआ कुछ यूं कि शनिवार की शाम को तीन हथियारबंद तालिबानी आतंकी घोर प्रांत के राजधानी फिरोजकोह में रहने वाली बानु नेगर के घर में बलपूर्वक घुस आए।
बानु नेगर के सामने उनके पति और बच्चे को बांध दिया। बिलखता बच्चा और निशब्द पति सतत जीवन-याचना करते रहें। लेकिन, शैतान की साक्षात प्रतिमूर्तियों ने उनकी एक नहीं सुनी और निर्ममता से उन्हे मौत के घाट उतार दिया। परंतु, पशुता यही समाप्त नहीं हुई। स्क्रू-ड्राईवर और नुकीले हथियार से बानु नेगर के चेहरे को भी क्षत-विक्षत कर दिया।
और पढ़ें: अफगानिस्तान में अब तालिबान और ISIS के बीच में मचेगा रक्तपात, जंग के हालात तैयार हैं
यहाँ दो बातें ध्यान देने योग्य है।
प्रथम, बानु नेगर एक महिला पुलिसकर्मी थीं जो वहाँ के कारावास में जेलर के पद पर कार्यरत थी। अमेरिका भाग गया। तालिबान ने कब्जा किया। इस बीच कुछ साहसिक औरतें अपने अधिकार और समानता के लिए उठ खड़ी हुई जो उन्हे पूर्ववर्ती लोकतान्त्रिक सरकार में मिली थीं। तालिबान द्वारा युद्ध से तबाह देश पर कब्ज़ा करने के बाद सरकार के गठन में अधिकारों और महिला प्रतिनिधित्व की मांग को लेकर दर्जनों अफगान महिलाओं ने हेरात में विरोध प्रदर्शन किया था, जिसके कुछ दिनों बाद ये घटनाक्रम सामने आया। बानु नेगर तो अफगानिस्तान में महिला सशक्तिकरण की प्रत्यक्ष प्रतिबिम्ब थी। ऊपर से सरकारी अफ़सर। अतः, ऐसे घटना होने का शत-प्रतिशत अंदेशा था।
रविवार को, एक स्पुतनिक संवाददाता ने बताया, महिलाओं ने इस डर से सिर और शरीर को ढंकना शुरू कर दिया कि तालिबान शिकार करेंगे और उन्हें मार देंगे अगर उन्हें बिना हिजाब या बुर्का के देखा गया, जैसा कि 1990 के दशक में देश में हुआ करता था। प्रतिशोध की आग में जल रहे तालिबान ने दो प्रकार के अफगानियों को सबक सिखाने की ठानी है। एक वो जो अमेरिका या अमेरिका समर्थित गनी सरकार के अधिकारी रहें है। और दूसरी, वो औरतें जिन्होने स्वतन्त्रता, समानता, नागरिक अधिकार और समवेशी लोकतन्त्र की बात की। जिन्होने औरतों के प्रति नब्बे के दशक के तालिबानी मापदंडो को नकारते हुए लोकतान्त्रिक मूल्यों को अपना लिया। बानु नेगर की गलती बस इतनी थी की वो खुले विचार की स्वावलंबी महिला जेल अधिकारी थीं।
लेकिन दूसरी बात तो अत्यंत हृदयविदारक है। बानु नेगर 6 महीने की एक गर्भवती महिला थी। तालिबान के तथाकथित मुस्लिम समर्थक ज़रा सोचें की एक भारत है जहां भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त सफूरा को सिर्फ गर्भावस्था के आधार पर जमानत दी जाती है वहीं दूसरी ओर सरकार की नौकर होने के बावजूद नेगर को गर्भावस्था के दौरान ही मौत के घाट उतार दिया जाता है। यही समाज, राष्ट्र और धर्म के अंतर को दर्शाता है। प्राकृतिक रूप से इस्लामी शासन का कहर सबसे ज्यादा स्त्रियों पर ही गिरा है और ये आगे भी जारी रहेगा। बानु नेगर की हत्या इसी परिदृश्य में हुई है।
और पढ़ें: अफगान तालिबान से तब तक आजादी नहीं प्राप्त कर सकते, जब तक वे खुद को आजाद नहीं कर लेते
परंतु, आप ज़रा समाज में व्याप्त भय को देखिये। इस मामले पर कोई भी मुंह खोलने को तैयार नहीं है। यहाँ तक बानु नेगर के घरवाले न्याय के लिए तालिबान पर ही आश्रित है। इससे बड़ा सामाजिक पतन और क्या होगा जब पीड़ित को अपराधी से न्याय की याचना करनी पड़े। इस खबर की जानकारी भी दुनिया तक एक अफगान पत्रकार के एक ट्वीट के माध्यम से पहुंची।
तालिबान ने BBC के माध्यम से इस खबर का खंडन कर, जांच और कारवाई का झूठा राग आलाप दिया है। शानदार ढंग से मामले की खानापूर्ति और लीपापोती कर दी गयी है। दुनिया के महाशक्ति होने का दंभ भरने वालों ने इन निरीह औरतों को ऐसे नरभक्षी भेड़ियों के सामने असहाय अवस्था में छोड़ दिया है। पशुओं से तो क्या अपेक्षा रखी जाए लेकिन इतिहास ऐसी तथाकथित महाशक्तियों को तो बिलकुल माफ नहीं करेगा। अगर कर भी दिया तो मानवता तो निश्चित रूप से क्षमादान नहीं देगी। ऐसी घटनाओं के लिए हमारी चुप्पी उत्तरदायी है।