विराट कोहली को छोड़िए, कोई उनके प्रशंसक से यदि कुछ महीने पहले ये कहता कि विराट की कप्तानी छिनने वाली है, तो वे तुरंत बोलते, ‘भांग खाए हो क्या?’ लेकिन वो कहते हैं न, समय बदलते देर नहीं होती, और विराट के साथ भी यही हुआ। आज स्थिति यह है कि कल तक जिस विराट कोहली की प्रतिभा पर प्रश्न करना भी अक्षम्य अपराध की श्रेणी में गिना जाता था, आज वही ‘किंग कोहली’ कहीं के नहीं रहे। टी20 की कप्तानी तो उनके हाथ से निकल ही चुकी है, और अब वे आईपीएल के पश्चात RCB की कप्तानी भी छोड़ने वाले हैं।
लेकिन ऐसा भी क्या हुआ कि कल तक जो किंग कोहली सचिन तेंदुलकर के ‘अनाधिकारिक उत्तराधिकारी’ थे, उन्हें अब कोई पानी भी नहीं पूछ रहा? इसके पीछे अनेक कारण है, जिनमें कुछ तो भाग्य का फेर हैं, और कुछ स्वयं विराट कोहली की देन है।
एक के बाद एक बड़े फैसले
पेशेवर मोर्चे पर कोहली के लिए पिछले कुछ सप्ताह मुश्किल भरे रहे हैं। कार्यभार प्रबंधन का हवाला देते हुए, कोहली ने घोषणा की कि वह टी 20 विश्व कप के बाद कप्तानी के कर्तव्यों से हट जाएंगे। फिर खबर आई कि कोहली ने टीम में रोहित शर्मा के स्थान को खतरे में डालने की कोशिश की और उन्हें उप-कप्तानी से हटाने की कोशिश की।
हालाँकि, सात साल से अधिक समय तक शीर्ष पर रहने के बाद, RCB की कप्तानी छोड़ने का उनका निर्णय आश्चर्यचकित करने वाला था।
पिछले कुछ वर्षों में अगर किसी ने कोहली को सुना और देखा है, तो वह कप्तानी की चुनौतियों का सामना करने और दबाव का आनंद लेने की कोशिश करने के बारे में बेहद मुखर रहे हैं। इस प्रकार, यह आश्चर्य की बात है कि एक पखवाड़े के भीतर, विराट कोहली जैसा खिलाड़ी क्रिकेट के मैदान में अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी को छोड़ना चाहता है।
खिलाड़ी के रूप में बेमिसाल
उदाहरण के लिए अगर इनके परफ़ॉर्मेंस पर ध्यान दें, तो एक व्यक्तिगत खिलाड़ी के रूप में विराट कोहली एक बेहद उत्कृष्ट बल्लेबाज़ रहे हैं। 96 टेस्ट मैचों में उन्होंने 7765 रन, 254 वनडे मैचों में 12169 रन एवं 90 टी20 मैचों में 3159 रन बनाए हैं, और सभी में इनका कुल औसत 50 के ऊपर ही रहा है। टेस्ट में इन्होंने 27 और वनडे में 43 शतक लगाए हैं, और इसीलिए कई लोग चाहते हैं कि ये आगे चलकर सचिन तेंदुलकर का रिकॉर्ड भी तोड़ें। परंतु पिछले दो वर्षों से ये आँकड़े केवल नाम के लिए हैं, क्योंकि धरातल पर जब इनका परफ़ॉर्मेंस देखें, तो इनके आंकड़ों से इनका प्रदर्शन दूर-दूर तक मेल नहीं खाता।
किंग कोहली ने नवंबर 2019 के बाद से अंतरराष्ट्रीय शतक नहीं बनाया है। प्रशंसक उत्सुकता और धैर्य से इंतजार कर रहे हैं, परंतु उन्हें हर बार निराश होना पड़ रहा है।
कप्तानी बेहाल
विराट कोहली को दो नावों पर पैर रखने का कुछ ज्यादा ही शौक था, जिसका दुष्परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ा। उनके अनुशासनहीनता के कारण पहले हम चैंपियंस ट्रॉफी हारे, और फिर उनके खराब फ़ॉर्म के कारण हम आईसीसी वनडे विश्व कप 2019 और आईसीसी विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप 2021 गंवा बैठे, बावजूद इसके कि हमारे पास विश्व की सर्वश्रेष्ठ टीम थी, और हम दोनों ही टूर्नामेंट में लाभकारी स्थिति में थे। एक शक्तिशाली तेज गेंदबाजी आक्रमण विरासत में मिला जो एमएस धोनी और सौरव गांगुली जैसे पिछले कप्तानों में से किसी के पास नहीं थी। इसके बावजूद कोहली किसी भी आईसीसी ट्रॉफी को जीतने में विफल रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय और साथ ही फ्रैंचाइज़ी क्रिकेट में खाली कैबिनेट एक कप्तान के रूप में उनकी विफलता के बारे में बहुत कुछ बताता है।
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एक आदर्श कप्तान वो होता है जो अपने व्यक्तित्व से अपनी टीम में जोश भर दे, और किसी भी खिलाड़ी को अनदेखा या अकेला न महसूस करवाए। परंतु विराट कोहली ने अपने व्यवहार से टीम के अन्य सदस्यों के मन में ऐसी कड़वाहट भर दी, जिसे बिल्कुल नहीं भरा जा सका।
सोशल मीडिया पर ऐक्टिविजम
जिनका आधा समय दिवाली पर हिंदुओं को फालतू का ज्ञान बाँचने में और इंस्टाग्राम पर रील्स बनाने में व्यतीत हो, उनसे व्यवहारिकता की आशा हम कर भी कैसे सकते हैं?
कोहली द्वारा अपने नैतिक पक्ष को दिखाने और अनजाने सोशल मीडिया ऐक्टिविजम के कारण खेल से उनका ध्यान भटका है। पिछले साल वह एक वीडियो जारी कर दिवाली के मौके पर हिंदुओं को पटाखे न फोड़ने का उपदेश देते नजर आए थे।
Happy Diwali 🙏🏻 pic.twitter.com/USLnZnMwzT
— Virat Kohli (@imVkohli) November 14, 2020
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ऐसे में यदि आज विराट कोहली किंग कोहली से मात्र कोहली बन चुके हैं, तो उसमें दोष केवल और केवल उनकी अकर्मण्यता और अनुशासनहीनता का है, जिसके कारण उन्होंने अपना सम्मान और अपना पद दोनों खोया है। यदि वे अब भी नहीं चेते, तो जल्द ही टीम इंडिया से भी उनका पत्ता कट सकता है।