रॉयटर्स समाचार एजेंसी के हाथ अमेरिकी सरकार का एक Email संदेश लगा है। इस ईमेल संदेश में, एक वरिष्ठ अमेरिकी व्यापार अधिकारी ने मास्टरकार्ड को प्रतिबंध लगा कर उसके बदले भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नए कार्ड जारी करने के फैसले की निजी तौर पर आलोचना की। उन्होंने इसे एक “कठोर” कदम बताया, जिससे अमेरिकी उद्योग में “डर का माहौल” है।
टिप्पणी
दक्षिण और मध्य एशिया के उप सहायक अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडन ए लिंच ने 16 जुलाई को लिखा- “आरबीआई द्वारा घोषित मास्टरकार्ड-प्रतिबंध के संदर्भ में हितधारकों नें शिकायत की है। एमेक्स, डिनर्स जैसी कंपनियाँ भी इस तरह की कार्रवाइयों से अत्यंत प्रभावित हुए हैं।” अमेरिकी सरकार ने मास्टरकार्ड प्रतिबंध पर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की है।
परंतु अमेरिका ने मास्टरकार्ड पर लिए गये एक्शन को “भेदभावपूर्ण” बताते हुए मोदी सरकार को परोक्ष रूप से धमकी दी थी। हालांकि, मोदी सरकार ने अमेरिका के बयानों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है, यही वजह है कि अमेरिका अब इस मामले को प्रेस के सामने ले आया है।
रॉयटर्स से बात करते हुए, एक वरिष्ठ अमेरिकी व्यापार अधिकारी ने मास्टरकार्ड को नए कार्ड जारी करने से प्रतिबंधित करने के भारत के फैसले की निजी तौर पर आलोचना करते हुए इस कदम “Draconian” कदम बताया जिससे हितधारकों में “डर” का महौल है। दक्षिण और मध्य एशिया के लिए उप सहायक अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि Brendan A. Lynch का जुलाई का एक ईमेल सामने आया है जिसमें कहा गया है कि, “हमने हितधारकों से कुछ कठोर नियमों और कदमों के बारे में सुना जो आरबीआई ने पिछले कुछ दिनों में उठाए हैं। “
मास्टरकार्ड के एक प्रवक्ता ने भी रॉयटर्स को बताया, ” भारत और अमेरिकी सरकारों का रवैया बहुत सहयोगात्मक रहा है। हम दोनों के समर्थन की सराहना करते हैं। आरबीआई के साथ चर्चा जारी है। मास्टरकार्ड इस मसले को सुलझा लेगा।‘’
बता दें कि केन्द्रीय बैंक ने अप्रैल में अमेरिकन एक्सप्रेस और डाइनर्स क्लब (Diners Club) इंटरनेशनल द्वारा कार्ड जारी करने पर प्रतिबंध लगा दिया था, फिर जुलाई में मास्टरकार्ड के खिलाफ इसी तरह की कार्रवाई की।
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मास्टरकार्ड के लिए भारत प्रमुख विकास बाजार है जहां इसने अपने प्रमुख निवेश दांव पर लगाए हैं तथा अनुसंधान और प्रौद्योगिकी केंद्र बनाए हैं। इस प्रतिबंध ने कंपनी को झकझोर दिया है और अब उन्हें तेजी से नए साझेदार को ढूँढना पड़ रहे हैं जो वित्तीय लेन-देन हेतु कार्ड मुहैया करा सके। मास्टरकार्ड ने कहा है कि वह इस फैसले से ‘निराश’ है। कंपनी ने रॉयटर्स को बताया है कि उसने 22 जुलाई को प्रतिबंध लागू होने से पहले आरबीआई को एक अतिरिक्त ऑडिट रिपोर्ट भी सौंपी थी। उम्मीद थी कि इससे चीजें सुलझ जाएंगी।
कारण
भारतीय रिजर्व बैंक के फैसले और सरकार की सहमति के पीछे दो कारण है, प्रथम कारण भारतीय रिजर्व बैंक के इस कदम के पीछे कंपनियों द्वारा स्थानीय डेटा-भंडारण नियमों का उल्लंघन है। आरबीआई (RBI) ने मास्टरकार्ड को काफी समय और पर्याप्त अवसर दिया इसके बावजूद 2018 के नियमों का “गैर-अनुपालन” किया।
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नियम यह है कि विदेशी कार्ड नेटवर्क को “अनफिल्टर्ड पर्यवेक्षी पहुंच” के लिए भारत में डेटा संग्रहीत करने का निर्देश है। अमेरिकी फर्मों के असफल लॉबिंग और नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच व्यापारिक संबंधों में खटास आने के बावजूद राष्ट्रहित में इसे लागू किया गया था। मास्टर कार्ड द्वारा इस नियम की सतत अवहेलना ने रिजर्व बैंक को प्रतिबंध लगाने पर मजबूर कर दिया। यह प्रतिबंध मौजूदा ग्राहकों को बिल्कुल भी प्रभावित नहीं करते हैं।
दूसरा, मोदी ने हाल के वर्षों में भारत के घरेलू भुगतान नेटवर्क RuPay का समर्थन किया है, जिसके उदय ने मास्टरकार्ड और वीजा जैसे अमेरिकी भुगतान दिग्गजों के प्रभुत्व को तोड़ दिया है।
हालांकि, भारत में नवंबर 2016 से डिजिटल लेन-देन में तेजी आई है, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू किए गए बड़े पैमाने पर विमुद्रीकरण अभ्यास के बाद, वित्तीय सेवा कंपनियों द्वारा इसे बड़ा बनाने की उम्मीद की थी। यदि मास्टरकार्ड ने भी भारतीय नियमों का पालन किया होता तो शायद आज उसे ये दिन न देखना पड़ता।
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निष्कर्ष
संप्रभुता सर्वोपरि है और ये बात इस कंपनी को समझने की आवश्यकता है। अमेरिका हमारा सहयोगी है परंतु, बल अहंकार को जन्म देती है और बुद्धि हर लेती है। अमेरिकी कंपनियों का भी यही हाल है। अपने विस्तार और आर्थिक प्रभाव के बल पर दूसरे राष्ट्र के नियमों को दरकिनार कर आर्थिक साम्राज्यवाद और व्यापारिक एकाधिकार को बढ़ावा देना इनके लिए आम बात है। साथ ही साथ मुनाफा और कल्याण के कदम अपने घरेलू देश ले जाते है। मोदी सरकार ने राष्ट्रवाद के कवच के सहारे इसे रोक दिया। उनकी खीझ यह दर्शाती है की सरकार का कदम एकदम सरहनीय और प्रशंसनीय है।