तालिबान 2.0: ISI की शह पर अखुंद बरादर को साइडलाइन कर रहा है, अब होगा कतर Vs पाकिस्तान

संगठन कितना भी बड़ा क्यों न हो, आंतरिक दरार किसी भी बाहरी खतरे से ज्यादा विनाशकारी साबित होती है। जैसे ही तालिबान ने काबुल पर सत्ता चलाना आरंभ किया, वैसे ही अब कतर और पाकिस्तान समर्थित गुटों के बीच आंतरिक संघर्ष दिख रहा है। एक तरफ पाकिस्तान समर्थित समूह का नेतृत्व प्रधान मंत्री हसन अखुंद कर रहा है जिसके ISI से बेहतर संबंध हैं, जबकि कतर समर्थित समूह का नेतृत्व उप प्रधान मंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर कर रहा है।

अब तो पाकिस्तान के इशारे हक्कानी नेटवर्क ने मुल्लाह अब्दुल गनी बरादर को भी सरकार से बाहर खदेड़ना शुरू कर दिया है, जिसे कतर का प्रतिनिधि माना जाता था। बरादर की बेदखली के बाद यह बात तय हो चुकी है कि तालिबान सरकार पूरी तरह से पाकिस्तान के कब्जे में है और कतर या अमेरिका को उससे कोई भी उम्मीद नहीं लगानी चाहिए।

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अखूंद और हक्कानी मिलकर साइडलाइन कर रहे हैं बरदार को

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि सितंबर माह के प्रथम सप्ताह में एक उच्च स्तरीय बैठक के दौरान अफगानिस्तान के राष्ट्रपति भवन में गोलियां चल गई थी। दरअसल, तालिबान के सभी बड़े नेताओं की मीटिंग में बरादर ने एक ऐसी सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा था जिसे दुनिया स्वीकार करे। बरादर ने दोहा समझौते का सम्मान करते हुए अफगानिस्तान के सभी मजबूत पक्षों को सरकार में सम्मिलित करने की बात कही और अल्पसंख्यकों को स्थान देने की वकालत की। इस पर विवाद इतना बढ़ गया कि खलील उल रहमान हक्कानी ने बीच में ही उठकर बरादर के मुंह पर कई मुक्के मारे। इसके बाद दोनों के अंगरक्षक बीच बचाव के लिए आए और गोलीयां चल गई जिसमें कई लोग घायल हुए और मारे गए। हालांकि, बरादर बच गया और वह तालिबान का सबसे बड़ा इस्लामिक गुरु माना जाने वाला हिब्तुल्लाह अखुनज़ादा से मिलने कंधार चला गया।

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हिब्तुल्लाह अखुनज़ादा कहने को तो तालिबान का सबसे बड़ा लीडर है लेकिन हक्कानी नेटवर्क उसे अपने नेता के रूप में स्वीकार नहीं करता। ना ही उसका कोई राजनैतिक प्रभाव है, उसे केवल इस्लामिक गुरु के रूप के स्वीकृति प्राप्त है।

इसके बाद से बरादर राजधानी वापस नहीं लौटा है। ना ही उसने प्रथम कैबिनेट मीटिंग में हिस्सा लिया और ना ही कतर के विदेश मंत्री के स्वागत के लिए राजधानी आया। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट बताती है कि जब बरादर पर हमला हुआ था तो वहां मौजूद पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के प्रमुख ने भी हक्कानी नेटवर्क के आतंकियों का ही पक्ष लिया था।

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अखूंद को है ISI का समर्थन 

दरअसल बरादर और मुल्ला अखुंद के बीच सत्ता पर कब्जे को लेकर बराबर की प्रतिस्पर्धा है। अखुंद ISI का आदमी है। साथ ही हक्कानीयों के भी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI से संबंध है। ऐसे में अखुंद की दावेदारी को मजबूत करने के लिए पाकिस्तान ने हक्कानी आतंकियों की सहायता से बरादर पर यह हमला करवाया होगा।

बरदार का समर्थन करता है क़तर

कतर के विदेश मंत्री के स्वागत कार्यक्रम में बरादर की अनुपस्थिति बड़ी बात है क्योंकि बरादर लंबे समय तक कतर में तालिबान के प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर चुका है। कतर की राजधानी दोहा में बरादर ही तालिबानी ऑफिस का सारा काम काज देखता था और उसने ही दोहा में अमेरिका के साथ समझौते के लिए पूरी बातचीत की थी।

बरादर ने अपनी अनुपस्थिति को लेकर यह बयान दिया है कि कतर के विदेश मंत्री के आगमन की सूचना उसे नहीं थी। कतर सरकार और बरदार के रिश्तो को देखते हुए यह बात स्वीकार ही नहीं की जा सकती। स्पष्ट है कि बराबर राजधानी वापस आने में डर रहा है।

बरादर का इस प्रकार की सरकार से खदेड़े जाना अफगानिस्तान को गृहयुद्ध की ओर धकेल सकता है क्योंकि कतर अपने प्रतिनिधि का इस प्रकार अपमान नहीं होने दे सकता। बरादर का प्रभाव कम होगा तो अमेरिका और कतर के हितों के लिए यह एक बड़ी समस्या बन जाएगी। ऐसे में अब तालिबान सरकार में यह आपसी कलह और बढ़ेगी।

तालिबान की दो बुनियादी जरूरतें हैं। एक ओर, इसे पश्चिम से मान्यता की आवश्यकता है, जिसके लिए बरादर और कतर प्रमुख होंगे। तालिबान देश की अर्थव्यवस्था को भी चलाना चाहता है, जिसके लिए उसे धन, सहायता और निवेश की आवश्यकता होगी। खाड़ी देश ही ऐसे हैं जो इस मामले में उनकी मदद कर सकते हैं, और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि तालिबान सरकार को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से किसी भी वित्तीय बाधा और वैधता के मुद्दों का सामना न करना पड़े।

दूसरी ओर तालिबान पाकिस्तान को जाने नहीं दे सकता। पिछले 20 सालों से पाकिस्तान ने तालिबान को जिंदा रखता रहा है ताकि वह उसके कश्मीर मुद्दे का समर्थन कर सके। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की 1,650 किलोमीटर की सीमा साझा है। अब ऐसे में क़तर भी बरदार के इशारे पर तालिबान को नियंत्रित करना चाहता था, परंतु अखूंद और हक्कानी तथा ISI प्रभाव के कारण बरदार को साइडलाइन कर दिया गया है। ऐसे में क़तर भी दोबारा अपने नियंत्रण को बचाने के लिए कदम उठा सकता है और स्पष्ट है कि पाकिस्तान के खिलाफ हो होगा। आज के दौर में पाकिस्तान को क़तर जैसे अमीर देश की आवश्यकता है, चाहे वो आर्थिक मदद की हो या अंतराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों देश तालिबन की आंतरिक युद्ध को कैसे निपटाते हैं।

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