हालिया समय में हुए चेतना जागृति के बाद अब किसी भी राजनीतिक दल के लिए चुनाव में हिंदुओं के हित को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है। वो वक्त अब पुराना हो रहा है जब हिंदुओ के हित को जातियों में बांटकर राजनीतिक फायदा उठाया जाता है। देश में अब लोग जातियों से पहले अपने धर्म को रख रहे है। शायद यही कारण है कि बहुजन समाज पार्टी, न सिर्फ स्वर्गीय पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को खुलेआम श्रद्धांजलि दे रही है बल्कि BJP द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भी सतीश चंद्र मिश्रा जैसे बसपा नेता पहुँच रहे हैं। ऐसा लगता है कि अब मायावती का प्लान BJP से हाथ मिला कर राजनीति करने का है जिसके लिए बिसात बिछाई जा रही है।
आप को कुछ नारे ना याद हो तो बताते चलते हैं, कि बहुजन समाज पार्टी ने एक जमाने में नारा दिया था, ‘तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’, आज वही बहुजन समाज पार्टी ‘ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी चलता जाएगा’ का नारा लगा रही है। इसके क्या मायने हो सकते है? उत्तरप्रदेश की राजनीति का केंद्र एक लंबे समय से जातीय भेदभाव पर निर्भर था। नेताओं के भाषण, पार्टी के तौर-तरीके इसी बंटाधार पर आधारित होते थे। सपा, बसपा, कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल जातियों में वोट बैंक बनाया करते थे। ये तरीका काम भी करता था, समाजवादी पार्टी के लिए MY (मुस्लिम यादव) वोट बैंक कारगर साबित हुआ था, बसपा के लिए दलित और अति पिछड़ी जातियों का समीकरण बढ़िया था। स्थिति इस प्रकार से खराब हो जाती थी कि धुर विरोधी राजनीतिक दल एक साथ हो जाते है, जैसे सपा बसपा गठबंधन, सपा कांग्रेस गठबंधन इत्यादि।
अचानक से यह सोशल इंजीनियरिंग पुराना हो गया। लोग अब जाति को नहीं, धर्म के नाम पर जुड़ने लगे। यह जुड़ाव महसूस सबने किया लेकिन जहां अन्य पार्टियां ने इस बदलाव को अस्वीकार किया वहीं भारतीय जनता पार्टी इसको समझने में सफल रही। अब जब बात राजनीतिक दलों को समझ आ गई है तब सबने अपने तौर तरीकों में बदलाव भी किया है। बसपा इसका उदाहरण है।
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सपा-बसपा गठबंधन के दौरान एक नारा गया था, “मिले मुलायम कांशीराम, हवे में उड़ गए जय श्री राम”। उस वक़्त में जातियों के साथ तुष्टिकरण करके सरकार बनाना आसान था। अब वही बसपा राम मंदिर आंदोलन के नायक माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि देने जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा उस कार्यक्रम में गए जहां रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत तमाम भाजपा नेता मौजूद थे। इससे पहले भी सतीश चंद्र मिश्र कह चुके है कि उन्हें नहीं मालूम है कि हवा में उड़ गए जय श्री राम का नारा किसने लगाया था। सतीश चंद्र मिश्रा का इस तरह BJP के कार्यक्रम में जाना कोई छोटा संकेत नहीं है। वो मायावती के दायें हाथ माने जाते हैं और अब ऐसा लगता है उनके जरीय मायावती BJP के साथ हाथ मिलाने की तिकड़म लगा रही हैं।
बसपा 2022 उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण दलित वर्ग को साथ लाकर खड़ा होना चाह रही है। बसपा की गिरी हुई लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए इससे कारगर साबित कुछ नहीं होगा। शायद इसीलिए वो भी जातीय समीकरण से उठकर हिन्दू हितों के लिए मुखर हो रही है। बसपा के आंतरिक मामलों में भी बदलाव आ रहा है। 1984-85 में जब बसपा का गठन हुआ तब से लेकर 2007 के विधानसभा चुनाव से पहले तक बसपा के मंच से सवर्ण विरोधी नारे आम थे। कई बार तो मंचो से रैली और जन सभाओं में यह भी कहा गया है कि अगर अमुक जातियों के लोग बैठे हो तो चले जाएं लेकिन समय में परिवर्तन को देखते हुए 2007 विधान सभा चुनाव से पहले बसपा ने सवर्ण जातियों के लिये अपने दल के दरवाजे खोल दिए। 2007 के चुनाव के दौरान ही अलीगढ़ के एक चुनावी मंच से अग्रणी जातियों को भी गरीबी के आधार पर आरक्षण देने की वकालत भी की गई थी।
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बसपा के लिए 2007 वाला समीकरण फायदेमंद साबित हुआ था। ब्राह्मण और दलित गठजोड़ से सत्ता पाया गया था। बसपा जानती है कि पश्चिमी यूपी के मेरठ, गाजियाबाद, मथुरा, हाथरस, बुलंदशहर, मुरादाबाद, अलीगढ़, औरैया, सहारनपुर में ब्राहमण वोटरों की संख्या अच्छी खासी है। पूर्वी यूपी की बात करें तो अयोध्या, प्रतापगढ़, महाराजगंज, गोरखपुर, जौनपुर, सिद्धार्थनगर, वाराणसी, बस्ती, बलरामपुर, गोंडा, संत कबीर नगर, सोनभद्र, मिर्जापुर, कुशीनगर और देवरिया में ब्राहमण मतदाताओं की मौजूदगी बड़े तादात में है।
इसी कारण अब BSP कल्याण सिंह के जरीय BJP तक संदेश पहुंचाना चाहती है। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के निधन के बाद श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई थी। पार्टी का कहना है कि 30 से 40 पार्टियों को निमंत्रण दिया गया था। 20 से 25 राजनीतिक दलों के नेता आये थे। कांग्रेस और सपा ने अपने आप को इससे दूर रखा।
इसके विपरीत बसपा सुप्रीमो मायावती कल्याण सिंह के पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित करने उनके घर पहुंची थीं। भाजपा ने कांग्रेस और सपा पर यह कहा कि कल्याण सिंह हिंदू हृदय सम्राट थे और वो तुष्टिकरण की राजनीति में विश्वास नहीं रखते थे। मुस्लिम वोट बैंक को बुरा न लगे, इसलिए वो नही आये है लेकिन उन्होंने पिछड़ी जातियों के बड़े नेता कल्याण सिंह का अपमान किया है।
बसपा जिस मुखरता से काम कर रही है। ऐसा लगता है कि भविष्य में वह भाजपा के साथ गठबंधन कर ले और अगर ऐसा नहीं भी करती है तो पार्टी के आलाकमान के तेवर देखकर यह लगता है कि हिन्दू एकजुटता की सोशल इंजीनियरिंग को बसपा समझ गई है।