उत्तर प्रदेश में अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने व फिर से सत्ता में आने के लिए बसपा प्रमुख मायावती ने स्वीकार लिया है कि उन्होंने सत्ता में रहते हुए उत्तर प्रदेश में कोई विकास नहीं किया है। मायवाती की स्वीकृति तब सामने आई है जब उत्तर प्रदेश में उनके सभी राजनीतिक दांव विफल साबित हो रहे हैं।
दरअसल, अपने शासन में की गई गलतियों को सुधारने की कड़ी में मायावती ने लखनऊ में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘हमें उन लोगों के नाम पर कोई नया स्मारक या पार्क बनाने की ज़रूरत नहीं है जो हमारे मार्गदर्शक थे – हम ने पहले ही बड़ी संख्या में उसका निर्माण करा लिया है और अब इसकी आवश्यकता नहीं है। अब आगे पांचवी बार जब बीएसपी की सरकार बनेगी मेरी पूरी ताकत उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदलने में लगेगी।’
मायावती की यह स्वीकृति सत्ता में वापसी को लेकर उनकी हताशा को दर्शाता है जिसे भाजपा ने अपने विकास कार्यों से लगभग बंद कर दिया है। हालांकि, मायावती यहीं नहीं रुकीं, इस दौरान उन्होने ब्राह्मण समुदाय को लुभाने का भी पूरा प्रयास किया।
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अब ब्राह्मण सम्मलेन का समापन हो और मायावती नया शिगूफा न छोड़ें ऐसा कैसे हो सकता था। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की हालत दयनीय बता मायावती ने कहा कि ‘योगी सरकार में ब्राह्मण असुरक्षित हैं, अगर उनकी पार्टी 2022 चुनावों में जीतती हैं, तो वह ब्राह्मणों की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगी’। यह किसी से नहीं छुपा है कि शासन सपा का रहा हो या बसपा का, इनके राज में हमेशा उत्तर प्रदेश के समूल विकास के बजाय एक विशेष वर्ग तक ही विकास को सीमित रखा गया। इस दौरान कानून व्यवस्था की बदहाली और गुंडाराज सभी ने देखा है। अब जब सबका साथ सबका विकास के नारे के साथ भाजपा सत्ता में आई और चहुं ओर विकास की नई लहर देखने को मिल रही है तब अखिलेश और मायावती को ब्राह्मण समुदाय याद आ रहे हैं।
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बता दें कि 2009 से 2012 के दौरान अपने शासन में लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) द्वारा तैयार रिपोर्ट के मुताबिक यूपी की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने लखनऊ नोएडा और ग्रेटर नोएडा में पार्क और मूर्तियों पर कुल 5,919 करोड़ रुपए खर्च किए थे। नोएडा स्थित दलित प्रेरणा स्थल पर बसपा के चुनाव चिन्ह हाथी के पत्थर की 30 मूर्तियां जबकि कांसे की 22 प्रतिमाएं लगवाई गईं थी। इसमें 685 करोड़ का खर्च आया था। इसी प्रकार राज्य भर में मायावती ने न केवल अपने दिवंगत नेताओं की मूर्तियां और प्रतिमाएं लगवाई थीं, बल्कि लगे हाथ अपनी भी बड़ी-बड़ी मूर्तियों का निर्माण करवाया था। इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि इन पार्कों और मूर्तियों के रखरखाव के लिए 5,634 कर्मचारी बहाल किए गए थे, जाहिर है इनमें भी एक बड़ी राशि का गणित बैठा होगा।
ज्ञात हो कि, यह वही मायावती हैं जिनके एक निर्णय जो मूर्ति और स्मारक निर्माण था, उसने इनकी दलित शोषित और वंचित तबके का प्रतिनिधित्व करने वाली छवि को ध्वस्त कर भ्रष्ट नेता की छवि को उग्रता पूर्वक निखारा और इस निखार से उनकी कुर्सी भी चली गई थी।
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अब बसपा चाहे ब्राह्मण राग अलापे या अलापे मूर्ति-स्मारक नहीं बनवाउंगी का राग अबकी बार उनकी दोहरी नीति काम नहीं आने वाली। इस बार बसपा ब्राह्मण कार्ड खेल ‘सर्वजन हिताय सर्व जन सुखाय (सभी के लिए लाभ, सभी के लिए शांति)’ की अपनी नीति को उग्र रूप से प्रदर्शित करने से नहीं चूक रही है परंतु ये दांव भी कितने कारगर होंगे ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।