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मोपला हिंदू विरोधी नरसंहार: कांग्रेस ने इसे स्वतंत्रता संग्राम और कम्युनिस्टों ने ‘कृषक क्रांति’ कहा

भाग-6

Aniket Raj
द्वारा Aniket Raj
17 सितम्बर 2021
in इतिहास
0
मोपला दंगे
118
व्यूज़
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पिछले पाँच अंकों में हमनें मलाबार में मोपला मुसलमानों का उदय,मोपलाओं का मूल हिंदुओं से विश्वासघात, हैदर और टीपू को मलाबार पर आक्रमण हेतु आमंत्रण, पूर्वव्याप्त इस्लामिक चरमपंथका चरमोत्कर्ष और टीपू की पराजय और खिलाफत के अंत से उपजी इस्लामिक धर्मांधता को प्रदर्शित करते 50 दंगे। फिर आया हिन्दू और हिंदुस्तान का काला दिवस- मोपला दंगे।

इस अंक में हम आपको मोपला नरसंहार की क्रूरता के साथ ये भी बताएँगे कि इतिहास के इस नृशंसतम और प्रत्यक्ष हिन्दू नरसंहार को किस तरह छिपाया गया। स्वयं के सिद्धान्त और सर्वमान्यता हेतु किस प्रकार इसे राष्ट्रवाद और कृषक विद्रोह में परिवर्तित कर दिया गया। आपके समक्ष अनर्गल प्रलापों के बल पर एतिहासिक विकृतिकरण की मानक प्रक्रिया का विस्तारपूर्वक प्रस्तुतीकरण करेंगे। तो आइये, उस घटना से आरंभ करते हैं जिसने इस्लामी मानसिकता के बारूद में चिंगारी का काम किया और नरसंहार का आरंभ हुआ।

विभीषिका वृतांत:

विभीषिका इतनी वृहद और विभत्स थी कि एक-एक घटनाओं का उल्लेख करने हेतु शब्दकोश के पास शब्दावली नहीं है। इस घटना की तीव्रता का अनुमान इसी बात से लगा सकते हैं कि इसके विध्वंस ने धुर-विरोधी सावरकर और अंबेडकर तक को एक कर दिया। के बी हेगड़ेवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निर्माण हेतु विवश कर दिया। रामचरितमानस में धर्म को परिभाषित करते हुए तुलसीदासजी उद्धरित करतें है- ‘’परहित सरस धरम नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई’’ अर्थात परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं है और परपीड़ा से बड़ा कोई पाप नहीं।‘’

लेकिन, इस नृशंस नरसंहार ने पीड़ा की पराकाष्ठा पार दी। शत्रुता की सीमा और हैवानियत के हद से परे जा इस घटना ने मानवता को स्तब्ध कर दिया। दुख और अपमान की तीव्रता ऐसी जो अंतरात्मा को चेतना शून्य कर दे। निर्वाक और निःशब्द कर दे। अश्रु धारा रोक दे। चीत्कार को शांत कर दे। आपके होठ सील, दुख को आपका अंश कर दे। आपको आश्चर्य से भर दे और यह सोचने पर विवश कर दे कि क्या इतनी क्रूरता का प्राकृतिक प्रकटीकरण संभव है?

नहीं, नैसर्गिक रूप से इतनी क्रूरता असंभव है जब तक उसमें इस्लामी कट्टरपंथ का अंश न मिले। मलाबार में इनके कुकृत्य से मृत्यु तांडव-नृत्य प्रारम्भ हुआ और आरंभ हुआ अत्याचार के अंतहीन अध्याय का। हिन्दू औरतों, बच्चियों, बूढ़ी महिलाओं और माताओं के साथ बलात्कार हुआ, सामूहिक बलात्कार हुआ। उनके सामने ही उनके बच्चों, बूढ़ों, परिवारजनों की नृशंस हत्या की गयी। मृतकों से पटी हुई भू और मृतकों के ऊपर लदे लोग। क्षत-विक्षत, लथपथ, अपने प्रियजनों के साथ मृत्यु हेतु प्रतीक्षारत। औरतों के शील तो क्या गर्भ तक नहीं छोड़े गए। उस प्रलयंकारी परिस्थिति में मोपला भूखे भेड़ियों की तरह स्वतंत्र विचरण कर रहे थे। इस्लामी चरमपंथ अर्थात जिहाद के नाम पर कोई भी अमानवीय कृत्य करते की स्वतंत्रता। टूटे हुए मंदिर और गिरे हुए ध्वज तो मृतकों और बलात्कार की घटनाओं की तरह गणना से पार चलें गए।

लीपापोती के उदाहरण:

परंतु अब आप लीपापोती के दो उदाहरण देखिये।

आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, औपनिवेशिक सरकार ने 126 घायलों के साथ 43 सैनिकों को खो दिया, 10,000 हिंदू विद्रोहियों द्वारा मारे गए। अनौपचारिक अनुमानों में हिन्दू हत्याओं की संख्या 15,000-20,000 के बीच, निर्वासितों की संख्या 1 लाख और धर्मांतरितों की संख्या 1,25,000-3,00,000 तक अनुमानित है।

परंतु, ब्रिटिश संसद में लॉर्ड कर्जन द्वारा दिये गए एक वक्तव्य के अनुसार,

“मोपला विद्रोह अभी खत्म हुआ है, लेकिन हमारे सैनिकों द्वारा कम से कम 2,500 मोपला मारे गए हैं, कम से कम 1,000 हिंदुओं की हत्या कर दी गई थी, और कम से कम 1,000 और जबरन मुसलमान धर्म में परिवर्तित हो गए थे। मंदिर और गिरजाघरों को अपवित्र और क्षतिग्रस्त कर दिया गया, और £250,000 मूल्य की संपत्ति नष्ट कर दी गई।”

मोपला नरसंहार पर चलचित्र बनाई गयी। इस चलचित्र में ममूटी ने खदिर की भूमिका निभाई है, जो एक सेवानिवृत्त मपिला सैनिक है। मधु अली मुसलियार के रूप में थी। इस चलचित्र ने उसी वर्ष लोकप्रिय अपील और सौंदर्य मूल्य के साथ सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए केरल राज्य फिल्म पुरस्कार जीता।

ये दोनों इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण है कि भूतकाल में औपनिवेशिक सत्ता और आधुनिक समय के कुछ उदारवादी इन दंगों का महिमामंडन करने का सतत प्रयास कर रहे है। पहले दंगो को खिलाफत और राष्ट्रवाद के झूठ से ढंका गया। फिर, कृषक-विद्रोह का भ्रम फैलाया गया।

लिबरल, कम्युनिस्टों, इस्लामिस्टों और उनके सहयोगियों को एक शाश्वत बीमारी है। इन पतित लोगों के अनुसार, खुले तौर पर झूठे इतिहास को सुधारना “भगवाकरण” है। हालाँकि, ये चरमपंथी अक्सर यह भूल जाते हैं कि वे जिसे ‘इतिहास’ कहते हैं, वह प्रचार के अलावा और कुछ नहीं बल्कि हिंदुओं के खिलाफ किए गए अपराधों का व्हाइटवॉशिंग है।

भारतीय संदर्भ में, इस्लामिस्टों के अपराधों को आमतौर पर उदारवादियों और उनके चाटुकार इतिहासकारों द्वारा एक अविश्वसनीय घुमाव दिया जाता है। उदाहरण के लिए, कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा हिंदुओं के मोपला नरसंहार को पलट दिया गया और हिंदू अभिजात्य वर्ग द्वारा नियंत्रित सामंती व्यवस्था के खिलाफ ‘कृषक विद्रोह’ के रूप में चित्रित किया गया और आज, उदारवादी नरसंहार का बचाव कर रहे हैं।

कम्युनिस्टों ने हिंदू नरसंहार को एक अलग मोड़ दिया है। इस बीच, कांग्रेस ने, कम्युनिस्टों के लिए दूसरी भूमिका निभाते हुए, अपने स्पिन का बचाव करने की कोशिश की, और हिंदुओं पर नरसंहार का दोष मढ़ दिया।

बेशक, राष्ट्रवादियों ने हमेशा कम्युनिस्ट-कांग्रेस गठजोड़ के प्रोपेगेंडा को पहचाना है और मलबार की घटना को हत्याकांड का नाम दिया है यानी मालाबार से हिंदुओं को समाप्त करने के लिए एक लक्षित अभियान।

आइये, सत्य प्रकाश से मिथ्यातम को हटाएँ:

कांग्रेस का विचार:

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का ‘मोपला विद्रोह’ की गंभीरता और हिंदू-विरोधी प्रकृति को कम करने का एक बहुत ही प्रमुख इतिहास रहा है।कांग्रेस-धर्मनिरपेक्ष प्रतिष्ठान द्वारा नियंत्रित इतिहास की किताबों में मोपला विद्रोह का उल्लेख शायद ही कभी होता है, जो खिलाफत आंदोलन के लिए गांधी-कांग्रेस के समर्थन का मुख्य परिणाम था। उदाहरण के लिए, महात्मा गांधी ने तर्क दिया था, “हिंदुओं को मोपला कट्टरता के कारणों का पता लगाना चाहिए। वे पाएंगे कि वे दोषरहित नहीं हैं।” उन्होंने आगे कहा था, “जबरन धर्मांतरण भयानक चीजें हैं लेकिन मोपला की बहादुरी की प्रशंसा की जानी चाहिए। ये मालाबारी इसके प्यार के लिए नहीं लड़ रहे हैं। वे उसी के लिए लड़ रहे हैं जिसे वे अपना धर्म मानते हैं और जिस तरह से वे धार्मिक मानते हैं।”

गांधी ने आगे कहा था, “एक हिंदू के लिए यह अधिक आवश्यक है कि वह मोपला और मुस्लिम से अधिक प्यार करे, जब उसे पता है कि मोपला उन्हें हानि पहुंचाना चाहता है।” कांग्रेस की प्रतिक्रिया आमतौर पर संतुलन बनाने की तथा हिंदुओं के नरसंहार के लिए दोष बंटवारे की कार्रवाई थी। हत्यारे मोपलाओं को “बहादुर, ईश्वर से डरने वाले … देशभक्त जो धर्म के लिए लड़ रहे थे” के रूप में वर्णित किया गया था।

हिंदुओं के खिलाफ उनके इस धार्मिक प्रतिशोध को काँग्रेस मुख्य रूप से गांधी ने स्वतन्त्रता संग्राम का रूप दे दिया। मोहनदास करमचंद गांधी को अहमदाबाद अधिवेशन में मोपला दंगों के एकमात्र कार्यकारी अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था। काँग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन के प्रस्ताव 3 में कहा गया:

कांग्रेस अपना दृढ़ विश्वास व्यक्त करती है कि मोपला अशांति असहयोग या खिलाफत आंदोलन के कारण नहीं थी। अगर अहिंसा का संदेश उन तक पहुंचने दिया जाता तो ऐसा प्रकोप नहीं होता। फिर भी, इस कांग्रेस का मत है कि मालाबार में अशांति को मद्रास सरकार द्वारा मौलाना याकूब हसन की प्रस्तावित सहायता को स्वीकार करके रोका जा सकता था।

आधुनिक काँग्रेस नेताओं ने अभी भी इस नृशंसता पर देश को दिग्भ्रमित रखने को प्रयासरत है। पिछले महीने, वरिष्ठ कांग्रेस नेता और लोकसभा सांसद के मुरलीधरन ने कहा कि मालाबार विद्रोह ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के खिलाफ खिलाफत आंदोलन का हिस्सा था और भाजपा नेताओं पर इसके नेता कुन्हाहमद हाजी को सांप्रदायिक के रूप में चित्रित करने का आरोप लगाया। कांग्रेस के मुखपत्र नेशनल हेराल्ड का मत भी ऐसा ही है। हालांकि, आरसी मजूमदार ने अपनी पुस्तक में इन सभी दावों की पोल खोली है।

आश्चर्य की बात है कि काँग्रेस के राज में भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन स्वतंत्रता सेनानी एवं पुनर्वास विभाग स्वतंत्रता सेनानियों की पेंशन योजना के अंतर्गत खिलाफत आंदोलन और मोपला विद्रोह, दोनों में भाग लेने वालों को ‘स्वतंत्रता सेनानियों’ के रूप में मान्यता देता था जिसे मोदी सरकार ने अभी वापिस लिया। अनुशंसा में बनाए गए रिपोर्ट के अनुसार मोपला भारत के स्वतन्त्रता के लिए नहीं बल्कि खिलाफत के लिए लड़े थे। उन्होंने खिलाफत का ध्वज भी लहराया था और खलीफा के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की थी न कि भारतीय गणतन्त्र के प्रति। स्पष्ट है राष्ट्रवाद का आवरण हिंदुओं को नपुंसक बनाने के लिए काँग्रेस द्वारा किया गया छल था।

साम्यवादी सोच:

देश के वामपंथी इतिहासकार लगातार गलत तर्क देते रहे हैं कि मालाबार के ‘विद्रोह’ को उस क्षेत्र में हिंदू सामंती जमींदारों के खिलाफ एक किसान संघर्ष के रूप में देखा जाना चाहिए। कम्युनिस्टों ने मोपला नरसंहार को सवर्ण जमींदारों के खिलाफ किसानों के कृषि विद्रोह के रूप में पेश किया है। यह सफ़ेद झूठ है। नरसंहार के दौरान मारे गए ज्यादातर लोग “निम्न जातियों” के थे। एक भी मुस्लिम जमींदार नहीं मारा गया था।

1971 में, केरल में मुख्यमंत्री चेलत अच्युता मेनन के नेतृत्व में कम्युनिस्ट सरकार ने मोपलाओं को रातोरात ‘स्वतंत्रता सेनानियों’ की उपाधि दे दिया। माकपा एक बार भी यह झूठी घोषणा करने से नहीं हिचकिचाई कि वास्तव में दस हजार मोपला मुसलमान ही ‘विद्रोह’ के दौरान मारे गए थे। वर्तमान वाम मोर्चा सरकार की परियोजना हाजी जैसे मोपला खलनायक को नायक के रूप में पेश करने की है।

20 अगस्त को, केरल विधानसभा अध्यक्ष एमबी राजेश ने हिंदू विरोधी नरसंहार के नेता, वरियांकुनाथ कुंजाहमद हाजी की तुलना भगत सिंह के साथ की थी और दावा किया था कि वह एक धर्मनिरपेक्ष नेता थे जिन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगने से इनकार कर दिया और मक्का को निर्वासन पर शहादत को चुना। आज भी विकिपीडिया पर मोपला नरसंहार के बारे में लिखा है कि “यह लोकप्रिय विद्रोह संभ्रांत हिंदुओं द्वारा नियंत्रित प्रचलित सामंती व्यवस्था के खिलाफ भी था।” जिस तरह से वामपंथियों ने इस नरसंहार की लीपापोती की है, इतिहासकार टिमोथी स्नाइडर ने उस व्यवहार को ‘सिज़ोफासिज्म’ कहा है।

पिछले अंक में हमने आपको मोपला नरसंहार के दौरान आतंक की बर्बरता को बताया है। उस बर्बरता को भी अगर कृषक आंदोलन या ‘मोपला विद्रोह’ कहा जा रहा है, तो क्या यह उन सभी महिलाओं, बच्चों और पुरुषों जिन्होंने मोपलाओं के अत्याचार को झेला, उनके साथ अन्याय नहीं होगा होगा? उद्धरण के पश्चात हम निर्णय और न्याय आप पर छोड़ते हैं।

राष्ट्रवादी सोच:

राष्ट्रवादियों के लिए मोपला नरसंहार मालाबार क्षेत्र के इतिहास पर एक धब्बा है। राष्ट्रवादियों के पास मोपला ‘विद्रोह’ के अपने दावे का समर्थन करने के लिए बहुत सारे तथ्य हैं जो यह स्पष्ट करते हैं कि वास्तव में मोपला मुसलमानों द्वारा छेड़ा गया एक हिंदू विरोधी अभियान है। राष्ट्रवादी सोच के अनुरुप हम आपको सावरकर के वक्तव्य और पुस्तकों के उद्धरण तो देंगे ही। परंतु, प्रामाणिकता और साक्ष्यों पर आपके विश्वास हेतु पहले उन नेताओं के उद्धरण प्रस्तुत करेंगे जिन्हें आप उदार और लचीला समझते है।

विनायक दामोदर सावरकर अपने अर्ध-काल्पनिक उपन्यास मोपला के माध्यम से मोपला विद्रोह को हिंदू विरोधी नरसंहार के रूप में वर्णित करने वाले पहले लोगों में से एक थे। उनकी यह पुस्तक 1924 में प्रकाशित होने पर बेहद लोकप्रिय हुई थी।

वहीं एनी बेसेंट ने अपनी पुस्तक ‘द फ्यूचर ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स’ में मोपला की नरसंहार की घटनाओं पर अपना विचार प्रकट करते हुए लिखा था:-

श्रीमान गांधी…क्या वे शरणार्थी शिविरों में और सड़कों पर मरती माताओं से पैदा हुए छोटे बच्चों के लिए थोड़ी भी सहानुभूति नहीं महसूस कर सकते हैं? दुख वर्णन से परे है। पत्नियाँ, सुंदर और प्यारी, आतंक से व्याकुल जिन महिलाओं ने अपने पति को अपनी आंखों के सामने काटे हुए देखा है। पुरुष जो सब कुछ खो चुके हैं, निराश, कुचले हुए और हताश है। … क्या आप बच्चों की हत्या से अधिक भयानक और अमानवीय अपराध की कल्पना कर सकते हैं ? 7 महीने की गर्भवती महिला को एक विद्रोही ने पेट से काट दिया और वह रास्ते में मृत पड़ी हुई थी और गर्भ से मृत बच्चा बाहर निकल रहा था … दूसरा: छह महीने का बच्चा अपनी ही माँ की छाती से छीन लिया गया था और विद्रोही के छुरे से दो टुकड़ों में कट गया… ये विद्रोही इंसान हैं या राक्षस?

 

उन्होंने यह भी लिखा था कि,

“विद्रोहियों ने खिलाफत राज की स्थापना की, एक सुल्तान को ताज पहनाया, हत्या की और बहुतायत में लूटपाट की, तथा उन सभी हिंदुओं को मार डाला या भगा दिया जिन्होंने धर्मत्याग नहीं किया। कहीं न कहीं लगभग एक लाख लोगों को उनके घरों से निकाल दिया गया था, लेकिन उनके पास जो कपड़े थे, सब कुछ छीन लिया। यह कैसा राष्ट्रवाद है।”

बी. आर. अम्बेडकर ने विद्रोह पर कहा:

मोपलाओं के हाथों हिंदुओं की दुर्दशा हुई। नरसंहार, जबरन धर्मांतरण, मंदिरों की अपवित्रता, महिलाओं पर अत्याचार, जैसे कि खुली गर्भवती महिलाओं को चीरना, लूटपाट, आगजनी और विनाश – संक्षेप में, क्रूर और अनर्गल बर्बरता की पराकाष्ठा। मोपलाओं द्वारा हिंदुओं पर तब तक स्वतंत्र रूप से किए गए सबसे भीषण संहार । व्यवस्था बहाल करने के कार्य को जल्दी किया जा सकता था। यह हिंदू-मुस्लिम दंगा नहीं था। यह सिर्फ एक बार्थोलोम्यू था। मारे गए, घायल हुए या धर्म परिवर्तन किए गए हिंदुओं की संख्या ज्ञात नहीं है। लेकिन संख्या बहुत बड़ी रही होगी।

बी आर अंबेडकर ने इस नरसंहार पर लिखा कि:

मालाबार में मोपलाओं द्वारा हिंदुओं के खिलाफ किए गए खून-खराबे के अत्याचार अवर्णनीय थे। पूरे दक्षिण भारत में, हिंदुओं के लिए भयानक भावना की लहर फैल गई थी, जो उस समय तेज हो गई थी जब कुछ खिलाफत नेताओं को इतना गुमराह किया गया कि वे मोपलाओं को बहादुरी से लड़ने के लिए बधाई के प्रस्ताव पारित करें । कोई भी व्यक्ति कह सकता था कि हिंदुओं नें हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए बहुत भारी कीमत चुकाई। लेकिन गांधी हिंदू-मुस्लिम एकता स्थापित करने की आवश्यकता से इतने अधिक प्रभावित थे कि वह उनकी नृशंसता को नज़रअंदाज़ करने के लिए तैयार थे। मोपला और खिलाफत के लिए उन्हें बधाई दे रहे थे। उन्होंने मप्पीला को  “ईश्वर से डरने वाले मोपला के रूप में बताया, जो धर्म के रूप में और जिसे वे धार्मिक मानते हैं, उसके लिए लड़नेवाला बताया ।

मोपला नरसंहार के प्रामाणिक उल्लेखों में से एक दीवान बहादुर सी. गोपालन नायर की पुस्तक ‘द मोपला रिबेलियन 1921’ है जिसके एक उद्धरण के अक्षरसः हिंदी अनुवाद से आप मोपला दंगों के सारांश को समझ जायेंगे :-

… यह केवल कट्टरता नहीं थी, यह कृषि संबंधी परेशानी नहीं थी, यह गरीबी नहीं थी, जिसने अली मुसलियार और उनके अनुयायियों को प्रेरित किया। सबूत निर्णायक रूप से दिखाते हैं कि यह खिलाफत और असहयोग आंदोलनों का प्रभाव था जिसने उन्हें अपने अपराध के लिए प्रेरित किया। यह वह है जो वर्तमान को पिछले सभी प्रकोपों ​​​​से अलग करता है। उनका इरादा, हालांकि यह प्रतीत हो सकता है, बेतुका था, ब्रिटिश सरकार को नष्ट करना और हथियारों के बल पर खिलाफत सरकार को प्रतिस्थापित करना। (विशेष न्यायाधिकरण, कालीकट की फाइल पर 1921 के केस नंबर 7 में निर्णय।) …

मोपला की भयावहता के प्रत्यक्षदर्शी सर शंकरन नायर ने अपनी पुस्तक Gandhi and Anarchy में यह कहा था:

महिलाओं पर जिस स्तर की क्रूरता हुई, मुझे इतिहास में मालाबार [मोपला] विद्रोह जैसी कोई घटना याद नहीं है। … विशेष रूप से महिलाओं पर किए गए अत्याचार इतने भयानक और अवर्णनीय हैं कि मैं इस पुस्तक में उनका उल्लेख नहीं करना चाहता।

सावरकर मोपला नरसंहार की राष्ट्रवादी अवधारणा ही सबसे प्रामाणिक और प्रासंगिक है। यह सोच तथ्यों और तर्को के आधार पर है। कृषक क्रांति के पश्चात भूमि सुधार या गरीबी उन्मूलन के प्रमाण बिलकुल नहीं है। खिलाफत का ध्वज लहराना, राजा के प्रति निष्ठा और स्वतंत्र मलयाली राज्य की स्थापना से किसी मंदबुद्धि को भी इस बात का भान हो जाएगा की निश्चित रूप से यह कोई स्वतन्त्रता आंदोलन नहीं था। मृत्यु, बलात्कार, चीत्कार, लूटपाट, हत्या, धर्मांतरण, निर्वासन, चीरहरण के ढेरों आंकड़ों से आपको सत्या का पता चलता है। मुस्लिमों और अंग्रेजों के मृत्यु और हताहतों के तुलनात्मक आंकड़ों से स्थिति एकदम पारदर्शी हो जाएगी। सत्य राष्ट्रवादी अवधारणा के समीप खड़ा है।

निष्कर्ष:

सभी प्रकार के विचारों और अवधारणाओं को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने के बाद दर्शकों से तार्किक अन्वेषन अपेक्षित है। मोपला स्वतन्त्रता संग्राम नहीं था। मोपला सर्वहारा कृषक क्रांति नहीं थी। मोपला राष्ट्रवादी क्रांति का भी उदाहरण नहीं है। मोपला विद्रोह धर्मनिरपेक्ष नहीं था। एक भी मस्जिद नहीं गिरे। एक भी मुस्लिम जमींदारों की हत्या नहीं हुई। भूमि सुधार नहीं हुआ और ना ही कृषकों की स्थिति सुधरी। स्वयं मोपला और न ही उनके नेताओं ने किसी प्रकार का स्पष्टीकरण दिया। मोपला एक नृशंस और सुनयोजित हिन्दू नरसंहार और धर्मांतरण का कुकृत्य था जिसके माध्यम से ‘’मलयाली इस्लामिक स्टेट’’ की स्थापना करना था। स्वयं के राजनीतिक सर्वमान्यता हेतु गांधी और काँग्रेस ने इसको स्वतन्त्रता संग्राम कह दिया और वामपंथियों ने कृषक-क्रांति। सत्य वैचारिक अत्याचार का प्रथम हताहत होता है। विद्रोह नहीं, विप्लव नहीं, क्रान्ति नहीं; यह नग्न मोपला जिहाद था!

 

भाग 1 – मोपला नरसंहार: कैसे टीपू सुल्तान और उसके पिता हैदर अली ने मोपला नरसंहार के बीज बोए थे

भाग 2- मोपला नरसंहार: टीपू सुल्तान के बाद मोपला मुसलमानों और हिंदुओं के बीच विभाजन का कारण 

भाग 3- मोपला नरसंहार: 1921 कोई अकेली घटना नहीं थी, 1836 से 1921 के बीच 50 से अधिक दंगे हुए थे

भाग 4- कैसे ओट्टोमन साम्राज्य के विध्वंस ने खिलाफत आंदोलन की नींव रखी जिसके कारण मोपला हिंदू विरोधी नरसंहार हुआ

भाग 5- मोपला हिंदू विरोधी नरसंहार का सच: इस्लाम न अपनाने पर 10,000 हिंदुओं की हत्या कर दी गई

Tags: अंबेडकरकांग्रेसमलाबारमोपला नरसंहार
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Aniket Raj

अधिवक्ता ( सर्वोच्च न्यायालय) हिंदी स्तंभकार (TFI Media) दक्षिणपंथी-हिन्दू-राष्ट्रवादी ।। यत: धर्मोस्ततो जय: ।।

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